लोकतंत्र के चौथे स्तंभ से दूरी! कोतवाल का तानाशाही रवैया, पत्रकारों को बताया 'माइकधारी'
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अजय मिश्र, महराजगंज (आजमगढ़):
जनता और प्रशासन के बीच सेतु का कार्य करने वाले स्थानीय पत्रकारों से कोतवाल विनय कुमार मिश्र ने दूरी बना ली है। कार्यभार ग्रहण करने के कुछ ही दिनों में उन्होंने अपने रवैये से यह साफ कर दिया कि वे स्थानीय मीडिया को महत्व नहीं देते। उनका कहना है कि "बड़े-बड़े पत्रकारों से मेरे संबंध अच्छे हैं, छोटे पत्रकारों को जानकारी देना जरूरी नहीं समझता।"
पत्रकारों से संवाद नहीं, अपमान पर जोर!
गत रविवार को मझौवा गांव में एक विवाहिता की संदिग्ध मौत के मामले में जब पत्रकारों ने कोतवाल से जानकारी मांगी, तो वे भड़क उठे और बोले— "हमें कुछ नहीं पता, पीड़ित परिवार से पूछ लीजिए।" इतना ही नहीं, उन्होंने पत्रकारों की कार्यशैली और योग्यता पर सवाल उठाते हुए कहा कि "आजकल कोई भी माइक लेकर पत्रकार बन जाता है।"
पक्षपात और सूचना रोकने के आरोप!
पत्रकारों का कहना है कि कोतवाल न केवल मीडिया से दूरी बना रहे हैं, बल्कि पक्षपातपूर्ण रवैया भी अपना रहे हैं। वे अपनी पसंदीदा मीडिया संस्थानों को प्राथमिकता देते हैं और स्थानीय पत्रकारों को कवरेज से रोकते हैं।
इस तानाशाही रुख से आहत होकर स्थानीय पत्रकारों ने सोमवार को बैठक कर नाराजगी जताई और सवाल उठाया कि "अगर मीडिया को ही सच्चाई जानने से रोका जाएगा, तो आम जनता को न्याय कैसे मिलेगा?" कई पत्रकारों ने इस दूरी को भ्रष्टाचार और घूसखोरी की ओर इशारा करार दिया है।
क्या प्रशासन की निष्पक्षता पर उठ रहे हैं सवाल?
पत्रकारों का यह भी मानना है कि मीडिया को सीमित करना किसी बड़ी साजिश की ओर इशारा करता है। अगर कोतवाल का यही रवैया जारी रहा, तो आने वाले समय में प्रशासन की पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े होंगे।
क्या पुलिस प्रशासन वाकई निष्पक्ष है या फिर सच को छुपाने की कोशिश हो रही है? मीडिया से दूरी, क्या सच्चाई से भी दूरी?