ब्यूरो रिपोर्ट- प्रेम कुमार शुक्ल,अमेठी
अमेठी। 09 नवम्बर, पंडित गोकुल प्रसाद इ.कालेज अमेरूआ के प्रांगण में पर्यावरण एवं जलवायु के बदलते स्वरूप बिषय पर एक संगोष्ठी आयोजित की गयी। संगोष्ठी का शुभारम्भ माँ सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्वलन के साथ किया गया ।
संगोष्ठी के मुख्य अतिथि अमेठी जल विरादरी के संयोजक पर्यावरणविद डा. अर्जुन पाण्डेय ने अपने उद्बोधन में कहा कि अजैविक तत्व स्थल, जल, वायु एवं सूर्य प्रकाश तथा जैविक तत्व वृहद एवं सूक्ष्म पेड़- पौधे ,जीव जन्तु, कीडे -मकोड़े एवं मानव सब मिलकर पर्यावरण की संरचना करते हैं। यदि प्रकृति प्रदत्त समस्त वस्तुएं अपने – अपने क्षेत्र में यथावत क्रियाशील रहेंगी तो इससे न केवल प्रकृति को संरक्षण मिलेगा साथ ही मानव स्वंय सुरक्षित रहेगा।प्रकृति तो मानव की आवश्यकताओ की आपूर्ति कर सकती है न कि उसके लोभ-लालच की।आवश्यकता इस बात की है कि प्रकृति द्वारा उपहार स्वरूप प्राप्त वस्तुओं का अनुकूलतम उपयोग माता भूमि: पुत्रोंऽहं पृथिव्या:की भावना से करें अन्यथा प्रकृति अपना समायोजन आपदाओं के माध्यम से स्वयं कर लेगी।आज हमें पाश्चात्य भोगवादी संस्कृति से बचने की जरुरत है।
संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुये जीव विज्ञानी डा. रामचन्द्र सिंह ने कहा कि आज मानव कथित विकास की आँधी का शिकार है जो पर्यावरण सन्तुलन बिगाड़ने में लगा है ,जो घोर चिन्ता का बिषय है। वह भूल गया है कि प्रकृति की समस्त वस्तुएं उसी के लिये बनी हैं।सत्येन्द्र प्रकाश शुक्ल ने कहा कि हमारे पूर्वज प्रकृति को भली -भाँति समझते थे, जो तुलसी के साथ भूमि,जल वायु, सूर्य एवं,हाथी और शेर जैसे हिंसक की परम्परागत पूजा करते थे।आज जिसे नयी पीढी को समझने की जरुरत है।मोहनलाल पाण्डेय ने कहा कि जलवायु में बढते हुये परिवर्तन के दृष्टिगत अंधाधुंध वृक्षो के कटान पर रोक न लगी तो इससे प्राणिजगत को भयंकर परिणाम भुगतना होगा।पारसनाथ तिवारी ने कहा कि पर्यावरण सन्तुलन हेतु,पीपल,बरगद,गूलर,पाकड़,नीम,आदि पंचवटी लगाना अपरिहार्य है।सबके प्रति आभार व्यक्त करते हुये प्रबन्धक मनोज कुमार द्विवेदी ने कहा कि प्राचीन परंम्पराओ से आज की पीढी को सीख लेनी की जरूरत है।इस संगोष्ठी में जगदीश प्रसाद मौर्य,अमरनाथ,संजय यादव, नन्दलाल, शिवप्रसाद मिश्र,वन्दना, ललिता आदि ने भी सम्बोधित किया।