भूकंपरोधी भवन का दावा झूठा: नन्हे सपनों पर भारी भ्रष्टाचार की दरारें!

भूकंपरोधी भवन का दावा झूठा: नन्हे सपनों पर भारी भ्रष्टाचार की दरारें!

ब्यूरो प्रमुख- अजय कुमार मिश्र, उत्तर प्रदेश

आजमगढ़ (उत्तर प्रदेश):

जहां सरकार प्राथमिक विद्यालयों को भूकंपरोधी बनाकर बच्चों को सुरक्षित भविष्य देने का दावा कर रही है, वहीं ज़मीनी हकीकत सरकार की नीयत और कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े कर रही है। प्राथमिक विद्यालय, सेमरी (शिक्षा क्षेत्र महाराजगंज, जनपद आजमगढ़) का नया भवन, जो 2023-24 में बनाया गया था, अब दरारों और टूट-फूट की कहानी बयां कर रहा है।

दरारों में छिपा भ्रष्टाचार

ग्राम प्रधान दशरथ निषाद ने खुलासा किया कि भवन का निर्माण प्रधानाध्यापक हरिकेश यादव की देखरेख में हुआ था। उन्होंने आरोप लगाया कि निर्माण में घटिया सामग्री का इस्तेमाल किया गया, जिसमें अधिकतर सफेद बालू का उपयोग किया गया। इतना ही नहीं, विद्यालय भवन में पिलर जैसी बुनियादी संरचनाएं भी नहीं लगाई गईं।

यह भवन जमीन की सतह से सीधे खड़ा किया गया, जिससे उसकी नींव कमजोर हो गई। दीवारों और छत में दरारें हैं, फर्श टूट रहा है, और हर जगह लापरवाही की छाप दिखाई देती है। यह स्थिति बच्चों की सुरक्षा और उनके भविष्य दोनों पर गंभीर खतरा पैदा कर रही है।

अधिकारियों की चुप्पी और ग्रामीणों की चिंता

ग्रामीणों ने बताया कि भवन निर्माण के समय भी अधिकारियों ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया। यह क्षेत्र पिछड़ा होने के कारण यहां अधिकारी शायद ही कभी जांच करने आते हैं। ग्राम प्रधान ने आरोप लगाया कि लापरवाही और भ्रष्टाचार की वजह से यह स्थिति पैदा हुई है। बच्चों के अभिभावकों ने सवाल उठाए हैं कि सरकार द्वारा घोषित योजनाएं और सुरक्षा उपाय आखिर किसके लिए हैं? अगर बच्चे सुरक्षित नहीं हैं, तो शिक्षा का यह ढांचा केवल कागजों पर ही टिक सकता है। उत्तर प्रदेश में अधिकांश प्राथमिक विद्यालयों को भूकंपरोधी बनाया जा रहा है, ताकि आकस्मिक घटनाओं के समय बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। लेकिन सेमरी विद्यालय की हालत सरकार की इन कोशिशों को झूठा साबित करती है। यह भवन न तो भूकंपरोधी है और न ही बच्चों की सुरक्षा के लिए उपयुक्त। इसकी हालत यह दिखाती है कि निर्माण कार्यों में पारदर्शिता और गुणवत्ता की कितनी कमी है।

समाज के लिए एक गंभीर सवाल

यह खबर केवल एक विद्यालय की दुर्दशा को उजागर करने का प्रयास नहीं है, बल्कि यह समाज और प्रशासन के लिए एक बड़ा सवाल खड़ा करती है—क्या हम बच्चों को सुरक्षित शिक्षा देने के अपने वादे को निभा रहे हैं? अब यह जिम्मेदारी जिला प्रशासन और शिक्षा विभाग की है कि वे इस मामले की जांच करें और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करें। यह सुनिश्चित करना होगा कि इस प्रकार की लापरवाही दोबारा न हो और बच्चों को एक सुरक्षित वातावरण मिले। अगर समय रहते इस विद्यालय की स्थिति को सुधारा नहीं गया, तो यह मामला केवल एक विद्यालय तक सीमित नहीं रहेगा। यह पूरे शिक्षा तंत्र की विफलता का प्रतीक बन जाएगा।

“भविष्य संवारने का वादा करने वाले, वर्तमान की दरारें कब भरोगे?”

अब नजरें प्रशासन और संबंधित अधिकारियों पर हैं। क्या वे कार्रवाई करेंगे या यह मामला भी अन्य मुद्दों की तरह फाइलों में दब जाएगा? जुड़े रहें हमारे साथ और जानें, क्या इन नन्हे सपनों को उनका हक मिलेगा।