नन्हा देशभक्त श्रवण: ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का सबसे छोटा योद्धा, जिसने सैनिकों को दिलाया भरोसे का साया

समर्पण की मिसाल बना फिरोजपुर का बालक, सेना ने दिया ‘नागरिक योद्धा’ का गौरव
तारा वली गांव, फिरोजपुर (पंजाब):
देशभक्ति सिर्फ बंदूक और वर्दी तक सीमित नहीं होती—यह एक भावना है, जो दिल से उठती है और कर्म में झलकती है। कुछ ऐसा ही कर दिखाया पंजाब के फिरोजपुर जिले के सीमावर्ती गांव तारा वली के एक नन्हे बालक ने, जिसने अपने छोटे-छोटे हाथों से सैनिकों के दिलों को छू लिया।
यह किस्सा है श्रवण सिंह का—एक किसान परिवार का बेटा, जिसकी उम्र भले ही छोटी हो, लेकिन जज़्बा किसी वीर सैनिक से कम नहीं। जब भारत-पाक सीमा पर ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के चलते माहौल बेहद तनावपूर्ण था, सैनिकों की टुकड़ियां गांव के खुले मैदानों में डेरा डाले हुए थीं। वहां हर दिन गर्मी और तनाव के बीच एक नन्हा चेहरा मुस्कान लिए सैनिकों के पास आता—कभी दूध, कभी लस्सी, तो कभी ठंडा पानी लेकर। न उसका मकसद कोई दिखावा था, न कोई स्वार्थ। उसकी आंखों में केवल एक संकल्प था—"मेरे देश के रक्षक अकेले नहीं हैं।"
श्रवण की यह आत्मीय सेवा, निस्वार्थ प्रेम और साहसी उपस्थिति ने सैनिकों के दिलों को छू लिया। जब देश के जवान सरहद की रक्षा कर रहे थे, तब यह बालक गांव से लेकर सरहद तक मानो एक अदृश्य डोर बन गया—जो प्रेम, सेवा और भरोसे की मिसाल थी।
उसकी इस अभूतपूर्व देशभक्ति को सलाम करते हुए भारतीय सेना ने उसे ‘ऑपरेशन सिंदूर का सबसे छोटा नागरिक योद्धा’ घोषित किया। मेजर जनरल मानराल ने एक गरिमामयी समारोह में श्रवण को सम्मानित किया और कहा—
"श्रवण की भावना हमें याद दिलाती है कि सैनिकों का हौसला केवल हथियारों से नहीं, बल्कि जनता के प्रेम और सहयोग से भी मजबूत होता है। यह बालक आने वाली पीढ़ी के लिए प्रेरणा का प्रतीक है।"
यह सम्मान केवल एक ताम्रपत्र नहीं, बल्कि उस जनचेतना का प्रतीक था, जो बताता है कि देश की रक्षा केवल सीमाओं पर ही नहीं, दिलों में भी होती है।
आज श्रवण कहता है—
"मैं बड़ा होकर फौजी बनना चाहता हूं। जैसे इन सैनिकों ने मेरी रक्षा की, वैसे ही मैं भी देश की रक्षा करना चाहता हूं।"
श्रवण की कहानी यह सिखाती है कि देशभक्ति उम्र नहीं देखती, वह सिर्फ नीयत और सेवा का भाव देखती है। यह एक ऐसे भारत की तस्वीर है, जहां हर नागरिक, चाहे वह बच्चा हो या बुज़ुर्ग, देश के लिए समर्पित है।
समाज को प्रेरित करती है यह कहानी
श्रवण का यह कार्य केवल एक बालक की भावना नहीं, बल्कि एक संघर्षशील राष्ट्र की आत्मा है, जो हर नागरिक को यह संदेश देती है—
"सीमा पर तैनात जवानों की हिम्मत सिर्फ उनके हथियार नहीं, बल्कि हम सबका साथ भी बढ़ाता है।"
यह कहानी उन सभी को समर्पित है जो बिना वर्दी पहने, बिना मंच पर आए, चुपचाप देश के लिए कुछ करते हैं—जिनका देशप्रेम शब्दों में नहीं, कर्मों में दिखाई देता है।