जीवित पुत्रीका पर्व पर महराजगंज की बाजारों में उमड़ी भीड़: माताओं ने किया व्रत से जुड़ी वस्तुओं की ख़रीदारी, चेहरे पर दिखी संतोष और श्रद्धा की झलक

जीवित पुत्रीका पर्व पर महराजगंज की बाजारों में उमड़ी भीड़: माताओं ने किया व्रत से जुड़ी वस्तुओं की ख़रीदारी, चेहरे पर दिखी संतोष और श्रद्धा की झलक

संवाददाता: अजय मिश्र, महराजगंज, आजमगढ़

जीवित पुत्रीका पर्व के शुभ अवसर पर महराजगंज सहित आजमगढ़ के आस-पास के बाजारों में अभूतपूर्व चहल-पहल देखी गई। माताओं की भारी भीड़ ने इस पवित्र दिन के लिए व्रत संबंधी सामग्री की जमकर खरीदारी की, जिससे बाजारों में एक विशेष उत्साह और भक्ति का माहौल बन गया।

यह पर्व माताओं के अपार प्रेम, समर्पण और संतान के प्रति असीम ममता का प्रतीक है। अपने पुत्रों की लंबी उम्र, स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि की कामना के लिए माताएं इस पर्व को हर साल कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन बड़े श्रद्धा और समर्पण के साथ मनाती हैं। इस दिन का महत्व धार्मिक आस्था और सांस्कृतिक परंपराओं में गहराई से जुड़ा हुआ है, और इसे पूरे उत्साह के साथ मनाया जाता है।

बाजारों में उत्साह और भक्ति का अद्वितीय दृश्य
महराजगंज की सड़कों और बाजारों में माताओं की भीड़ ने पूरे क्षेत्र में रौनक और उमंग की लहर पैदा कर दी। व्रत की तैयारी के लिए हर कोई आवश्यक वस्तुएं जैसे पूजन सामग्री, फल-फूल, और मिठाइयां खरीदने में व्यस्त नजर आया। दुकानों पर भारी भीड़ होने के बावजूद, हर एक चेहरे पर संतोष और श्रद्धा की झलक साफ दिखाई दे रही थी। माताएं अपने पुत्रों की सलामती और सुखी जीवन की कामना करते हुए पूरे मनोयोग से खरीदारी करती रहीं।

जीवित पुत्रीका का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
यह पर्व केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं है, बल्कि माताओं के अनंत प्रेम और अपने बच्चों के प्रति उनके समर्पण का प्रतीक है। मान्यता है कि इस दिन माता पार्वती ने अपने पुत्र गणेश को पुनर्जीवित करने के लिए कठोर तप किया था, और भगवान शिव ने उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें आशीर्वाद दिया। उसी श्रद्धा के साथ माताएं आज भी जीवित पुत्रीका व्रत करती हैं, यह पर्व न केवल धार्मिक मान्यताओं का पालन है बल्कि सामुदायिक एकता और आध्यात्मिकता का भी प्रतीक है।

महराजगंज और आसपास के इलाकों में इस पवित्र पर्व का उत्साह सुबह से ही देखा जा रहा था। मंदिरों में पूजा-पाठ का आयोजन किया गया, जहां महिलाएं अपनी संतानों के स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए प्रार्थना करती नजर आईं।

समाज में संस्कृति और परंपरा का संदेश
जीवित पुत्रीका पर्व, भारतीय समाज में मातृत्व की भूमिका को उजागर करता है। यह न केवल धार्मिक पर्व है, बल्कि संस्कृति, संस्कार और परंपराओं को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचाने का सशक्त माध्यम भी है। इस पर्व में माताओं की भूमिका केवल धार्मिक नहीं होती, बल्कि यह समाज में उनकी अहमियत और उनके द्वारा निभाई जाने वाली जिम्मेदारियों का सम्मान भी है।

स्थानीय बाजारों में रौनक और उत्साह
पर्व के चलते महराजगंज के बाजारों में जहां रौनक थी, वहीं स्थानीय व्यापारियों को भी बड़ा लाभ मिला। दुकानदारों ने बताया कि इस पर्व पर बाजार में विशेष उत्साह रहता है, और माताएं अपने पुत्रों के लिए समर्पण के साथ सामग्री खरीदती हैं। बच्चों के लिए कपड़े, मिठाइयां और पूजन सामग्री की बिक्री में इज़ाफा हुआ।

अंतिम विचार: माताओं के समर्पण का प्रतीक
जीवित पुत्रीका पर्व हर साल हमें मातृत्व की अद्वितीय शक्ति और समर्पण की याद दिलाता है। महराजगंज में इस पर्व का उल्लास देखते ही बनता है। यह पर्व न केवल धार्मिक आस्था और परंपराओं का उत्सव है, बल्कि यह माताओं की अपने बच्चों के प्रति अनमोल ममता और समर्पण का प्रतीक भी है।

इस अवसर पर बाजारों में आई भीड़ और माताओं के चेहरे पर दिखाई देने वाली श्रद्धा और संतोष ने इस पर्व को और भी विशेष बना दिया है। हर ओर धार्मिक आस्था और सामाजिक एकता की एक खूबसूरत तस्वीर नजर आई, जो इस पर्व की असली भावना को दर्शाती है।

जीवित पुत्रीका: माताओं की ममता और संस्कृति का अद्वितीय संगम!