मेजर संदीप उन्नीकृष्णन: देशभक्ति, शौर्य और बलिदान की अमर कहानी

मेजर संदीप उन्नीकृष्णन: देशभक्ति, शौर्य और बलिदान की अमर कहानी

13 जनवरी 1977, यह वह दिन था जब भारत के एक वीर सपूत मेजर संदीप उन्नीकृष्णन ने जन्म लिया। कर्नाटक के कोझिकोड में जन्मे संदीप का जीवन देशभक्ति, साहस और बलिदान की मिसाल बना। उनकी कहानी केवल भारतीय सेना के गौरवशाली इतिहास का हिस्सा नहीं, बल्कि हर भारतीय के दिल में देश के लिए कुछ कर गुजरने की प्रेरणा बन चुकी है।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

संदीप उन्नीकृष्णन का बचपन साधारण परिवार में बीता। उनकी स्कूली शिक्षा बेंगलुरु के फ्रैंक एंथनी पब्लिक स्कूल में हुई। बचपन से ही संदीप में नेतृत्व और साहस की झलक दिखती थी। वह न केवल पढ़ाई में उत्कृष्ट थे, बल्कि खेल और अन्य गतिविधियों में भी आगे रहते थे। देश के प्रति उनके प्रेम और कर्तव्य का अहसास उन्हें बचपन से ही था।

भारतीय सेना में प्रवेश

संदीप का सपना भारतीय सेना में शामिल होकर देश की सेवा करना था। उन्होंने राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (NDA) में दाखिला लिया, जहां उन्होंने कठिन प्रशिक्षण के दौरान अपनी मेहनत और जज्बे से सबका दिल जीत लिया। वर्ष 1999 में वह भारतीय सेना में कमीशन हुए और बिहार रेजिमेंट की 7वीं बटालियन का हिस्सा बने।

26/11 मुंबई आतंकी हमला: एक साहसी नायक की गाथा

26 नवंबर 2008 को मुंबई में हुए आतंकी हमलों ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। उस समय मेजर संदीप उन्नीकृष्णन राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (NSG) में तैनात थे। जब आतंकवादियों ने मुंबई के प्रतिष्ठित ताज होटल पर हमला किया, तो संदीप और उनकी टीम को इस मिशन की जिम्मेदारी सौंपी गई।

संदीप ने अपनी टीम के साथ होटल में घुसकर कई बंधकों को सुरक्षित बाहर निकाला। वह आतंकियों के खिलाफ मोर्चा संभाले हुए थे, जब उनकी टीम का एक साथी घायल हो गया। संदीप ने अपने साथी को बचाने के लिए खुद मोर्चा संभाला और आतंकियों के सामने डटे रहे।

उनके अंतिम शब्द, "डोंट कम अप, आई विल हैंडल देम" (ऊपर मत आओ, मैं इन्हें संभाल लूंगा), उनकी बहादुरी और कर्तव्यनिष्ठा को दर्शाते हैं। इस ऑपरेशन में उन्होंने अपनी जान गंवाई, लेकिन उनके बलिदान ने अनगिनत बंधकों की जान बचा ली।

अशोक चक्र से सम्मानित

मेजर संदीप उन्नीकृष्णन के इस अदम्य साहस और सर्वोच्च बलिदान के लिए उन्हें भारत सरकार ने मरणोपरांत देश के सर्वोच्च शांतिकालीन वीरता पुरस्कार अशोक चक्र से सम्मानित किया। यह पुरस्कार न केवल उनकी वीरता का सम्मान है, बल्कि यह हर उस व्यक्ति को प्रेरित करता है, जो अपने देश के लिए जीता और मरता है।

मेजर संदीप का संदेश और प्रेरणा

संदीप उन्नीकृष्णन का जीवन और बलिदान हमें यह सिखाता है कि देश के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा ही सच्ची देशभक्ति है। उनकी कहानी हमें यह याद दिलाती है कि एक व्यक्ति का साहस और निस्वार्थ कर्तव्य पूरे राष्ट्र को सुरक्षित रखने की ताकत रखता है।

संदीप के लिए देश का सलाम

आज मेजर संदीप उन्नीकृष्णन का नाम उन वीर नायकों में शुमार है, जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर देश को गौरवान्वित किया। ताज होटल के उस भीषण हमले के दौरान उनके साहसिक कदम और बलिदान को भारत कभी नहीं भुला सकता।

उनकी याद में प्रेरणा के कदम

संदीप की याद में कई संस्थानों और स्थानों का नामकरण किया गया है। उनकी कहानी पर आधारित फिल्में और किताबें भी लोगों को उनकी बहादुरी से प्रेरित कर रही हैं। उनके माता-पिता और परिवार के साहस को भी देश सलाम करता है, जिन्होंने इस महान सपूत को देश को समर्पित किया।

मेजर संदीप उन्नीकृष्णन सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि साहस, बलिदान और देशभक्ति का जीवंत प्रतीक हैं। उनका जीवन हर भारतीय के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

"डोंट कम अप, आई विल हैंडल देम" — यह वाक्य आज भी हर भारतीय के दिल में गूंजता है और हमें बताता है कि जब देश की बात हो, तो डर के लिए कोई जगह नहीं होती।