महान समाज सेवी बद्दल साव द्वारा किया गया अनेकों सामाजिक कार्य ।

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  • महान समाजसेवी थे बद्दल साव l
  • समाजसेवियों के नक्शे–कदम पर चलने का सबको प्रयाश करना चाहिए – बद्दल साव जी के वंशज राजेश कुमार गुप्ता

 


उत्तर प्रदेश जनपद आजमगढ़ के अंजानशहीद गांव के महान समाज सेवी बद्दल साव ने अंग्रेजों के समय में पानी, पूजा, व्यापार, रोजगार, कृषि, जन समुदाय के लिए रास्ते, परिवहन, स्नान आदि के लिए कुंए, पोखरी, घाट, मन्दिर, फलदार एवं छायादार वृक्षों, कन्या विवाह एवं अन्य सामाजिक प्रतिष्ठान का निर्माण करवाया। स्मृतिशेष बद्दल साव जी व उनके वंशजों द्वारा बनवाये मन्दिरों में हवन-पूजन, भजन-किर्तन व प्रत्येक वर्ष मेले का आयोजन होता रहता है। जिनके कुछ स्मारक आज भी जीवन्त है। मालटारी से एक मिल दूर है ऐतिहासिक धरोहर मझौवां प्राचीन मन्दिर, कुआंव नील गोदाम आदि । तहसील सगड़ी अंतर्गत मझौवां ग्राम पंचायत भदांव में आजादी से पहले अंग्रेजो की समय की बात है और अंग्रेजी हुकूमत तक जमींदारी प्रथा चलीं बाद में चौधरी चरण सिंह के प्रयास से 1 जुलाई 1952 में यूपी में जमींदारी प्रथा खत्म हुआ। इसके बाद उन्होंने किसानों के हित के लिए वर्ष 1954 में उत्तर प्रदेश भूमि संरक्षण कानून को पारित करवाया। जमींदारों को पेंशन के रूप में कुछ रकम दिया जाने लगा। साल 1906 में रजिस्टर्ड किया गया। श्री ठाकुर जी के नाम से पंचदेव मंदिर जमींदार बद्दल साव द्वारा बनवाया गया। पंचदेव प्राचीन मंदिर अत्यंत भव्य व पुराना है व नील गोदाम, कुआं, तालाव, पक्का फोखरा जो चुने मिट्टी आदि से निर्मित है। कच्चा पोखरा फलदार वृक्षों का बाग जो आज भी जीर्ण शीर्ण अवस्था में एक धरोहर के रूप विद्ययमान है और साथ ही साथ

इनके द्वारा बसाया गया था मझौवां गांव जैसे 16 आना यानी 350 बिगहे में मझौवा, भदाव, बटसरा, बोझियां के साथ अन्य गांव में जमींदारी रही जैसे 2 आना हरैया, 16 आना लंगपुर, 16 आना नुरूदीनपुर, 4 आना अंजानशहीद लोगों का कहना है कि नुरुद्दीनपुर घाट, ओझौली घाट से लेकर दोहरी घाट तक लगभग 40 गांव में जमींदारी थी उस समय उनके द्वारा किसानों से लागान वसूला जाता था और हुकूमत को कर के रूप जमा किया जाता था जो आज भी वर्तमान सरकारें किसानों से कर के रूप में लागान ले रही है। उस जमाने में कई

जमींदार हुआ करते थे। जैसे अजमतगढ़ स्टेट के जमींदार लोग बताते हैं कि इनके द्वारा बावनो जिलों में कोठी बनवाया गया था जो आज भी कहीं-कहीं मौजूद है। हरेवा के काशी बिरजा रॉय, केशव रॉय, दोनों भाई व वर्तमान निवासी सोहरेया हाफिज (मिर्जा की छावनी) बरकोठा के जमींदार थे। छोटक पाण्डेय, ऐसे छोटे बड़े बहुत से जमींदार हुआ करते थे। लोग बताते हैं कि उस समय गडीत के रूप में हुच्चा, पहुँच्चा, डेढा, सवईया, पवन्ना का प्रचलन था। बद्दल साव द्वारा सबसे पहिले मझौवां ग्राम पंचायत भदाव में कोठी व बाद में एक बिगहे में पंचदेव

मंदिर का निर्माण, मंदिर के आगे पीछे फलदार वृक्षों का बाग, तालाब व कई गांवों में सैकड़ों कुवां और साथ ही साथ व्यापार व रोजगार लिये निल गोदाम (नील का उत्पाद के लिये) भी निर्माण करवाया गया था। अंजानशहीद गांव में पक्का व कच्चा पोखरा बोझियां से मझौवां आने जाने के लिए पुल जो साहूवा के पुल के नाम से मशहूर था नदियों के किनारे घाट का निर्माण डेढ़ सौ वर्ष पूर्व करवाया गया था जो आज भी साक्ष्य के रूप में मौजूद हैं। जैसे नुरूदीनपुर व ओझौली में नदी के किनारे घाट। लोग बताते हैं सबसे पहले क्षेत्र में बाजार मझौवां

में लगता था। बाद में मालटारी बाजार


हुआ वहाँ के निवासी लोगों द्वारा बताया गया कि बीसों गांव का बाजार हुआ करता था। मन्दिर प्रांगण में आज भी मेले का आयोजन होता रहता है। हर वर्ष तेरस के दिन मेले का आयोजन जमोदार बदल साव के वंशज द्वारा करवाया जाता है। इस गांव में मंदिर प्रांगण में सन् 1960 के पूर्व रामलीला का आयोजन हुआ करता था डेढ़ सौ वर्ष पूर्व से ही मंदिर प्रांगण में मेले का आयोजन होता चला आ रहा है।
यह सब रिकॉर्ड 1956 व 59 के अभिलेखों के साथ साथ वर्तमान समय में साक्ष्य के रूप में मौजूद है। आज भी पुराने लोग बताते हैं कि जमींदार बद्दल साव को जहां भी मानव जाति के कल्याण के लिए पानी की आवश्यकता होती थी वहां कुवें और तालाब खुदवा कर निर्माण करवा देते थे लोगों कहना है कि उन्हें जहां प्यास लगती थी वहां कुवाँ खुदवा दिया करते थे। लोग बताते हैं कि

पूर्व के समय में कुर्वे के माध्यम (रहट)


से ही खेतों की सिंचाई और पीने का पानी का इस्तेमाल कुएं द्वारा ही किया जाता था तव के समय में हैंडपम्प ट्यूवेल और लाइट की व्यवस्था नहीं होती थी। इस तमाम जीर्ण शीणं और पुराने धरोहरों को बरकरार रखने के लिए वर्तमान सरकार को अपनी नजरें इनायत करने की आवश्यकता है। जैसे मंदिर का जीर्णोद्धार पक्के पाखरे का सुंदरीकरण व टूटी हुई सीढ़ियों की मरम्मत पटते जा रहे कुओं की सफाई और वृश्चों का रोपण आदि तमाम पुराने धरोहरों को संवारने की आवश्यकता है। जैसे बद्दल साव जी द्वारा समाज हित के लिए पक्के व कच्चे पोखरे व कई घाटों व सैकड़ों कुओं का निर्माण ,राहगीरों मुसाफिरों व पुजारियों के धर्मशाला व गोशाला का निर्माण,उनके द्वारा छेत्र में हजारों की संख्या में फलदार व छायादार वृक्ष लगाएं गए, उनके द्वारा रोजगार एवं व्यापार के लिए नील गोदाम का निर्माण उनके द्वारा श्री ठाकुर जी रामजानकी पंचदेव मंदिर का निर्माण ,बद्दल साव के सुपौत्र रामप्रसाद व रामप्यारे साव के द्वारा शिव मंदिर व डीह काली मंदिर व रविदास मंदिर का निर्माण कराया गया है। और कई गांवों में अपनी भूमि समाज के लिए समर्पित करते हुवे कच्चे रास्ते व पूल भी बनवाया गया है|