लखीमपुर : सावन के दिनों में भगवान शिव के भक्तों के लिए लिलौटी नाथ धाम भी विशेष महत्व रखता है। जिला मुख्यालय से उत्तर दिशा में करीब सात किलोमीटर की दूरी पर स्थित लिलौटी नाथ का मंदिर दूर से किसी ऋषि मुनि के आश्रम जैसा प्रतीत होता है, जो घने वनाच्छादित क्षेत्र में है। इस पवित्र तीर्थ स्थल के किनारे कभी कंडवा नदी की स्वच्छ निर्मल धारा बहा करती थी। जिसे भगवान शिव का अभिषेक करके भक्त उन्हें प्रसन्न किया करते थे। पर अब यह नदी महज एक ताल या दलदल भर होकर रह गई है। करीब 40 फिट ऊंचाई वाले गुम्बद के ठीक नीचे लाल पत्थर से शिव¨लग के रूप में भगवान शिव विराजमान है। जिसमें एक मानवाकृति भी उभरी है। जिसके बारे में लोगों का मानना है कि यह पार्वती की लाट है। इसी मान्यता के चलते भक्त यहां गौरी-शंकर का एक साथ पूजन शिव¨लग के रूप में करते हैं।
राजा दुनिया ¨सह ने बनवाया था
मंदिर मंदिर के महंत मोहन गिरि बताते हैं कि किसी समय में महेवा स्टेट के राजा दुनिया ¨सह यहां के जंगल में शिकार खेलने आए थे। ये बात करीब सात सौ वर्ष से ज्यादा पुरानी है। तब छोटे-छोटे राज्य हुआ करते थे और राजा दुनिया ¨सह यहां शिकार खेलने आए तो उन्हें घने जंगल में यह शिव¨लग मिला। इस दौरान उन्हें यहां एक तपस्वी बाबा भी मिले जिनकी समाधि मंदिर के ठीक सामने बनी हुई है। बाबा ने राजा को शिवजी का मंदिर बनाने का निर्देश दिया था। राजा दुनिया ¨सह ने इस शिव¨लग को उखाड़ कर महेवा स्टेट ले जाने के भी प्रयास किए। पर वे इसमें सफल नहीं हुए। फिर उन्होंने यहीं पर भव्य मंदिर बनवा दिया। शिव¨लग के चारों ओर नंदी, कार्तिकेय, बजरंगबली व दुर्गामाता की मूर्तियां हैं। किसी जमाने में यहां कंडवा व जुनई दो नदियों का संगम था, लेकिन कालांतर में जुनई लुप्तप्राय हो गई। सरकारी सहायता के अभाव में कंडवा का भी अस्तित्व खतरे में हैं। भक्तों व महेवा स्टेट के सहयोग से मंदिर का समय-समय पर जीर्णोद्धार भी कराया जाता है।
श्रीकृष्ण द्वारा स्थापित है शिव¨लग मान्यताओं के बारे में यहां के महंत मोहन गिरि बताते हैं कि यह महाभारतकालीन माना जाता है। किंवदंती के मुताबिक पशुपति नाथ जाते समय भगवान श्रीकृष्ण जब रूकमणि के साथ इधर से गुजरे तो रूकमणि ने भगवान शिव की आराधना की इच्छा जताई। जिसके कारण भगवान कृष्ण ने यहां शिव¨लग की स्थापना की तथा पूजा अर्चना की इसलिए यह शिव¨लग श्रीकृष्ण व रूकमणि द्वारा स्थापित एवं पूजित है। दूसरी मान्यता यह है कि मंदिर पर हर रोज ब्रह्मामुहूर्त महाभारत काल के अश्वत्थामा पूजा अर्चना के लिए आते हैं क्योंकि हर रोज मंदिर खुलने पर सुबह मूर्ति पूजी हुई मिलती है। यही मान्यता आल्हा एवं ऊदन के बारे में हैं कि यहां वे दोनों हर सुबह पूजा करने आते हैं। पुरोहित मोहन गिरी बताते हैं कि सावन के हर सोमवार को भक्त दूरदराज से आकर यहां भंडारे करते हैं। ठंडाई का प्रसाद भी बांटते हैं। यहां से पहुंचे मंदिर लिलौटी नाथ जाने के लिए मेला मैदान पहुंच कर पलिया या निघासन बस स्टैंड से बस द्वारा रास्ता है जो राजमार्ग से होकर करीब पांच किलो मीटर दूर लिलौटी नाथ धाम के पास उतरेगा। वहां से दो किलोमीटर पैदल या निजी वाहनों से रास्ता है जो सीधा मंदिर पर जाता है।
