संघर्ष की पुकार: वाघेरा वाड़ी गांव की अनकही दास्तान

संघर्ष की पुकार: वाघेरा वाड़ी गांव की अनकही दास्तान

(सुबह की हल्की ठंडी हवा और पक्षियों की चहचहाहट के बीच सूरज की किरणें पर्वतों को छू रही हैं। लेकिन इन खूबसूरत पहाड़ों की गोद में बसा एक गांव अपनी अनसुनी तकलीफों को छिपाए हुए है।)

महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले के नवी मुंबई के पास, वाघेश्वर पर्वत पर बसा वाघेरा वाड़ी गांव। देखने में यह गांव एक तस्वीर की तरह सुंदर है, लेकिन यहां की हकीकत हर दिल को झकझोर देने वाली है। यहां करीब 100-150 घरों में 500 से 600 लोग रहते हैं। हजारों फीट की ऊंचाई पर बसे इस गांव में विकास की किरण आज तक नहीं पहुंची।

"चुनाव आते हैं, वादे होते हैं, और फिर सब भूल जाते हैं।"
यह गांव कभी ग्राम पंचायत के अधीन था। तब कुछ विकास कार्य हुए। लेकिन जब यह पनवेल महानगर पालिका का हिस्सा बना, तब से यहां के लोग केवल वादों के सहारे रह गए। हर चुनाव में नेता आते हैं, आश्वासन देते हैं, और फिर गायब हो जाते हैं।

बरसात में बंद हो जाता है जीवन का रास्ता
यह गांव मानसून के आते ही पूरी तरह से अलग-थलग पड़ जाता है। गांव के रास्ते पानी और मिट्टी के धंसने से बंद हो जाते हैं। लोग बरसात शुरू होने से पहले 6 महीने का राशन जमा कर लेते हैं। उनके लिए यह किसी युद्ध की तैयारी से कम नहीं।

शिक्षा पर लगा ताला
हमारी नजर गांव के एक जर्जर भवन पर पड़ी। यह आंगनवाड़ी केंद्र था, जो कभी छोटे बच्चों की शिक्षा का सहारा हुआ करता था। लेकिन अब इस पर ताले लटके हैं। लोगों ने बताया कि जब गांव पंचायत का हिस्सा था, तब बच्चों को यहां पढ़ाई और भोजन मिलता था। लेकिन महानगर पालिका के अधीन आने के बाद यह केंद्र बंद हो गया।

अब यहां बच्चों की शिक्षा 5 साल की उम्र के बाद शुरू होती है, जब उन्हें हॉस्टल में भेज दिया जाता है। गांव में न स्कूल है, न पढ़ाई के लिए कोई व्यवस्था। बच्चों को अपने परिवार से दूर रहकर पढ़ाई करनी पड़ती है।

स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव
स्वास्थ्य सुविधाओं की स्थिति और भी दर्दनाक है। अगर कोई बीमार पड़ता है, तो उसे पहाड़ से नीचे ले जाने के लिए लकड़ी की डोली बनानी पड़ती है। चार लोग बीमार व्यक्ति को कंधे पर उठाकर किसी तरह नीचे पहुंचाते हैं। कई बार अस्पताल पहुंचने से पहले ही मरीज दम तोड़ देता है।

पीने के पानी के लिए संघर्ष
पानी जैसी बुनियादी जरूरत के लिए भी यहां संघर्ष है। गांव में न तो कोई कुंआ है और न ही नल। लोग पहाड़ की तलहटी से गंदा पानी लाकर पीने को मजबूर हैं। यह पानी इतना खराब है कि नहाने के लायक भी नहीं। लेकिन मजबूरी में इसी पानी को पीकर वे अपना जीवन जी रहे हैं।

तिरंगा जो दिलों को झकझोर दे
जब हमारी टीम वापस लौट रही थी, तो हमने एक दृश्य देखा, जो आंखें नम कर गया। गांव के बीच में एक टूटी-फूटी झोपड़ी के ऊपर भारत का तिरंगा लहरा रहा था। यह तिरंगा इन लोगों की जिजीविषा और देशभक्ति का प्रतीक है। भले ही इनके घरों में सुविधाएं न हों, लेकिन इनके दिलों में देश के प्रति असीम प्रेम है।

क्या कोई बदलाव संभव है?
यह गांव सवाल पूछता है – क्या हम इनकी जिंदगी को बेहतर बना सकते हैं? क्या इन लोगों को बुनियादी सुविधाएं मिल सकती हैं?

"हर नागरिक का अधिकार है – शिक्षा, स्वास्थ्य और पानी।"
सरकार, स्थानीय सांसद, विधायक और नगर पालिका अध्यक्ष को इस गांव की ओर ध्यान देना चाहिए। वाघेरा वाड़ी के लोगों को उनका हक दिलाना हमारा नैतिक कर्तव्य है।

(इस कहानी को पढ़कर, आप भी बदलाव के इस संघर्ष का हिस्सा बन सकते हैं। यह सिर्फ एक गांव की कहानी नहीं, बल्कि उन हजारों अनसुनी आवाजों का प्रतिनिधित्व करती है, जो हमारे समाज में गूंज रही हैं।)

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