कभी उनकी दुकानें थी गुलज़ार, अब हैं भूखमरी का शिकार
टोपी-बेल्ट और चश्मा व्यवसाईयों का बुरा है हाल
ब्यूरो चीफ गोरखपुर, हरेंद्र यादव
गोरखपुर। शहर में अतिक्रमण के नाम पर सड़क की पटरियों के किनारे दुकान लगाकर पिछले कई सालों से रोटी का जुगाड़ करते चले आ रहे लोगों को उजाड़ दिया गया। पटरी, ठेला और खोमचे वालों का ये वो वर्ग है जिनका हमेशा मन्दिर से सीधा जुडाव रहा है। इनमें से कुछ इतने पुराने हो चुके थे की उस पटरी व्यवसाय के नाम से उस सड़क की पहचान हो गई।
ऐसा ही एक व्यवसाय था टोपी चश्मा और बेल्ट का । बैंक रोड़ पर सड़क के बिल्कुल किनारे दीवारों से सटे लगने वाली इन दुकानों से लोगों को कम कीमत पर स्टाइलिश टोपी बेल्ट और चश्मा मिल जाया करता था।
एक तरफ आमजनों को कम कीमत पर प्रसिद्ध ब्रांडों की कॉपी मिल जाती थी तो दिनभर धूप में जलने के बाद यहाँ दुकान लगाने वाले अपने बच्चों के लिए टूटी फूटी शिक्षा के साथ दो रोटी और कुछ खिलौनों का इंतेज़ाम कर लेते थे।
लेकिन पुलिस और प्रशासन की सख्ती ने अब उनका रोजगार क्या छिना उनके घर से खुशियाँ बिदा हो गई और जमापूंजी खत्म होने के बाद परिवार के लिए अब रोटी जुटाना मुहाल हो रहा है।
लाखों रोजगार देने का दावा करने वाली योगी सरकार के अपने शहर में देखते ही देखते टोपी चश्मा बेचने वाले दर्जनों लोग बेरोजगार हो गए अगर दूसरे पटरी व्यवसाइयों को भी जोड़ लें तो ये तादाद सैकडों का आंकडा लांघ जा रही है। जिला प्रशासन ने उन्हें बिना किसी समायोजन के उजाड़ दिया जिससे वो अब दर दर की ठोकर खाने को मजबूर हैं।
बहरहाल शहर में सीएम का खास बनने की होड़ में लगे अफसर तेज़ी से उन्हीं लोगों पर हमलावर हैं जो कभी योगी जी की ताक़त हुआ करते थे।