गोरखपुर क्षेत्र के चार बीजेपी विधायकों के कटेंगे टिकट ..

गोरखपुर लखनऊ

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विधानसभा चुनाव 2022 के लिए अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए सभी पार्टियां कठोर निर्णय ले रही हैं. भाजपा भी ऐसे निर्णय लेने की तैयारी में है. गोरखपुर में 2017 में 8 विधानसभा सीटों पर जीतने वाली भाजपा चार सीटों पर बदलाव लगभग तय हो गया है. इसकी सुगबुगाहट संगठनात्मक बैठक में भी दिखने लगी है.

गोरखपुर: सत्ता और सरकार में रहने वाली राजनीति पार्टी सत्ता में वापसी के लिए सभी प्रकार के दांव आजमाने की कोशिश करती है. भारतीय जनता पार्टी कुछ ऐसे ही परिणाम के लिए कठोर निर्णय लेने की तैयारी में दिखाई दे रही है खासकर गोरखपुर जिले में. जिले की 9 विधानसभा सीटों में 8 विधानसभा सीटों पर 2017 के चुनाव में बीजेपी के विधायक चुने गए हैं, लेकिन आने वाले 2022 के विधानसभा चुनाव में इन 8 में से 4 का टिकट कटना लगभग तय हो गया हैं. वहीं, बाकी 5 सीटों में बीजेपी एक पर चुनाव हारी थी.

पार्टी ने यह भी तय किया है कि हारे हुए प्रत्याशी को चुनाव मैदान में नहीं उतारेंगे. ऐसे में माना जा रहा है कि चिल्लूपार विधानसभा सीट पर पूर्व के प्रत्याशी राजेश त्रिपाठी की जगह कोई नया चेहरा मैदान में लाया जा सकता है. बसपा से भाजपा में आए राजेश त्रिपाठी को बीजेपी चुनाव से पहले संभवत संगठन में कहीं एडजेस्ट भी कर सकती है. उनकी पहचान क्षेत्र में संघर्षरत और धार्मिक कार्यों में सजग रहने वाले नेता की मानी जाती है. इन चारों सीट पर जो गणित बन रही है उसका फीडबैक संघ और बीजेपी ने लेने के बाद, प्रत्याशी परिवर्तन और नए नामों पर मंथन भी शुरू कर दिया है.

गोरखपुर की जिन 4 विधानसभा सीटों के बीजेपी विधायकों के टिकट कट सकते हैं उनमें सहजनवा, बांसगांव, चौरी-चौरा और खजनी शामिल हैं. इन सीटों पर ऐसे संकेत इसलिए मिल रहे हैं क्योंकि सहजनवा के बीजेपी विधायक शीतल पांडेय अपनी उम्र और स्वास्थ्य की वजह से अपने टिकट को गवां सकते हैं. खजनी के विधायक संत प्रसाद भी अपनी उम्र और सक्रियता में कमी की वजह से टिकट पाने से वंचित हो सकते हैं. हालांकि वह तीन बार विधायक चुने जा चुके हैं.

बांसगांव विधानसभा क्षेत्र के विधायक डॉक्टर विमलेश पासवान लोगों में अपनी लोकप्रियता स्थापित न कर पाने और मिलनसार व्यक्तित्व न होने से अपना टिकट गवां सकते हैं. हालांकि इन्हें टिकट भी इनके बड़े भाई भाजपा सांसद कमलेश पासवान की वजह से मिला था. इनका अपना कोई राजनीतिक बैकग्राउंड नहीं है. बात करें चौरी चौरा विधानसभा क्षेत्र की तो 2017 में पहली बार इस सीट से महिला प्रत्याशी के रूप में संगीता यादव चुनी गई थीं.

यह क्षेत्र में अपनी सक्रियता से टिकट नहीं पाई थीं और विधायक बनने के बाद भी इनकी सक्रियता में संगठन ने कमी महसूस की. ब्लॉक प्रमुख चुनाव के दौरान इनपर एक जाति विशेष को मदद पहुंचाने का आरोप लगा है. भाजपा हाईकमान अपने सभी ऐसे विधायकों की गतिविधियों की जानकारी जहां अपने स्थानीय नेताओं से ले रहा है, वहीं पूर्वांचल को मथने के लिए संघ की भी जो टीम काम कर रही है उसका फीडबैक भी इन विधायकों के प्रति ठीक है नहीं है. ऐसे में यह लगभग तय हो चुका है कि 4 विधानसभा सीटों पर प्रत्याशी बदले ही जाएंगे. पांचवीं सीट पर भी नया प्रत्याशी होगा जहां बसपा चुनाव जीती हुई है.

रिपोर्ट के अनुसार, क्षेत्र में सक्रियता की कमी और मिलनसार व्यक्तित्व के अभाव में दो लोग निश्चित रूप से अपना टिकट गवाएंगे. बाकी दो लोगों के क्षेत्रों में विरोधी दल के नेता अपने जातीय और सामाजिक समीकरण को ठीक करते हुए बीजेपी के विधायकों से ज्यादा सक्रियता बढ़ाएं हुए हैं. गोरखपुर नगर विधानसभा सीट का टिकट यदि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ चुनाव लड़ते हैं तो यह भी बदल जाएगा. वहीं, संघ के एक पूर्व पदाधिकारी पद मुक्त होकर नगर विधानसभा से टिकट के लिए अपनी सक्रियता बढ़ा दिए हैं.

हारी हुई सीटों पर जीत पक्की करने के लिए बीजेपी ने निकाला है ये फॉर्मूला

जिन विधायकों को अपने टिकट कटने की आशंका समझ में आ गई है उन्होंने गोरखपुर से लेकर लखनऊ तक दौड़ लगाना भी तेज कर दिया हैं. वजह यह है कि शीर्ष नेतृत्व की बैठकों के माध्यम से ऐसे विधायकों तक संदेश पहुंच भी चुका है. बीजेपी शीर्ष नेतृत्व जानता है कि प्रत्याशी के चेहरे से ज्यादा पिछले चुनाव में उसे पार्टी के बैनर ने सफलता दिलाई थी. इसलिए नया चेहरा भी चुनाव जीत सकता है, जबकि सवालों के घेरे में खड़े पार्टी के विधायक शायद हार का कारण बन सकते हैं. जिन विधायकों के टिकट कटने की स्थिति बनी है, उसकी सुगबुगाहट संगठनात्मक बैठक में भी दिखने लगी है.

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