अंजान शहीद में हरतालिका तीज का उल्लास: पति की लंबी आयु के लिए महिलाओं ने रखा निर्जला व्रत

अंजान शहीद में हरतालिका तीज का उल्लास: पति की लंबी आयु के लिए महिलाओं ने रखा निर्जला व्रत

संवाददाता- राजेश गुप्ता, आजमगढ़, उत्तर प्रदेश

आजमगढ़ जनपद के सगड़ी तहसील अंतर्गत स्थित ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहरों से समृद्ध शिव मंदिर कच्चा पोखरा अंजान शहीद के मंदिर प्रांगण में सैकड़ो महिलाओं ने हरतालिका तीज का पर्व बड़े ही श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया | यह पर्व विशेष रूप से विवाहित महिलाओं के लिए अत्यधिक महत्व रखता है, जो अपने पति की दीर्घायु और सुखमय जीवन की कामना करते हुए निर्जला व्रत रखती हैं। इस अवसर पर महिलाओं में अद्वितीय उत्साह और समर्पण देखने को मिला।

हरतालिका तीज का पर्व भगवान शिव और माता पार्वती की प्रेम गाथा को समर्पित होता है, और यह मान्यता है कि इस दिन माता पार्वती ने भगवान शिव को अपने पति के रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी। उसी आस्था और विश्वास को जीवंत रखते हुए, अंजान शहीद की महिलाओं ने भी अपने पति की लंबी उम्र और समृद्ध जीवन के लिए इस व्रत का पालन किया। इस शुभ अवसर पर गाँव के विभिन्न मंदिरों में पूजा-अर्चना की गई। महिलाएं पारंपरिक वेशभूषा में सजी-धजी नज़र आईं, जिनके हाथों में मेहंदी और माथे पर सुहाग की बिंदी चमक रही थी। पूजा-पाठ के दौरान महिलाओं ने शिव-पार्वती की मूर्तियों की पूजा की और अपने व्रत की शुरुआत की। मंदिर परिसर में गूंजती भजन-कीर्तन की मधुर ध्वनियों ने पूरे वातावरण को भक्ति और श्रद्धा से भर दिया। निर्जला व्रत की कठिनाई के बावजूद, महिलाओं का उत्साह देखने लायक था। उन्होंने दिनभर बिना जल और अन्न ग्रहण किए, पूरी निष्ठा और भक्ति के साथ यह व्रत रखा। इस दौरान महिलाएं एक-दूसरे के साथ बैठकर धार्मिक कथाएं सुनती रहीं, जिससे उनके मन में आध्यात्मिकता और आस्था का संचार होता रहा। 

अंजान शहीद की महिलाओं के लिए यह पर्व केवल धार्मिक कर्तव्य नहीं, बल्कि पारिवारिक प्रेम और समर्पण की अभिव्यक्ति भी है। गाँव की बुजुर्ग महिलाओं ने भी इस दिन को खास बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने न केवल खुद व्रत रखा, बल्कि अपनी बेटियों और बहुओं को भी इस पवित्र परंपरा का महत्व समझाया। महिलाओं ने घरों में विशेष व्यंजन बनाए, जिनमें साबूदाना खिचड़ी, फलाहार और अन्य पारंपरिक पकवान शामिल थे, जिन्हें व्रत समाप्ति के बाद ग्रहण किया जाएगा।

शाम होते ही महिलाएं सामूहिक रूप से मंदिरों में एकत्र हुईं और हरतालिका तीज की कथा का श्रवण किया। इस कथा ने उनके मनोबल को और भी सुदृढ़ किया, जिससे उनके व्रत का महत्व और अधिक बढ़ गया। कथा समाप्ति के बाद महिलाओं ने सामूहिक आरती की और भगवान शिव और माता पार्वती से अपने परिवार की खुशहाली और समृद्धि की प्रार्थना की। अंजान शहीद में हरतालिका तीज का यह पर्व एकता और समर्पण का प्रतीक बनकर उभरा। यह अवसर न केवल महिलाओं के पारंपरिक और धार्मिक मूल्यों को प्रकट करता है, बल्कि उनकी आस्था और दृढ़ संकल्प का भी प्रमाण है। लगभग पांच गावों जैसे- अंजान शहीद, झझवां, तुरकौली, देवापार व पतार की महिलाएं ने शिव मंदिर में हरतालिका तीज का यह पावन अवसर विशेष बन गया, जहां महिलाओं ने अपनी आस्था और श्रद्धा के साथ निर्जला व्रत रखा और अपने परिवार के सुखमय जीवन की कामना की। यह त्योहार समाज में प्रेम, समर्पण और पारिवारिक बंधनों की महत्ता को उजागर करता है, जो आने वाली पीढ़ियों को भी प्रेरित करेगा।

धार्मिक स्थलों और मंदिरों का समाज के सांस्कृतिक और आध्यात्मिक जीवन में महत्वपूर्ण योगदान होता है। ऐसे ही एक ऐतिहासिक धरोहर के रूप में स्थापित इस मंदिर ने समाज के उत्थान और धार्मिक आस्था को नए आयाम दिए हैं। यह स्थान न केवल पूजा-पाठ और धार्मिक अनुष्ठानों का केंद्र बन चुका है, बल्कि समाज की एकता और संस्कारों का प्रतीक भी है। मंदिर के शिलान्यास और स्थापना का श्रेय उस समय के महान समाजसेवी बद्दल साव को जाता है, जिन्होंने अपने अथक प्रयासों और समाजसेवा के माध्यम से इस अद्भुत धरोहर का निर्माण किया। बद्दल साव के योगदान को याद करते हुए उपस्थित महिलाओं ने उन्हें कृतज्ञता व्यक्त की। उनके द्वारा स्थापित यह मंदिर आज भी समाज के सभी वर्गों के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

    बद्दल साव के वंशज, रामप्रसाद साव और रामप्यारे साव ने भी अपने पूर्वजों की समाजसेवा की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए मंदिर के संरक्षण और विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इनके द्वारा किए गए प्रयासों और योगदान के कारण यह मंदिर आज भी धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र बना हुआ है। हर त्योहार और विशेष अवसर पर भक्तों का यहाँ आगमन होता है, और लोग उल्लासपूर्वक पूजा-पाठ में भाग लेते हैं। इस मंदिर का निर्माण और उसकी स्थायित्व समाज के लिए एक अनमोल धरोहर के रूप में देखा जाता है। समाजसेवी बद्दल साव और उनके वंशजों द्वारा किया गया यह महान कार्य सदैव याद किया जाएगा। उनकी समाजसेवा की भावना ने समाज को एक दिशा दी है, और उनकी विरासत आज भी जीवंत है।