छिहीं शरीफ़: सैयद सुल्तान शाह मोज़्ज़म दादा मियाँ के वार्षिक उर्स की रूहानी रौशनी में डूबा गाँव

संवाददाता- राजेश गुप्ता, आजमगढ़, उत्तर प्रदेश
छिहीं शरीफ़ में स्थित सैयद सुल्तान शाह मोज़्ज़म दादा मियाँ के पवित्र अस्ताने पर उनके वार्षिक उर्स का आयोजन हर साल की तरह इस बार भी बड़े ही हर्षोल्लास और आध्यात्मिकता के साथ मनाया गया। इस पवित्र आयोजन की शुरुआत सुबह फ़ज़र की नमाज़ के बाद क़ुरआन खानी से हुई। पूरा माहौल दुआओं, आस्था और रूहानी शांति से सराबोर हो उठा।
चादरपोशी और कव्वाली ने बढ़ाई रौनक
सुबह से लेकर देर रात तक चादरपोशी का सिलसिला जारी रहा, जहां श्रद्धालुओं ने अपनी श्रद्धा और प्रेम के साथ दरगाह पर चादर चढ़ाई। इसके साथ ही रात में आयोजित हुई कव्वाली की महफ़िल ने माहौल को और भी रूहानी बना दिया। प्रसिद्ध कव्वालों ने अपने दिल छू लेने वाले कलाम से हर किसी के दिलों में रूहानी शांति का एहसास कराया।
गाँव की एकजुटता और दुआओं का पर्व
यह उर्स केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि गाँव की एकजुटता और भाईचारे का प्रतीक भी है। हर उम्र के लोग, चाहे वे किसी भी धर्म के हों, इस पवित्र आयोजन में हिस्सा लेते हैं। सभी ने अपने और गाँव के सुख-शांति के लिए दुआएँ कीं। गाँव के बुज़ुर्गों और नौजवानों ने इस आयोजन को सफल बनाने में विशेष भूमिका निभाई।
आयोजन में विशिष्ट हस्तियों की उपस्थिति
उर्स को और अधिक रूहानी और भव्य बनाने में सहजादा गद्दीनशीन सैयद मुज़फ्फर की भूमिका अद्वितीय रही। उनके नेतृत्व में पूरा आयोजन शांतिपूर्ण और व्यवस्थित ढंग से संपन्न हुआ। साथ ही हफ़ीज़ हयात साहब, सैयद बख़्तियार, नौशाद अहमद, क़ारी दानिश साहेब और हफ़ीज़ वालीउल्लाह साहेब जैसे विशिष्ट व्यक्तित्वों ने आयोजन में अपनी उपस्थिति से चार चाँद लगाए। छिहीं शरीफ़ का यह उर्स न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि यह समाज में भाईचारे और शांति का संदेश भी फैलाता है। इस आयोजन ने न केवल गाँव वालों को एक साथ जोड़ा, बल्कि आने वाले समय के लिए एकता और प्रेम का उदाहरण भी पेश किया।
"दरगाह से उठती दुआएँ और कव्वाली की गूँज, सबके दिलों को जोड़ गई।"
ऐसे आध्यात्मिक आयोजनों की लोकप्रियता सिर्फ श्रद्धा तक सीमित नहीं रहती, बल्कि यह समाज में प्रेम और शांति का संदेश फैलाने में भी बड़ी भूमिका निभाती है।