आजाद हिंद की हुंकार: सिंगापुर में नेताजी द्वारा आईएनए का गठन

आजाद हिंद की हुंकार: सिंगापुर में नेताजी द्वारा आईएनए का गठन

21 जनवरी 1942 का दिन इतिहास के उन सुनहरे पन्नों में दर्ज है, जब नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने सिंगापुर की धरती पर भारतीय स्वतंत्रता के सपने को साकार करने के लिए भारतीय राष्ट्रीय सेना (आईएनए) का गठन किया। यह केवल एक सेना नहीं थी, बल्कि यह हर भारतीय के दिल में आजादी की मशाल जलाने वाला एक ऐतिहासिक कदम था। नेताजी की इस पहल ने न केवल ब्रिटिश शासन की जड़ों को हिला दिया, बल्कि यह एकजुट भारत के स्वप्न को भी साकार करने की ओर अग्रसर हुई।

द्वितीय विश्व युद्ध की पृष्ठभूमि और भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष

1942 का समय द्वितीय विश्व युद्ध की आग में जल रहा था। ब्रिटिश शासन भारतीय संसाधनों और मानव शक्ति का इस्तेमाल अपनी लड़ाई के लिए कर रहा था। लेकिन भारतीयों की स्वतंत्रता की मांग अनसुनी कर दी जा रही थी। इसी दौरान, सुभाष चंद्र बोस, जिन्होंने पहले ही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के भीतर से अपने विचारों और दृष्टिकोण से एक अलग पहचान बना ली थी, ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को वैश्विक मंच पर ले जाने का निर्णय किया।

नेताजी का सिंगापुर आगमन और जापानी सहयोग

नेताजी ने यह महसूस किया कि ब्रिटिश शासन को हराने के लिए एक सशस्त्र संघर्ष आवश्यक है। उन्होंने भारतीयों को संगठित करने और स्वतंत्रता संग्राम को गति देने के लिए जापान का सहयोग प्राप्त किया। जापानी समर्थन के साथ, नेताजी ने सिंगापुर में भारतीय प्रवासी समुदाय को एकत्र किया और उन्हें स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने के लिए प्रेरित किया।

आईएनए का गठन: एक ऐतिहासिक कदम

21 जनवरी 1942 को, नेताजी ने औपचारिक रूप से भारतीय राष्ट्रीय सेना (आईएनए) का गठन किया। उन्होंने सेना का उद्देश्य स्पष्ट करते हुए कहा, “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा।” यह नारा हर भारतीय के हृदय में जोश और ऊर्जा भरने वाला था। आईएनए में पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं को भी शामिल किया गया, और इसका मुख्य उद्देश्य था ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंकना।

रानी झांसी रेजिमेंट: महिलाओं की सहभागिता

आईएनए में महिलाओं के लिए रानी झांसी रेजिमेंट का गठन किया गया। यह रेजिमेंट आजाद हिंद फौज के उस दृष्टिकोण को दर्शाती थी, जिसमें महिलाओं को भी स्वतंत्रता संग्राम का अभिन्न हिस्सा माना गया। इस रेजिमेंट की कमान लक्ष्मी सहगल को सौंपी गई, जो साहस और शक्ति की मिसाल बनकर उभरीं।

आईएनए की रणनीति और संघर्ष

आईएनए ने अपने संघर्ष का आधार भारत की पूर्वी सीमा को बनाया। नेताजी के नेतृत्व में आजाद हिंद फौज ने कई क्षेत्रों में ब्रिटिश सेना का डटकर मुकाबला किया।

प्रेरणा और प्रभाव

आईएनए का गठन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। इसने भारतीयों को न केवल देश के भीतर बल्कि विदेशों में भी एकजुट किया। नेताजी का यह प्रयास आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गया।