मुहब्बत जो मिल रही है सफर में —-!

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  • मुहब्बत जो मिल रही है सफर में —-!
  • ये सिला रातों रात का नहीं है!—–!
  • उम्र गुजारी है तिल तिल के जनाब!——-?
  • ये समन्दर कोई एक वर्षात का नहीं है—-!!

मेरी लिखी हुई बात को हर कोई समझ नहीं पाता क्यों की मैं एहसास लिखता हूं और लोग अल्फ़ाज़ पढ़ते हैं।जीवन की बहती धारा में यूं तो गुजारा सबका हो रहा है मगर कोई चाह् की बस्ती में मस्ती से मचल रहा है किसी का हर दिन जंग लड़ते गुजर कर हर लम्हा खल रहा है।किसी किसी की हर शाम रंगीन है किसी की हर सुबह गमगीन है किसी की भाग्य शाली है कोई भाग्य हीन है!जनाब जो बोया उसकी फसल भी तो काटनी है।मानव जीवन में प्रारब्ध के साथ उपलब्ध कर्म के साथ ही जीना पड़ता है।मालिक के दरबार से सबको बराबर का अधिकार देकर ही इस जहां में भेजा जाता है।लेकिन अपने अपने कर्म के बल पर ही प्रतिफल नसीब होता है।कोई अमीर है कोई गरीब है कोई खाते खाते मर रहा है कोई खाने बिना मर रहा है।वक्त के साथ अपने को जिसने ढाल लिया वह खुशहाली पाल लिया!आसानी से जिन्दगानी में धन दौलत शोहरत नसीब नहीं होती!इसके लिए कड़ी मेहनत पक्का इरादा के साथ वक्त की भट्ठी में जलना पड़ता है। त्याग तपस्या के साथ हर समस्या से निपटना पड़ता है।
सांसों का क्या भरोसा आज है न कल रहेगा! इस फल सफा को याद कर हर लम्हा जिसने जिया वही मन्जिल पर पहुंच कर इन्सानियत का झन्डा बुलन्द कर दिया! वक्त सबका बदलता है मालिक सभी को मौका देते हैं जिसने अपने को सम्हाल लिया वह जगत नियन्ता के दरबार में समय का अभियन्ता बनकर इस मतलबी संसार में अपार सुख के अनुभव के साथ अपना आखरी सफर भी पूरा कर लिया जिसके समझ में नहीं आया उसी ने अपना सुख चैन सब कुछ गंवाया दिया!इस मतलब की बस्ती में केवल तिजारत का खेल है! स्वार्थ के निहितार्थ ही रिश्ते नाते परमार्थ के तराजू पर तौले जाते हैं!यह परम्परा आदि अनादि काल से सवाल बनकर इस जहां में प्रतिबिम्बित हो रहा है।समय के समन्दर में हलचल है तबाही का मंजर हर तरफ नजर आ रहा है।मानवता खतरे में है पूरी दुनियां टकराव के रास्ते पर चल निकली है।सार्वभौम सत्ता के लिए इन्सानी बस्तियों में बमबारी हो रही है आह और कराह के दर्द भरी आवाज से कायनात का मालिक नाराज हैं।मिटने के कगार पर खड़ी है दुनियां! ऐसे में इन्सानी जिन्दगी के लिए बस भरोसा उपर वाले का ही रह गया है।वैश्विक स्तर पर रहबर अपनी बुलन्दी के आगाज के लिए दिन रात घात प्रतिघात कर रहे हैं।कभी बिश्व गुरू रह चुका भारत एक बार फिर कर्म की खेती में उम्दा फसल पैदा करने वाले सन्यासी के सियासी खेल के चलते उसी राह पर चल निकला है।वर्तमान स्वाभिमान के साथ अपने सम्मान को बचाते हुए आसमान के बुलन्दी पर है|


– जगदीश सिंह

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