पुत्र की दीर्घायु के लिए माताओं ने रखा निर्जला जीवित्पुत्रिका व्रत: समर्पण और आस्था का पर्व
रिपोर्ट: राजेश कुमार गुप्ता
अंजान शहीद, आजमगढ़। भारतीय संस्कृति में नारी के संकल्प, आस्था और धर्म के प्रति निष्ठा की अद्वितीय मिसालों में से एक है जीवित्पुत्रिका व्रत। माताएं अपने पुत्रों की समृद्धि, सुख और दीर्घायु के लिए यह कठिनतम व्रत श्रद्धा और समर्पण के साथ निभाती हैं। तीन दिनों तक निर्जल रहकर, बिना एक बूंद जल ग्रहण किए, वे इस व्रत को पूर्ण करती हैं। इस व्रत की खास बात यह है कि यह न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी व्यापक रूप से प्रचलित है।
अंजान शहीद के शिव मंदिर कच्चा पोखरा में व्रती माताओं ने गोट बनाकर जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा सुनी। बुधवार को सैकड़ों महिलाओं ने निर्जला उपवास रखते हुए अपने पुत्रों की दीर्घायु और स्वास्थ्य की कामना के साथ यह कठिन व्रत किया। जिन महिलाओं को अभी तक संतान सुख प्राप्त नहीं हुआ, उन्होंने संतान प्राप्ति की मनौती मांगी, जबकि जिनकी मनौती पूरी हो चुकी थी, वे गाजे-बाजे के साथ मंदिर पहुंचीं और पूजा-अर्चना की।
पूजा मंडप में हल्दी और आटे के एपन से बनाए गए गोट के चारों ओर बैठकर व्रती महिलाओं ने व्रत की कथा सुनी। कहीं विद्वान ब्राह्मणों द्वारा कथा का वाचन किया गया, तो कहीं बुजुर्ग महिलाओं ने परंपरागत कथा सुनाकर इस आस्था पर्व को और पवित्र बनाया। सोने और चांदी की जीउतीया को पिरोकर उसकी पूजा-अर्चना की गई, साथ ही संतान की दीर्घायु और आरोग्य की प्रार्थना देवी मां से की गई।
माताओं का यह अटूट विश्वास और समर्पण इस व्रत को और अधिक प्रभावशाली बनाता है। यह व्रत नारी शक्ति के त्याग और आस्था का प्रतीक है, जिसमें कठिन तपस्या और पुत्रमोह का अद्भुत संगम देखने को मिलता है।