भारत की समुद्री विरासत का सम्मान करते हुए 22,000 से अधिक नौकरियों का सृजन होगा
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए गुजरात के लोथल में राष्ट्रीय समुद्री विरासत परिसर (एनएमएचसी) के विकास को स्वीकृति प्रदान कर दी है। पत्तन, पोत परिवहन एवं जलमार्ग मंत्रालय के नेतृत्व में इस पहल का उद्देश्य भारत की व्यापक समुद्री विरासत को प्रतिष्ठित करना और उसे पुनः स्थापित करना है, जो 4,500 वर्षों से अधिक पुरानी है।
लोथल इस प्राचीन धरोहर का एक महत्वपूर्ण केंद्र रहा है और यह फिलहाल एक परिवर्तनकारी यात्रा के लिए तैयार है। इसकी आधारशिला मार्च, 2019 में रखी गई थी और अब एनएमएचसी को दुनिया के सबसे बड़े समुद्री परिसरों में से एक बनाने की परिकल्पना की गई है। इस परियोजना को दो चरणों में पूरा किया जाएगा, जिनमें से प्रत्येक को आगंतुकों के अनुभव एवं शैक्षिक प्रभाव को बढ़ाने के लिए तैयार किया गया है। इसमें प्राचीन अवशेषों से लेकर आधुनिक सम्पदा तक की समृद्ध कलाकृतियों को संग्रहित व प्रदर्शित किया जाएगा, जिसकी भूमिका एक शैक्षिक मंच के रूप में होगी और जो आगंतुकों को हमारे समुद्री इतिहास की गहराई को जानने तथा समझने के लिए प्रेरित करेगा। यह केंद्र अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस होगा और यह हमारे अतीत, वर्तमान व भविष्य के समुद्री प्रयासों को एकीकृत करेगा। यह साथ में ही शिक्षा एवं मनोरंजन का एक अनूठा मिश्रण भी प्रदान करेगा। यहां पर आगंतुकों को संवादात्मक और विशेष अनुभवों के माध्यम से लोथल की वास्तुकला के वास्तविक आकार के चित्रण देखने को मिलेंगे, जिससे उन्हें प्राचीन नाविकों एवं व्यापारियों के चरित्र को समझने का अवसर प्राप्त होगा। एनएमएचसी ज्ञान का एक प्रकाश स्तंभ बन कर हमारे सामने उपस्थित होगा, जो आने वाली पीढ़ियों के समक्ष हमारी समुद्री विरासत की समृद्धि को प्रदर्शित करेगा।
परियोजना अवलोकन और प्रभाव
राष्ट्रीय समुद्री विरासत परिसर (एनएमएचसी) एक बहुआयामी परियोजना है, जिसमें कई प्रमुख घटक भी होंगे। इन अलग-अलग सुविधाओं में 14 दीर्घाओं वाला एक संग्रहालय, लोथल टाउन और ओपन एक्वेटिक गैलरी, एक लाइटहाउस संग्रहालय, एक बगीचा परिसर, कोस्टल स्टेट पवेलियन तथा लोथल शहर का पुनर्निर्माण शामिल है। परिसर की अतिरिक्त सुविधाओं में इको-रिसॉर्ट, एक म्यूजियोटेल, थीम-आधारित पार्क और एक छात्रावास के साथ ही एक समुद्री अनुसंधान संस्थान बनाने का विचार स्वीकार किया गया है। इस महत्वाकांक्षी कार्य योजना का उद्देश्य न केवल पर्यटन को बढ़ावा देना है, बल्कि इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण रूप से रोजगार के अवसर सृजित करना और स्थानीय व्यवसायों को पुनर्जीवित करना भी है।
लोथल में सरगवाला गांव के पास स्थित एनएमएचसी भारत की समृद्ध एवं विविध समुद्री विरासत को प्रदर्शित करने और संरक्षित करने के लिए एक केंद्र के रूप में कार्य करेगा। प्रस्तावित परियोजना में प्राचीन जहाज निर्माण, नौवहन प्रौद्योगिकियों व ऐतिहासिक जुड़ावों से संबंधित कलाकृतियों को प्रदर्शित किया जाएगा और साथ ही समुद्री अनुसंधान सीमाओं के अलावा सामाजिक तथा सांस्कृतिक संबंधों को भी उजागर किया जाएगा।
लोथल अहमदाबाद जिले के धोलका तालुका में आता है और यह राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 47 तथा राज्य राजमार्ग संख्या 8 के निकट स्थित है, जो अहमदाबाद, भावनगर तथा राजकोट जैसे प्रमुख शहरी केंद्रों को उत्कृष्ट सड़क संपर्क प्रदान करता है। इसके अतिरिक्त, यह अहमदाबाद-भावनगर रेलवे लाइन पर लोथल-भुरखी रेलवे स्टेशन से लगभग छह किलोमीटर दक्षिण-पूर्व में स्थित है। यह पुरातात्विक स्थल तीन गांवों से घिरा हुआ है: सरगवाला, उतेलिया और गुंडी, जहां पर कृषि कार्य मुख्य व्यवसाय है।
पत्तन, पोत परिवहन एवं जलमार्ग मंत्रालय (एमओपीएसडब्ल्यू) ने एनएमएचसी के कार्यान्वयन की देखरेख के लिए भारतीय बंदरगाह संघ को नोडल एजेंसी के तौर पर नियुक्त किया है, जबकि भारतीय बंदरगाह रेल निगम लिमिटेड (आईपीआरसीएल) कार्यान्वयन एजेंसी के रूप में कार्य करेगी। प्रसिद्ध वास्तुकला फर्म मेसर्स आर्किटेक्ट हफीज कॉन्ट्रैक्टर द्वारा इसका मास्टर प्लान तैयार किया गया है, जबकि चरण 1 ए का निर्माण कार्य टाटा प्रोजेक्ट्स लिमिटेड को सौंपा गया है। गुजरात सरकार ने परियोजना के विकास के लिए 400 एकड़ भूमि आवंटित की है और वह बाह्य अवसंरचना तथा बुनियादी आंतरिक अवसंरचना के कुछ भाग को बढ़ाने के लिए भी प्रयासरत है।
एनएमएचसी के विकास से लगभग 22,000 नौकरियां सृजित होने की उम्मीद है, जिनमें लगभग 15,000 प्रत्यक्ष और 7,000 अप्रत्यक्ष रोजगार के अवसर होंगे। इस परिसर के कार्यान्वयन से न केवल आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि स्थानीय समुदायों, पर्यटकों, शोधकर्ताओं, विद्वानों, सरकारी निकायों, शैक्षिक संस्थानों, सांस्कृतिक संगठनों, पर्यावरण व संरक्षण समूहों तथा व्यवसायों को भी काफी लाभ होगा, जिससे एक जीवंत इकोसिस्टम को बढ़ावा मिलेगा और यह भारत की समुद्री विरासत को बड़े पैमाने पर प्रदर्शित करेगा।
लोथल का ऐतिहासिक महत्व
लोथल एक ऐसा नाम है, जो दो गुजराती शब्दों "लोथ" तथा "थल" को जोड़ता है, जिसका शाब्दिक अर्थ है "मृतकों का टीला" और यह ऐतिहासिक महत्व से काफी समृद्ध रहा है। यह प्राचीन शहर 2400 ईसा पूर्व का है और सिंधु घाटी सभ्यता के भीतर एक हलचल भरे व्यापारिक बंदरगाह के रूप में विकसित हुआ था। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा 13 फरवरी, 1955 से 19 मई, 1960 तक की गई पुरातात्विक खुदाई का उद्देश्य इस ऊर्जावान और शोरगुल वाली गतिविधि से भरपूर महानगर के अवशेषों को उजागर करना था।
पुरातत्वविदों का मानना है कि लोथल को रणनीतिक रूप से एक प्रमुख नदी प्रणाली के किनारे स्थापित किया गया था, जो सिंध को गुजरात में सौराष्ट्र से जोड़ने वाले पुराने व्यापार मार्ग का हिस्सा था। इस स्थल पर खुदाई से प्राप्त हुई कलाकृतियों की एक प्रभावशाली श्रृंखला का पता चला है, जो इसे आधुनिक भारत में सबसे समृद्ध पुरातात्विक खोजों में से एक बनाती है।
सिंधु घाटी सभ्यता में एक प्रमुख किरदार के रूप में लोथल ने उन विशेषताओं का प्रदर्शन किया, जो एक समुद्री केंद्र के रूप में इसकी भूमिका को उजागर करती हैं। यहां पर सबसे महत्वपूर्ण खोजों में एक दुनिया की सबसे पुरानी ज्ञात कृत्रिम गोदी है, जो साबरमती नदी के प्राचीन मार्ग से जुड़ी हुई है। इस स्थल पर एक नगरकोट, एक निचला शहर, एक मनका शिल्पशाला, गोदाम तथा एक अच्छी तरह से तैयार की गई जल निकासी प्रणाली का भी पता चला है और ये सभी एक महत्वपूर्ण व्यापारिक शहर के रूप में लोथल की स्थिति को रेखांकित करते हैं।
यहां पाया गया नहरों और गोदीघरों का नेटवर्क उन्नत योजना व कौशल को दर्शाता है, जो लोथल की शहरी व्यवस्था को प्रदर्शित करता है। इस स्थल पर प्राप्त हुई कलाकृतियों से पता चलता है कि यहां से व्यापार मेसोपोटामिया, मिस्र और फारस सहित दूर देशों के साथ रहा होगा। बाजारों तथा गोदी से परिपूर्ण एक संपूर्ण टाउनशिप की खोज लोथल के ऐतिहासिक महत्व पर और जोर देती है।
इस संदर्भ में, राष्ट्रीय समुद्री विरासत परिसर (एनएमएचसी) भारत की विरासत को संरक्षित करने और प्रदर्शित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। यह न केवल प्राचीन काल से लेकर वर्तमान तक फैली कलाकृतियों की एक विविध श्रृंखला को क्यूरेट और प्रस्तुत करेगा, बल्कि जनता को भारत की गौरवशाली समुद्री विरासत के बारे में जानने तथा समझने के लिए भी प्रेरित करेगा।
केंद्रीय मंत्रिमंडल की मंजूरी और विकास के चरण
राष्ट्रीय समुद्री विरासत परिसर (एनएमएचसी) को कई चरणों में खोलने की तैयारी है और प्रत्येक चरण को इसके प्रस्ताव तथा शैक्षिक प्रभाव को बढ़ाने के लिए तैयार किया गया है। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने राष्ट्रीय समुद्री विरासत परिसर (एनएमएचसी) के विकास एवं विस्तार के लिए एक रणनीतिक योजना की रूपरेखा तैयार करते हुए इसके बाद के चरणों को सैद्धांतिक मंजूरी दे दी है।
इन चरणों को स्वैच्छिक संसाधनों व योगदान के माध्यम से वित्त पोषित किया जाएगा और इनका कार्यान्वयन आवश्यक धन हासिल करने पर निर्भर करेगा। भविष्य के चरणों के विकास की निगरानी के लिए एक अलग समिति की स्थापना की जाएगी और यह समिति पंजीकरण अधिनियम, 1860 के अनुसार पत्तन, पोत परिवहन एवं जलमार्ग मंत्री की अध्यक्षता में एक शासी परिषद द्वारा शासित होगी। चरण 1ए और 1बी को इंजीनियरिंग, खरीद और निर्माण (ईपीसी) मॉडल का उपयोग करके विकसित किया जाएगा, जबकि चरण 2 में एनएमएचसी के लिए को विश्व स्तरीय विरासत संग्रहालय के रूप में स्थापित करने के लिए भूमि उपपट्टे और सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) दृष्टिकोण को अपनाया जाएगा।
यहां एनएमएचसी के विकास चरणों का विवरण दिया गया है:
चरण 1ए: इसका वर्तमान में क्रियान्वयन हो रहा है, जिसमें 60% से अधिक कार्य पूरा होने के साथ महत्वपूर्ण प्रगति देखी जा रही है। इस चरण में एनएमएचसी संग्रहालय की सुविधा होगी, जिसमें छह गैलरी शामिल होंगी और उनमें से भारतीय नौसेना तथा तटरक्षक बल के लिए भी एक समर्पित गैलरी होगी - जिसे देश में सबसे बड़ी में से एक माना जाएगा। इस गैलरी में आईएनएस निशंक, सी हैरियर युद्धक विमान और एक यूएच3 हेलीकॉप्टर सहित बाहरी नौसैनिक कलाकृतियां रखी जाएंगी। इसके अतिरिक्त, चरण 1ए में प्राचीन लोथल टाउनशिप का प्रतिकृति मॉडल शामिल होगा, जो एक खुली जलीय गैलरी और एक जेटी वॉकवे से घिरा होगा। इस चरण का पूरा होना 2025 तक निर्धारित है, जिसकी अनुमानित लागत 1,238.05 करोड़ रुपये है। इसमें प्रमुख बंदरगाहों से 209 करोड़ रुपये, रक्षा मंत्रालय (भारतीय नौसेना) से 178.9 करोड़ रुपये और संस्कृति मंत्रालय से 15 करोड़ रुपये का योगदान शामिल है।
चरण 1बी: यह चरण एनएमएचसी संग्रहालय के भीतर आठ और गैलरी पेश करके प्रारंभिक कार्यक्रमों का विस्तार करेगा। इसमें एक लाइट हाउस संग्रहालय भी होगा, जिसे दुनिया में सबसे ऊंचा बनाने की योजना है और साथ ही बगीचा संकुल भी होगा, जो लगभग 1,500 वाहनों के लिए कार पार्किंग की सुविधा, एक फूड हॉल और एक चिकित्सा केंद्र भी प्रदान करेगा। यहां पर 266.11 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत पर लाइट हाउस संग्रहालय का निर्माण होगा, जिसे लाइट हाउस और लाइटशिप महानिदेशालय (डीजीएलएल) द्वारा वित्त पोषित किया जाएगा, जिससे परिसर में एक उल्लेखनीय वृद्धि सुनिश्चित होगी।
2 चरण: यह चरण तटीय राज्यों के पवेलियन को शामिल करके एनएमएचसी को और विकसित करेगा, जिसका निर्माण संबंधित तटीय राज्यों तथा केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा किया जाएगा। इस चरण में समुद्री-थीम वाले इको-रिसॉर्ट्स और म्यूजियोटेल की विशेषता वाला एक आतिथ्य क्षेत्र भी शुरू किया जाएगा। प्राचीन लोथल शहर का मनोरंजन केंद्र एक समुद्री संस्थान और छात्रावास की स्थापना के साथ-साथ आगंतुकों को एक गहन अनुभव प्रदान करेगा। इसके अतिरिक्त, चार थीम पार्क बनाए जाएंगे: जिनमें समुद्री और नौसेना थीम पार्क, जलवायु परिवर्तन थीम पार्क, स्मारक पार्क और एडवेंचर एंड एम्यूजमेंट पार्क शामिल हैं, इन सभी का उद्देश्य समुद्री विरासत और आज इसकी प्रासंगिकता की गहरी समझ को बढ़ावा देना है।
निष्कर्ष:
अंत में यही कहा जा सकता है कि लोथल में राष्ट्रीय समुद्री विरासत परिसर (एनएमएचसी) एक महत्वपूर्ण प्रयास के रूप में हमारे सामने है, जिसे भारत के समृद्ध समुद्री इतिहास का उत्सव मनाने और उसे संरक्षित करने के लिए केंद्रीय मंत्रिमंडल की स्वीकृति मिल गई है। राष्ट्रीय समुद्री विरासत परिसर विकास के अपने बहुमुखी चरणों के साथ एक विश्व स्तरीय सुविधा होने का मार्ग प्रशस्त करता है, जो न केवल प्राचीन कलाकृतियों और समुद्री व्यापार की विरासत को प्रदर्शित करता है, बल्कि यह शिक्षा एवं पर्यटन के केंद्र के रूप में भी कार्य करता है। यह परियोजना जैसे-जैसे आगे बढ़ती जा रही है, वैसे-वैसे हजारों रोजगार के अवसर पैदा करने, स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को सशक्त बनाने और भारत के सबसे ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण स्थलों में से एक से कनेक्टिविटी बढ़ाने के लिए तैयार है। एनएमएचसी इतिहास को आधुनिकता के साथ जोड़कर देश की भावी पीढ़ियों को भारत की समुद्री विरासत की सराहना करने तथा उससे जुड़ने के लिए प्रेरित करेगा, जिससे यह सुनिश्चित होगा कि राष्ट्र की पहचान के इस महत्वपूर्ण पहलू का उत्सव मनाया जाए और आने वाले अनेक वर्षों तक याद रखा जाए।