गोरखपुर: भूमि विवाद में प्रशासनिक लापरवाही, न्याय की उम्मीद में पीड़ित

गोरखपुर: भूमि विवाद में प्रशासनिक लापरवाही, न्याय की उम्मीद में पीड़ित

गोरखपुर जनपद के खजनी तहसील अंतर्गत ग्राम गोपाल देवरिया में भूमि विवाद को लेकर एक नया मोड़ सामने आया है। नागेन्द्र पुत्र सूरत, जिनका मामला चकबंदी से संबंधित है, लंबे समय से न्याय की आस लगाए बैठे हैं। हाई कोर्ट के आदेशानुसार डीसी को दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद निर्णय करने का अधिकार दिया गया था। डीसी ने इस मामले में दोनों पक्षों को सुना और अपना फैसला 14 मई 2024 को सुनाया, जिसे नागेन्द्र ने स्वीकार कर लिया था। इस फैसले के अनुसार सीमांकन का आदेश दिया गया था, जिसे 20 मई 2024 को पूर्ण करना था।

हालांकि, लोकसभा चुनाव के चलते सभी कर्मचारियों की चुनावी ड्यूटी में व्यस्तता के कारण सीमांकन में देरी हो गई। इसके बाद, 14 जून 2024 को पहली बार सीमांकन करने की प्रक्रिया शुरू की गई, जिसमें एक स्थान का सीमांकन किया गया और नागेन्द्र ने इसे स्वीकार कर लिया। लेकिन जब 19 जून 2024 को पुनः सीमांकन करने की कोशिश की गई, तो नागेन्द्र और उनके परिवार को जमीन पर कब्जे के संबंध में आपत्ति हुई।

 

लेखपाल और कानूनगो ने आश्वासन दिया कि हर कार्य में उन्हें विश्वास में लिया जाएगा और सत्यता की जांच की जाएगी, लेकिन जब फाइनल सीमांकन किया गया तो नागेन्द्र ने पाया कि उनका रकबा कम करके दर्शाया गया है। इस नए सीमांकन में नागेन्द्र की जमीन कम हो गई, जिससे उनका भारी नुकसान हुआ। उनके अनुसार, विपक्षी पार्टी द्वारा कब्जाई गई जमीन की भरपाई गलत तरीके से की गई है, जिससे भविष्य में पेनल्टी का खतरा भी बना हुआ है।

नागेन्द्र का कहना है कि उन्हें कोर्ट के आदेश के अनुसार पूर्ण न्याय नहीं मिला है और वे चाहते हैं कि पुनः सीमांकन कराया जाए। इसके लिए उन्होंने प्रशासन से उचित कार्यवाही की मांग की है ताकि न्यायालय के आदेशों का पालन सुनिश्चित किया जा सके। दूसरी ओर, विपक्षी पक्ष ने राजस्व विभाग की टीम को प्रभावित करते हुए सीमांकन को पूर्ण घोषित करवा दिया, जबकि नागेन्द्र और उनका परिवार अभी भी संतुष्ट नहीं हैं।

स्थानीय लोगों का कहना है कि यह आवाज अब प्रशासन के कानों तक पहुंचनी चाहिए ताकि इस मामले में निष्पक्ष और न्यायपूर्ण कार्रवाई हो सके। यह मामला न केवल नागेन्द्र और उनके परिवार के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि अन्य किसानों और ग्रामीणों के लिए भी एक मिसाल बनेगा कि न्याय की उम्मीद कभी भी छोड़ी नहीं जानी चाहिए। प्रशासन को इस मामले को गंभीरता से लेते हुए उचित कदम उठाने चाहिए ताकि प्रभावित परिवार को न्याय मिल सके और भविष्य में ऐसे विवादों से बचा जा सके।