नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के प्रतिनिधि सभा को भंग करने के आदेश को रद्द कर दिया है. अदालत ने सोमवार को पूर्व प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा को प्रधानमंत्री नियुक्त करने का आदेश भी दिया है. देउबा सहित 146 लोगों ने संसद भंग करने के फ़ैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी.याचिका में संविधान के अनुच्छेद 76(5) के अनुसार पूर्व प्रधानमंत्री देउबा की प्रधानमंत्री पद पर नियुक्ति की मांग की गई थी. सुप्रीम कोर्ट के सूचना अधिकारी देवेंद्र ढकाल के अनुसार संवैधानिक न्यायालय ने फैसला सुनाया है कि प्रधान मंत्री ओली को प्रतिनिधि सभा को भंग करने का कोई अधिकार नहीं है और अदालत ने उनके सभी फैसलों को पलट दिया है. उन्होंने बताया कि अदालत ने सात दिन के भीतर प्रतिनिधि सभा का सत्र बुलाने को कहा है.
ढकाल ने बीबीसी को बताया, “प्रधानमंत्री की नियुक्ति की 76 (5) प्रक्रिया के अनुसार, संवैधानिक सत्र के निर्णय में कहा गया है कि अगर सांसदों ने किसी अन्य पार्टी के नेता का समर्थन किया है तो उन पर पार्टी अधिनियम के तहत कोई व्हिप नहीं जारी किया जा सकता.”
सुप्रीम कोर्ट के सूचना अधिकारी ने कहा कि राष्ट्रपति कार्यालय के नाम से पूर्व प्रधानमंत्री देउबा को दो दिन के भीतर नियुक्त करने का आदेश जारी किया गया है क्योंकि प्रधानमंत्री पद के लिए उनके दावे पर 149 हस्ताक्षर हैं. विपक्ष ने फ़ैसले का स्वागत किया. सुप्रीम कोर्ट के आदेश का विपक्षी दलों ने स्वागत किया है. बीबीसी नेपाली से बात करते हुए नेपाली कांग्रेस के प्रवक्ता विश्वप्रकाश शर्मा ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश ने सत्तारूढ़ दल के फैसले को ठीक कर दिया है. न्होंने कहा, “सुप्रीम कोर्ट ने चीज़ों को संविधान के मुताबिक ट्रैक पर ला दिया है.”
सीपीएन-यूएमएल के वरिष्ठ नेता और पूर्व प्रधान मंत्री माधव कुमार नेपाल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने “निरंकुश प्रवृत्ति को नियंत्रित किया” उन्होंने बीबीसी से कहा, “आदरणीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय से संविधान की रक्षा हुई है. लोकतंत्र की रक्षा की गई है और संविधान की कानूनी व्याख्या की गई है” नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी सेंटर) के नेता देव गुरुंग ने सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के सही बताया है. उन्होंने कहा, “फैसला सकारात्मक है, फैसला सही है. हम इसका सम्मान करते हैं” जनता समाजवादी पार्टी के उपेंद्र यादव धड़े ने भी इस फैसले का स्वागत किया है.
दूसरी ओर, राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी (आरपीपी) के अध्यक्ष कमल थापा ने शीर्ष अदालत के फैसले को “राजनीतिक निर्णय” करार दिया. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ट्वीट किया कि “निर्णय को लागू करने में जटिलताएं पैदा होंगी” और देश “अस्थिरता की ओर बढ़ जाएगा”
ओली की पार्टी के क्या कहा?
सत्तारूढ़ सीपीएन-यूएमएल के प्रवक्ता ने कहा है कि नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा को प्रधानमंत्री के रूप में नियुक्त करने के सुप्रीम कोर्ट का आदेश “संविधान के बुनियादी ढांचे के ख़िलाफ़ है ” बीबीसी नेपाली से बात करते हुए प्रवक्ता प्रदीप ज्ञवाली ने कहा कि अदालत के हालिया फैसले ने कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका के बीच शक्ति और नियंत्रण के संतुलन पर सवाल उठाए. उन्होंने कहा किया कि नेपाल के संविधान ने सरकार के गठन के लिए कुछ प्रक्रियाएं निर्धारित की हैं लेकिन सर्वोच्च न्यायालय के आदेश ने संबंधित प्रावधानों का उल्लंघन किया है.
क्या है पूरा घटनाक्रम?
ओली 10 मई को संसद में विश्वास मत नहीं जीत पाए थे जिसके बाद राष्ट्रपति ने विपक्ष को 24 घंटे के अंदर विश्वास मत पेश करने का प्रस्ताव दिया था. नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देऊबा ने अपने लिए प्रधानमंत्री पद का दावा किया था और कहा था कि उनके पास 149 सांसदों का समर्थन है. नेपाल की राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी ने 22 मई को प्रधानमंत्री ओली की सिफ़ारिश पर संसद भंग कर नवंबर में चुनाव कराने का की घोषणा की थी. राष्ट्रपति कार्यालय ने कहा था कि न तो प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के नेतृत्व वाली केयरटेकर सरकार और न ही विपक्ष ये साबित कर पाया कि सरकार बनाने के लिए उनके पास बहुमत है. नेपाल की प्रमुख विपक्षी पार्टी नेपाली कांग्रेस ने राष्ट्रपति के इस फ़ैसले की आलोचना की थी और कहा था कि उनका ये क़दम असंवैधानिक है. इसके इस फ़ैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. नेपाली राष्ट्रपति ने पिछले साल दिसंबर में भी संसद भंग करने का फ़ैसला किया था लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने फ़रवरी में इसे असंवैधानिक क़रार देते हुए संसद को बहाल कर दिया था.