विजयादशमी 2025 : धर्म की विजय का पर्व

विजयादशमी 2025 : धर्म की विजय का पर्व

विजयादशमी, जिसे आमतौर पर दशहरा कहा जाता है, भारत का एक प्रमुख धार्मिक और सांस्कृतिक पर्व है। यह दिन सत्य पर असत्य, धर्म पर अधर्म और सद्गुणों पर दुर्गुणों की विजय का प्रतीक माना जाता है। परंपराओं और मान्यताओं के अनुसार, यह पर्व हमें याद दिलाता है कि चाहे बुराई कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो, अंततः जीत सद्गुण और धर्म की ही होती है।


2025 में खास संबंध

इस बार एक विशेष संयोग है—2 अक्टूबर 2025 को जब देश महात्मा गांधी की जयंती और अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस मना रहा होगा, उसी दिन विजयादशमी का पर्व भी मनाया जाएगा।
अर्थात् एक ही दिन भारत और विश्व को दो महान संदेश मिलेंगे—

  • गांधी जी का सत्य और अहिंसा का मार्ग

  • राम और दुर्गा की विजय गाथा, जो धर्म और न्याय की स्थापना का प्रतीक है।


???? उद्देश्य और उत्सव विधि

विजयादशमी पूरे भारत में अलग-अलग रूपों में मनाई जाती है, लेकिन इसकी आत्मा एक ही है—बुराई का अंत और अच्छाई की जीत।

  • उत्तर भारत :
    यहाँ भगवान श्रीराम की लंका विजय और रावण वध की गाथा को रामलीला और रावण दहन के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। शाम होते ही मेले में हजारों लोग इकट्ठा होकर आतिशबाजी और रावण, कुंभकर्ण और मेघनाथ के पुतलों का दहन देखते हैं।

  • पूर्वी भारत (विशेषकर पश्चिम बंगाल, असम, ओडिशा) :
    यहाँ यह पर्व दुर्गा पूजा के समापन के रूप में मनाया जाता है। माना जाता है कि इसी दिन देवी दुर्गा ने महिषासुर नामक असुर का वध कर धर्म की रक्षा की थी। इस अवसर पर विशाल मूर्तियों की विसर्जन यात्रा निकलती है।

  • दक्षिण भारत :
    यहाँ विजयादशमी को विद्या आरंभ और आयुध पूजा के रूप में भी मनाया जाता है। लोग इस दिन अपने शस्त्र, औज़ार और किताबों की पूजा करते हैं, ताकि ज्ञान और शक्ति का आशीर्वाद मिल सके।

  • पश्चिम भारत :
    गुजरात और महाराष्ट्र में यह समय नवरात्रि के अंतिम दिन का होता है। यहाँ गरबा और डांडिया के रंगीन आयोजन विजयादशमी तक चलते हैं।


 सांस्कृतिक महत्व

  • विजयादशमी हमें यह प्रेरणा देती है कि हर व्यक्ति अपने भीतर छिपे “रावण” यानी क्रोध, अहंकार, लोभ और ईर्ष्या को नष्ट करे।

  • यह पर्व सामाजिक एकता, सांस्कृतिक मेलजोल और धार्मिक आस्था का संगम है।

  • यह भारत की विविधता में एकता का भी सुंदर उदाहरण है, क्योंकि अलग-अलग परंपराओं में अलग-अलग कथाएँ होते हुए भी इसका मूल संदेश एक ही है—धर्म और सत्य की विजय।


2 अक्टूबर 2025 का दिन इतिहास में स्वर्णाक्षरों से अंकित होगा—जब भारत महात्मा गांधी की 156वीं जयंती, अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस और विजयादशमी का पर्व एक साथ मनाएगा।
यह दिन हमें यह स्मरण कराएगा कि—

  • अहिंसा और सत्य ही शांति का मार्ग हैं।

  • और धर्म व न्याय की रक्षा के लिए साहस और संघर्ष भी आवश्यक हैं।

विजयादशमी केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि यह आत्मबल, सत्य, धर्म और विजय का सनातन संदेश है।