राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, भारत ने ‘भारत में आदिवासी शिक्षा: समस्याएं, नीतियां और परिप्रेक्ष्य’ पर खुली चर्चा का आयोजन किया
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी), भारत ने नई दिल्ली में अपने परिसर में ‘भारत में आदिवासी शिक्षा: समस्याएं, नीतियां और परिप्रेक्ष्य’ पर हाइब्रिड मोड में एक खुली चर्चा का आयोजन किया। इस चर्चा की अध्यक्षता करते हुए आयोग की कार्यवाहक अध्यक्ष श्रीमती विजया भारती सयानी ने सांस्कृतिक रूप से संवेदनशील ऐसी शिक्षा प्रणाली का आह्वान किया जो आदिवासी समुदायों की विविध विरासत को जोड़े और सम्मान करे। उन्होंने कहा कि शिक्षा आदिवासी समुदायों को सशक्त बनाने और उनकी सामाजिक प्रगति को आगे बढ़ाने में मदद करेगी, जिससे भौगोलिक अलगाव, भाषाई अंतर, गरीबी और पर्याप्त प्रगति तथा विभिन्न सरकारी पहलों के बावजूद कम उम्र में विवाह जैसी जारी कुप्रथाओं को दूर किया जा सकेगा।
श्रीमती विजया भारती सयानी ने कहा कि आयोग सभी के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की वकालत करने, वर्तमान कार्यक्रमों का आकलन करने और आदिवासी शिक्षा में समावेशिता तथा समान विकास को बढ़ावा देने के लिए किसी भी तरह की खामियों को दूर करने के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने इस उद्देश्य के लिए सरकारी निकायों, गैर सरकारी संगठनों और आदिवासी समूहों के बीच सहयोगात्मक निरंतर प्रयासों की आवश्यकता पर भी जोर दिया।
इससे पहले, अपने उद्घाटन भाषण में, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के महासचिव श्री भरत लाल ने आदिवासी शिक्षा की खामियों पर प्रकाश डाला और इन समुदायों में शैक्षिक परिणामों को बढ़ाने और उनके उत्थान के लिए लक्षित कार्यक्रम लाने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि आदिवासी क्षेत्रों में कम साक्षरता दर और पढ़ाई के दौरान ही स्कूल छोड़ देने की उच्च दर अक्सर विशिष्ट चुनौतियों की वजह से होती हैं। इन चुनौतियों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक अपर्याप्त पहुंच, सांस्कृतिक रूप से प्रासंगिक पाठ्यक्रम की कमी, खराब शिक्षक-छात्र अनुपात और अपर्याप्त शैक्षिक बुनियादी ढांचा शामिल हैं।
श्री लाल ने न्यायसंगत और समावेशी शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए इन खामियों को दूर करने के महत्व पर जोर दिया, ताकि प्रत्येक आदिवासी बच्चे को सफल होने का समान अवसर मिले। उन्होंने आईआईटी और आईआईएम जैसे उच्च शिक्षण संस्थानों में आदिवासी प्रतिनिधित्व में सुधार लाने, लक्षित छात्रवृत्ति कार्यक्रम चलाने, मेंटरशिप और प्रारंभिक पाठ्यक्रमों की आवश्यकता पर भी जोर दिया, ताकि शैक्षिक विभाजन को पाटा जा सके और आदिवासी छात्रों को इन प्रतिष्ठित संस्थानों में उत्कृष्टता प्राप्त करने में मदद मिल सके।
इससे पहले, खुली चर्चा का अवलोकन करते हुए, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के संयुक्त सचिव श्री देवेंद्र कुमार निम ने आदिवासी छात्रों के बीच स्कूल की पढ़ाई बीच में ही छोड़ देने की उच्च दरों और घटते सकल नामांकन अनुपात पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने इसकी वजहों की पहचान करने, मौजूदा नीतियों का विश्लेषण करने, अधिक समावेशी शैक्षिक प्रणाली को आकार देने और भारत में आदिवासी आबादी के लिए एक उज्जवल और न्यायसंगत भविष्य सुनिश्चित करने के लिए विविध दृष्टिकोणों का पता लगाने के लिए लक्षित प्रयास करने और व्यापक चर्चा का आह्वान किया।
इस बैठक में आदिवासी शिक्षा में खामियों तथा चुनौतियों की पहचान करना, मौजूदा नीतियों तथा कार्यक्रमों का विश्लेषण करना और दृष्टिकोण तथा आगे के तरीकों की खोज करने जैसे कई प्रमुख एजेंडे शामिल थे। चर्चाओं के केंद्र में आदिवासी समुदायों के लिए शैक्षिक पहुंच में लगातार बाधाओं, जैसे भौगोलिक अलगाव, भाषाई अंतर और सामाजिक-आर्थिक मुद्दे थे। आश्रम विद्यालयों और एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालयों (ईएमआरएस) जैसी मौजूदा पहलों की प्रभावशीलता का मूल्यांकन किया गया ताकि सुधार की आवश्यकता वाले क्षेत्रों की पहचान की जा सके।
इस चर्चा के दौरान उभरे कुछ प्रमुख सुझाव इस प्रकार हैं:
• इन समुदायों के सामने आने वाली विशिष्ट शैक्षिक चुनौतियों को बेहतर ढंग से समझने और उनका समाधान करने के लिए विश्वविद्यालयों में आदिवासी-केंद्रित शोध की आवश्यकता पर जोर देते हुए प्रयोगसिद्ध डेटा की तत्काल आवश्यकता बताई गई;
• एक व्यापक और एकीकृत नीति दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें महिला आदिवासी बच्चों के लिए समर्पित छात्रावास सुविधाओं सहित उचित सुविधाओं और बुनियादी ढांचे के विकास पर ध्यान केंद्रित किया जाए;
• नामांकन दरों में सुधार के लिए सामुदायिक जुड़ाव और पहुंच बढ़ाना महत्वपूर्ण है, जबकि विशेष रूप से दूरदराज के क्षेत्रों में पीने के पानी, स्वच्छता और पर्याप्त छात्रावास जैसी बुनियादी सुविधाओं को सुनिश्चित करना आवश्यक है;
• शिक्षकों के लिए क्षमता निर्माण कार्यक्रम उन्हें आदिवासी संस्कृतियों और भाषाओं के प्रति संवेदनशील बनाने, बेहतर संचार और समझ की सुविधा प्रदान करने के लिए आवश्यक हैं;
• प्राथमिक स्तर पर स्थानीय भाषाओं को शामिल करना आदिवासी छात्रों के लिए पढाई को आसान बनाने और समग्र सीखने के अनुभव को बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण है।
चर्चा के प्रतिभागियों में एनएचआरसी के महानिदेशक (आई) श्री अजय भटनागर, रजिस्ट्रार (कानून), श्री जोगिंदर सिंह, शिक्षा मंत्रालय में स्कूल शिक्षा और साक्षरता विभाग की संयुक्त सचिव श्रीमती अर्चना शर्मा अवस्थी; शिक्षा मंत्रालय में उच्च शिक्षा विभाग के अपर सचिव श्री सुनील कुमार बरनवाल; राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के निदेशक श्री सूरत सिंह; राष्ट्रीय आदिवासी छात्र शिक्षा सोसाइटी के आयुक्त श्री अजीत कुमार श्रीवास्तव; झारखंड के अनुसूचित जनजाति विभाग के सचिव श्री कृपानंद झा; महाराष्ट्र के आदिवासी विकास विभाग के संयुक्त सचिव श्री विजेसिंह वसावे; अनुसूचित जनजाति कल्याण विभाग के निदेशक श्री योगेश टी. कास; आदिवासी और अनुसूचित जाति विकास विभाग, छत्तीसगढ़ के आयुक्त श्री नरेंद्र कुमार दुग्गा; गुरु घासीदास विश्वविद्यालय, कोनी, बिलासपुर के वाइस चांसलर प्रो. आलोक कुमार चक्रवाल; बिरसा मुंडा जनजातीय विश्वविद्यालय, गुजरात के वाइस चांसलर प्रो. (डॉ.) मधुकरभाई एस. पाडवी; केंद्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय, आंध्र प्रदेश के वाइस चांसलर प्रो. टी. वी. कट्टीमनी; जामिया मिलिया इस्लामिया, नई दिल्ली के प्रोफेसर प्रो. रवींद्र रमेश पाटिल; इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय, अमरकंटक के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. गौरी शंकर महापात्रा; वीर नर्मदा दक्षिण गुजरात विश्वविद्यालय के कार्यवाहक निदेशक और प्रोफेसर डॉ. सत्यकाम जोशी; आगा खान ग्रामीण सहायता कार्यक्रम, भारत के निदेशक श्री अपूर्व ओझा; शिवगंगा झाबुआ के संस्थापक और सामाजिक कार्यकर्ता श्री महेश शर्मा आदि शामिल रहे।