गंभीरपुर रामलीला: अभिनय और वेशभूषा ऐसी मानो साक्षात रामायण देख रहे हो

गोरखपुर

तहसील संवाददाता- नरसिंह यादव, बांसगांव, गोरखपुर

– निरक्षर भी श्रीराम की गुणों को अपनाए इसलिए संतजी ने शुरू की थी रामलीला, अब युवा पीढ़ी संभाल रही प्रथा

– 44 वर्ष से मर्यादा पुरुषोत्तम के गुणों से समाज को दिशा दे रही गंभीरपुर की रामलीला


राम के प्रति श्रद्धा का भाव हर भारतीय रखता है। समाज को बुराई से बचा कर अच्छाई के मार्ग पर ले चलने की शक्ति रामकथा में सदैव से विद्यमान रही है। श्रद्धा व आस्था के पर्व शारदीय नवरात्र में गोरखपुर शहर से लगभग 45 किलोमीटर दूर कौड़ीराम विकास खंड के गंभीरपुर गांव में सन् 1980 से ही रामलीला का मंचन किया जा रहा है। गांव के ही पूर्वज स्व. संत शम्भु शरण सिंह, स्व. बाबूराम भारती और नवनाथ भट्ट ने रामलीला मंचन की शुरुआत की थी। उन्होंने अभिनय के माध्यम से रामकथा का प्रसार करने का प्रण लिया। मंशा थी कि निरक्षर भी श्रीराम की लीलाओं को समझ सकें और मर्यादा पुरुषोत्तम के गुणों को अपनाएं जिससे पीढ़ी दर पीढ़ी नैतिकता एवं संस्कार का संरक्षण हो सके। इस वर्ष 17 अक्टूबर से यहां रामलीला का मंचन किया जाना है।


राम के जीवन की पूरी घटना चक्र का किया जाता है मंचन-

गंभीरपुर में रामलीला 13 दिन तक चलती है। गांव अयोध्या की तरह सज जाती है। खासियत यह कि गांव के हर वर्ग और जाति के लोग मिलकर लीला में अभिनय करते हैं। समर्पण ऐसा मानव लीला नहीं ईश्वर की साधना कर रहे हो। एक डेढ़ महीने पहले ही पात्रों के चयन और लीला का अभ्यास भी शुरू हो जाता है। सौम्या तन और मधुर आवाज वाले को राम तो वहीं ऊंचे कद काठी और गरज भरी आवाज वाले को रावण की भूमिका दी जाती है। हनुमान हो, विभीषण हो या मेघनाथ सब अपने किरदार को वास्तविकता का रुप देते है। पात्रों की वेशभूषा ऐसी मानो राम युग(त्रेता युग) में आ गए हों। शास्त्री विधान का निर्वाह करते हुए रामचरितमानस, राधेश्याम रामायण सहित कवित्र एवं छंद से सजाकर लीला का मंचन किया जाता है। पात्र चौपाइयों के सहारे संवाद करते हैं। धून और संगीत के लिए अनुभवी कलाकार बुलाए जाते हैं। लीला के पात्र बच्चे, किशोर, युवा, प्रौढ़ सभी होते हैं। पात्रों के लिए गांव के घर-घर में पकवान बनाए जाते हैं। दूर दराज के लोग रामलीला देखने आते हैं।रामलीला में प्रभु श्रीराम के जिन जीवन प्रसंगों को दर्शाया जाता है, उनमें धनुष यज्ञ का दृश्य, सीता स्वयंवर, परशुराम-लक्ष्मण संवाद, अंगद-रावण संवाद, लक्ष्मण-मेघनाथ संवाद, राम-रावण युद्ध, भरत मिलाप आदि प्रमुख हैं। मान्यता है कि लीला में कोई भी भूमिका निभाने वाला व्यक्ति सदा रोगमुक्त रहता है।

रावण वध के बाद राम लेते हैं प्रायश्चित करने का संकल्प

गंभीरपुर स्थित खेल मैदान को रामलीला मैदान के नाम से जाना जाता है। यहां दशहरा मेले के दिन रावण वध का मंचन किया जाता है। युद्ध जीतने के बाद राम कहते, ‘मैं हिमालय जाकर प्रायश्चित करना चाहता हूं, क्योंकि मैंने एक गलत काम किया है। मैंने एक ऐसे मनुष्य को मार दिया जो महान शिव भक्त था, एक विद्वान था, एक महान राजा था और दानवीर था।’ विधि विधान से रावण की मोक्ष के लिए पूजा पाठ एवं भोज कार्यक्रम किया जाता है।

चित्र परिचय- पूर्वा अभ्यास करते पात्रगण