व्यावसायिक कंपनी होते हुए भी सेवा धर्म भूलते सरकारी बैंक के कर्मचारी
ब्यूरो रिपोर्ट – प्रेम कुमार शुक्ल, अमेठी
अमेठी। जनपद के सरकारी बैंकों के अधिकारी व कर्मचारी निरकुंश और ग्राहक प्रतिकूल व्यवहार करने को अपना अधिकार समझते जा रहे हैं। कईयों को तो शायद याद भी नहीं कि वो एक व्यावसायिक कंपनी में काम करते हैं जिसको भारत सरकार ने अधिग्रहीत कर रखा है तथा जो लाभ के उद्देश्य से काम करती है। इसीलिए देश के केंद्रीय बैंक यानी रिजर्व बैंक ने प्रत्येक बैंक के लिए ग्राहक से व्यवहार करते समय आदर्श आचार संहिता का पालन करने को कहा है। किंतु, जैसे ही गाँव से बैंक तक पहुँचा व्यक्ति साहब या सर कह के बैंक के कर्मचारी को संबोधित करता है वो एक बड़े नौकरशाह की भांति व्यवहार करते हैं और अपना सेवा धर्म ही भूल जाते हैं। आलम यह है कि जितना बड़ा बैंक उतना ही ज्यादा आदर्श आचार व्यवहार का उलंघन साफ अनुभव किया जा सकता है। शायद ही कोई आम व्यक्ति ऐसा होगा जिसने यह महसूस ना किया हो!
बैंक का प्रमुख काम जमा स्वीकार करना तथा लोन देना है जिसे फंड बेस्ड कार्य कहते हैं। क्योंकि जमा पर कम व्याज और लोन पर अधिक ब्याज तथा दोनों के अंतर को जिसे स्प्रेड कहते हैं से ही बैंक का मुख्य मुनाफा आता है। लेकिन दुखद यह है कि जैसे ही कोई आम व्यक्ति मुद्रा लोन का सपना लिए बैंक अधिकारी के सामने लोन की बात कहता है उसे प्रतिकूल दृष्टि और आचरण से गुजरना पड़ता है। बैंक के ज्यादातर क्रेडिट आफिसर और प्रबंधक यह फिर से भूल जाते हैं कि बैंक के बैलेंस शीट में लोन एसेट होता है। एक शोध के अनुसार भारत मे छोटे लोन की तुलना में बड़े लोन के एनपीए ज्यादा हैं। क्योंकि छोटे ऋण धारक लोन को एक बड़ा दायित्व मांगते हैं और हर कीमत पर उसे चुकाना चाहते हैं। लेकिन बड़े लोगों जी ‘ऋणम कृत्वा घृतं पीवेत’ संस्कृति का अनुकरण करते हैं उन्हें चाय और काफी के फ्रिंज बेनिफिट के साथ लोन मिल जाता है और गाँव के किसान को किसान क्रेडिट कार्ड के लिए भी चक्कर लगाने पड़ते हैं। कहीं कहीं तो एन ई सी के नाम पर बड़ा चार्ज लगाया जाता है वह भज कैश में किसान से लिया जाता है। जबकि रिजर्व बैंक ने कहा है कि लोन संबंधी सभी चार्ज खाते से ही डेबिट किया जाए। जिला अग्रणी प्रबंधक को इस संबंध में कुशल समन्वयक की भूमिका निभाने की जरूरत है।