21 जनवरी: महान कवि और स्वतंत्रता सेनानी सुब्रमण्यम भारती की जयंती
सुब्रमण्यम भारती: क्रांति और काव्य का संगम
सुब्रमण्यम भारती, भारतीय साहित्य और स्वतंत्रता संग्राम का वह चमकता सितारा हैं, जिनकी कविताएं और विचार आज भी हर भारतीय के दिल को छूते हैं। 21 जनवरी को उनकी जयंती के अवसर पर, हम उनके जीवन और योगदान को स्मरण करते हैं। उन्होंने न केवल अपनी लेखनी से समाज को जागरूक किया, बल्कि स्वतंत्रता संग्राम में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके शब्दों में ऐसी शक्ति थी, जो सोए हुए समाज को जगाने और उसे नई दिशा देने में सक्षम थी।
प्रारंभिक जीवन: संघर्षों से भरा सफर
सुब्रमण्यम भारती का जन्म 11 दिसंबर 1882 को तमिलनाडु के एट्टयपुरम में हुआ। छोटी उम्र में ही उनकी प्रतिभा उभरकर सामने आ गई थी। मात्र ग्यारह वर्ष की आयु में उन्हें “भारती” की उपाधि दी गई, जिसका अर्थ है “ज्ञान का स्रोत”। उनके बचपन ने तमिलनाडु की सांस्कृतिक और सामाजिक स्थितियों को गहराई से अनुभव किया, जिसने उनकी सोच और लेखनी को दिशा दी।
भारती की लेखनी: एक जाग्रत पुकार
भारती की कविताएं केवल साहित्यिक कृतियां नहीं थीं; वे एक आंदोलन थीं। उनके शब्दों में समाज की पीड़ा, स्वतंत्रता की पुकार और राष्ट्रप्रेम का भाव स्पष्ट झलकता था। उन्होंने तमिल भाषा को एक नया जीवन दिया, उसे जनता के संघर्षों और उम्मीदों का माध्यम बनाया। उनकी प्रमुख रचनाओं में “पान्चाली शपदम” और “कुइल पाटु” शामिल हैं, जो उनकी अटूट राष्ट्रभक्ति और सामाजिक सुधार के प्रति उनकी वचनबद्धता को दर्शाते हैं।
स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
सुब्रमण्यम भारती न केवल एक कवि थे, बल्कि एक सच्चे क्रांतिकारी भी थे। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य बने और लोकमान्य तिलक जैसे नेताओं के साथ काम किया। उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ आवाज उठाई और अपनी कविताओं व लेखों के माध्यम से जनता को प्रेरित किया। उन्होंने “स्वदेशी” और “स्वराज” के विचारों को बढ़ावा दिया और स्वतंत्रता के लिए हर बलिदान देने को तैयार रहे।
महिलाओं के अधिकारों के प्रति संवेदनशीलता
भारती की सोच महिलाओं के प्रति प्रगतिशील थी। उन्होंने अपनी कविताओं और लेखों के माध्यम से महिलाओं की शिक्षा, स्वतंत्रता और समानता का समर्थन किया। उनका मानना था कि यदि समाज को उन्नत बनाना है, तो महिलाओं को सशक्त करना होगा। उनके विचार आज भी महिलाओं की स्वतंत्रता और सशक्तिकरण के लिए प्रासंगिक हैं।
नवीन सोच और अदम्य साहस
भारती के विचार उस समय के समाज के लिए क्रांतिकारी थे। उन्होंने जातिगत भेदभाव, धार्मिक कट्टरता और सामाजिक असमानताओं के खिलाफ खुलकर लिखा। उनके विचार आज के समय में भी प्रेरणादायक हैं।
जीवन का अंत और अमरता
सुब्रमण्यम भारती का जीवन भले ही 39 वर्ष की अल्पायु में समाप्त हो गया, लेकिन उनका योगदान अमर है। 11 सितंबर 1921 को उन्होंने अंतिम सांस ली, लेकिन उनकी कविताएं और विचार आज भी भारतीय समाज के जागरण का स्रोत हैं। 21 जनवरी का दिन हमें सुब्रमण्यम भारती जैसे महान व्यक्तित्व की याद दिलाता है। वे एक ऐसे युगद्रष्टा थे, जिन्होंने अपनी कविताओं और लेखन के माध्यम से समाज को न केवल जागृत किया, बल्कि उसे नई दिशा भी दी। उनकी रचनाएं हमें प्रेरित करती हैं कि हम अपने समाज को बेहतर बनाने के लिए प्रयत्नशील रहें। सुब्रमण्यम भारती भारतीय संस्कृति और स्वतंत्रता संग्राम के उन चमकते सितारों में से एक हैं, जिनकी रोशनी सदियों तक मार्गदर्शन करती रहेगी।