सूरत में सड़क हादसा: समोसे-खम्मन बेचकर परिवार पालने वाले बद्रीविशाल तिवारी की दर्दनाक मौत, दो घंटे तक हाईवे पर पड़ा रहा शव

सूरत में सड़क हादसा: समोसे-खम्मन बेचकर परिवार पालने वाले बद्रीविशाल तिवारी की दर्दनाक मौत, दो घंटे तक हाईवे पर पड़ा रहा शव
  • आर.वी.9 न्यूज़ | संवाददाता, मनोज कुमार, रजनीश कुमार 
    • सूरत हादसा: समोसे बेचने वाले बद्रीविशाल की सड़क पर दर्दनाक मौत
    • 32 साल की मेहनत थमी हाईवे पर — ट्रेलर की चपेट में बद्रीविशाल की जान गई
    • रोज़ी की राह बनी आख़िरी यात्रा, सूरत में बद्रीविशाल तिवारी का दुखद अंत
    • हाईवे पर दो घंटे पड़ा रहा शव, टूटी एम्बुलेंस में भेजा गया पोस्टमार्टम को

    • प्रतापगढ़ के बद्रीविशाल की सूरत में मौत से ग़मगीन हुआ पूरा मोहल्ला

सूरत / प्रतापगढ़।
कहते हैं, जिंदगी की जद्दोजहद में रोज कमाने वाले कभी नहीं रुकते — लेकिन कभी-कभी वक्त इतनी बेरहमी से पलटता है कि मेहनतकश हाथ थम जाते हैं। ऐसा ही दिल दहला देने वाला हादसा गुजरात के सूरत जिले में सोमवार की सुबह हुआ, जब उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जनपद के रहने वाले 55 वर्षीय बद्रीविशाल तिवारी की सूरत के इच्छापोर थाना क्षेत्र के नेशनल हाईवे-53 पर एक तेज़ रफ्तार ट्रेलर की चपेट में आकर मौके पर ही मौत हो गई।

सुबह की रोज़ की दिनचर्या बनी आख़िरी यात्रा

बद्रीविशाल तिवारी पिछले 32 वर्षों से सूरत के हजीरा औद्योगिक क्षेत्र में समोसे और खम्मन बेचकर अपनी रोजी-रोटी चला रहे थे। प्रतिदिन की तरह सोमवार को भी वह सुबह करीब 6 बजे अपने घर – कवास स्थित भवानी मोहल्ला – से बाइक (GJ05FU4673) पर समोसे-खम्मन लेकर हजीरा की ओर निकले थे।
लेकिन तक़दीर ने जैसे उन्हें बुलावा दे दिया। सुबह लगभग 7 बजे, रिलायंस गेट नंबर-3 के सामने हजीरा की दिशा में जा रहे अंकिता रोडलाइन्स के ट्रेलर (MH46BP9117) ने उन्हें जोरदार टक्कर मार दी। टक्कर इतनी भीषण थी कि बद्रीविशाल तिवारी की मौके पर ही मौत हो गई।

दो घंटे तक सड़क पर पड़ा रहा शव, टूटी एम्बुलेंस में भेजा गया पोस्टमार्टम के लिए

हादसे के बाद स्थानीय लोगों में आक्रोश फैल गया। लोगों ने पुलिस से शव उठाने से पहले उचित कार्रवाई की मांग की और हाईवे पर रुककर विरोध जताया। बताया जा रहा है कि हादसे के बाद शव को करीब दो घंटे तक नेशनल हाईवे 53 पर चादर से ढककर छोड़ दिया गया, जबकि यातायात सामान्य रूप से चलता रहा। करीब सुबह 9:10 बजे, पुलिस ने शव को एम्बुलेंस के जरिए पोस्टमार्टम के लिए भेजा — लेकिन विडंबना यह रही कि जिस एम्बुलेंस में शव भेजा गया, उसका एक दरवाज़ा टूटा और क्षतिग्रस्त था। घटना स्थल पर मौजूद लोगों ने इस दृश्य पर सवाल उठाते हुए कहा कि “क्या हमारे समाज में मजदूर की लाश भी सम्मान की हकदार नहीं?”

परिजनों में कोहराम, पुलिस ने चालक को लिया हिरासत में

मृतक के पुत्र आकाश तिवारी ने बताया कि उनके पिता रोज़ की तरह काम पर गए थे, परंतु किसे पता था कि यह उनका आख़िरी दिन होगा। पुलिस ने ट्रेलर चालक और वाहन को अपने कब्जे में ले लिया है, और घटना की जांच शुरू कर दी है। उधर, यह खबर जैसे ही कवास के भवानी मोहल्ला पहुँची, पत्नी आशा देवी और परिजनों में कोहराम मच गया। पूरे मोहल्ले में शोक की लहर दौड़ गई।

समाज में सवाल – मेहनतकश की मौत पर संवेदनहीनता क्यों?

यह हादसा सिर्फ़ एक सड़क दुर्घटना नहीं, बल्कि समाज की संवेदनहीनता का आईना भी बन गया। एक व्यक्ति जिसने तीन दशकों तक पसीना बहाकर ईमानदारी से अपने परिवार का पेट भरा — उसकी मौत के बाद भी तंत्र की बेरुख़ी ने दिलों को झकझोर दिया। लोगों का कहना है कि “अगर हादसे के बाद तत्परता और सम्मान दिखाया गया होता, तो शायद इंसानियत पर विश्वास और गहरा होता।”


बद्रीविशाल तिवारी की यह कहानी उस संघर्षशील भारत की कहानी है जहाँ लोग अपने पसीने से सपने सजाते हैं। लेकिन जब ऐसे कर्मयोगी किसी सड़क के किनारे बेबस मौत का शिकार होते हैं, तो सवाल उठता है — क्या व्यवस्था का दिल अब पत्थर हो गया है?
उनकी याद में अब सिर्फ समोसे और खम्मन की खुशबू ही रह गई है, जो हर सुबह हजीरा की सड़कों पर फिर कभी महसूस नहीं होगी...