भारतीय कामगार आंदोलन के अग्रदूत नारायण मेघाजी लोखंडे को श्रद्धांजलि, जानिए उनके ऐतिहासिक योगदान की गौरवगाथा

पनवेल, खांदा कॉलोनी: भारतीय कामगार आंदोलन के जनक, न्याय के प्रहरी और रविवार की साप्ताहिक छुट्टी के प्रणेता जस्टिस ऑफ पीस रावबहादुर नारायण मेघाजी लोखंडे को आज खांदेश्वर मंदिर में आनंद ग्रुप द्वारा भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की गई।
भारतीय मजदूर संघ के मजबूत स्तंभ रहे नारायण मेघाजी लोखंडे न केवल एक कर्मठ समाज सुधारक थे, बल्कि उन्होंने देश में मजदूरों के अधिकारों की लड़ाई लड़ते हुए ऐतिहासिक बदलाव किए। उन्होंने ही 10 जून 1890 को भारत में पहली बार रविवार की छुट्टी लागू कराने का क्रांतिकारी कार्य किया। उनके इस प्रयास से ब्रिटिश हुकूमत को झुकना पड़ा और मजदूरों को सप्ताह में एक दिन का अवकाश मिल सका।
कामगारों के मसीहा: नारायण मेघाजी लोखंडे
महाराष्ट्र के पुणे जिले के कनेरसर गांव में जन्मे लोखंडे ने शिक्षा पूरी करने के बाद रेलवे और फिर डाक विभाग में नौकरी की, लेकिन उनका हृदय हमेशा मजदूरों के लिए धड़कता रहा। उन्होंने गिरणियों (मिलों) में काम करने वाले श्रमिकों की दुर्दशा देखी और उनके लिए आवाज बुलंद करने का संकल्प लिया।
- भारत में मजदूर आंदोलन की पहली आवाज: 4000 से अधिक मिल मजदूरों को इकट्ठा कर पहली खुली सभा सुपारी बाग, परेल (मुंबई) में आयोजित की।
- पहली मजदूर यूनियन: बॉम्बे मिल हैंड्स एसोसिएशन की स्थापना की, जिससे संगठित श्रमिक आंदोलन की नींव पड़ी।
- ब्रिटिश सरकार के सामने दमदार मांग: 5500 मजदूरों के हस्ताक्षरयुक्त ज्ञापन को 15 अक्टूबर 1884 को फॅक्ट्री कमिशन के अध्यक्ष डब्ल्यू. बी. मुल्क को सौंपा।
- महात्मा फुले को दी गई 'महात्मा' की उपाधि: 11 मई 1888 को मुंबई में 3,500 लोगों की सभा में ज्योतिबा फुले को 'महात्मा' की उपाधि देने का आयोजन किया।
- केशवपंथ के खिलाफ आंदोलन: 21 मार्च 1890 को नाव्हा समुदाय के हक में बड़ी सभा आयोजित कर केशवपंथ के कुप्रथाओं के खिलाफ लड़ाई लड़ी।
- महिला श्रमिकों की पहली आवाज: 24 अप्रैल 1890 को रेसकोर्स मैदान में 10,000 मजदूरों की सभा आयोजित की, जिसमें पहली बार महिला मजदूरों के भाषण हुए।
- रविवार की छुट्टी लागू करवाई: 10 जून 1890 को रविवार को सार्वजनिक अवकाश घोषित करवाकर मजदूरों को आठ घंटे की कार्य अवधि दिलाई।
- हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक: 4 सितंबर 1893 को हिंदू-मुस्लिम दंगों के दौरान शांतिसमिति का गठन कर सांप्रदायिक सौहार्द का संदेश दिया।
- मराठा हॉस्पिटल की स्थापना: 20 जनवरी 1896 को मुंबई में मराठा हॉस्पिटल की नींव रखी।
सम्मान व अंतिम विदाई
ब्रिटिश सरकार ने उनके योगदान को देखते हुए 10 अगस्त 1890 को ‘जस्टिस ऑफ पीस’ और 13 अगस्त 1895 को ‘रावबहादुर’ की उपाधि प्रदान की। 49 वर्ष की अल्पायु में 9 फरवरी 1897 को ठाणे में प्लेग महामारी के कारण उनका निधन हुआ।
भूलाए जा चुके नायक को मिलनी चाहिए पहचान
आज भी बहुत से लोग इस महान कामगार नेता के संघर्षों और उपलब्धियों से अनजान हैं। उनके जीवन की शिक्षाएं सिर्फ किताबों में नहीं बल्कि हर श्रमिक और सामाजिक कार्यकर्ता के दिल में अंकित होनी चाहिए।
आनंद ग्रुप ने इस आयोजन के माध्यम से समाज को याद दिलाया कि हम जिस रविवार की छुट्टी का आनंद लेते हैं, वह किसी सरकार की देन नहीं, बल्कि नारायण मेघाजी लोखंडे के संघर्ष का परिणाम है।
- क्या हम अपने नायकों को भूल रहे हैं?
- क्या मजदूरों के अधिकारों के लिए आज भी इतनी ही मजबूती से आवाज उठाई जा रही है
- आइए, इस प्रेरणादायक विरासत को आगे बढ़ाएं और इस महान विभूति को देशभर में पहचान दिलाने का संकल्प लें।