"हमारा शौचालय, हमारा सम्मान" अभियान का समापन: स्वच्छता को मानवाधिकार से जोड़ा गया

"हमारा शौचालय, हमारा सम्मान" अभियान का समापन: स्वच्छता को मानवाधिकार से जोड़ा गया

"हमारा शौचालयः हमारा सम्मान" (HSHS) अभियान, जो 19 नवंबर को विश्व शौचालय दिवस पर आरंभ हुआ था, 10 दिसंबर को मानवाधिकार दिवस के अवसर पर भव्य समापन के साथ संपन्न हुआ। इस अभियान ने स्वच्छता को न केवल सन्मान, बल्कि मानवाधिकारों का भी अनिवार्य हिस्सा मानने की पहल को मजबूत किया।

स्वच्छता से जुड़ा एक राष्ट्रव्यापी आंदोलन

केंद्रीय जलशक्ति मंत्रालय के पेयजल और स्वच्छता विभाग द्वारा चलाए गए इस तीन-सप्ताह के अभियान ने देशभर में जागरूकता और सामुदायिक भागीदारी को बढ़ावा दिया।

  • 50,500 से अधिक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया।
  • 38 लाख से अधिक लोगों ने इन गतिविधियों में भाग लेकर इसे एक ऐतिहासिक अभियान बना दिया।
  • 3.35 लाख नए व्यक्तिगत घरेलू शौचालय (IHHL) निर्माण की स्वीकृति देकर स्वच्छता सुविधाओं की कमी को कम करने की दिशा में बड़ा कदम उठाया गया।
  • सामुदायिक स्वच्छता केंद्रों की 54 लाख से अधिक जगहों का मूल्यांकन किया गया, जिसमें 70% केंद्रों में सुधार हुआ।

ग्रामीण जुड़ाव और समर्पित प्रयास

अभियान के तहत रात्री चौपाल, जागरूकता कार्यक्रम और स्वच्छता अभियानों के माध्यम से जमीनी स्तर पर जनसहभागिता को प्रोत्साहन दिया गया। साथ ही 600 से अधिक जल एवं स्वच्छता मिशन (DWSM) बैठकों का आयोजन किया गया।

शौचालय: सम्मान और समानता का प्रतीक

केंद्रीय जलशक्ति मंत्री सी.आर. पाटील ने अभियान के उद्घाटन के दौरान कहा, "शौचालय केवल सुविधा नहीं है, यह सम्मान, स्वच्छता और स्वास्थ्य का प्रतीक है। प्रत्येक नागरिक का अधिकार है कि वह #ToiletsForDignity का उपयोग करे, क्योंकि यह न केवल शारीरिक स्वच्छता बल्कि मानसिक और सामाजिक सम्मान का भी प्रतिनिधित्व करता है।"

मानवाधिकार और स्वच्छता का संगम

मानवाधिकार दिवस पर अभियान के समापन ने स्वच्छता और मानवाधिकार के बीच गहरे संबंध को रेखांकित किया। यह अभियान विशेष रूप से महिलाओं और उपेक्षित समुदायों के सम्मान, सुरक्षा और समानता को सुनिश्चित करने की दिशा में समर्पित रहा।

आगे की राह

"हमारा शौचालयः हमारा सम्मान" ने भारत में स्वच्छता के क्षेत्र में क्रांति का एक मजबूत आधार तैयार किया है। इस अभियान ने न केवल स्वच्छता के महत्व को रेखांकित किया बल्कि सामाजिक बदलाव और सामुदायिक सशक्तिकरण की कहानियों को भी उजागर किया। यह प्रयास भारत के स्वच्छता आंदोलन के इतिहास में एक नई और प्रेरणादायक कहानी जोड़ता है।

स्वच्छता है सम्मान की पहचान, शौचालय है मानवाधिकार का प्रमाण।