गोबर से जीवन में उजियारा — ‘गोबर-धन योजना’ बनी ग्रामीण परिवारों की खुशहाली का सहारा

- आर.वी.9 न्यूज़ | संवाददाता, मनोज कुमार
सूरत (गुजरात)।
गांव की तंग गलियों और साधारण सी कच्ची झोपड़ी से निकलती मुस्कुराहट जब उम्मीद में बदल जाए, तो समझिए सरकार की योजना ने सचमुच जीवन को छुआ है। सूरत जिले के उमरपाड़ा तालुका के छोटे से गांव बिलवान की यशोदाबेन वसावा आज अपने परिवार के साथ वही मुस्कान लिए बैठी हैं। उनकी आंखों में चमक और चेहरे पर संतोष है, क्योंकि राज्य सरकार की महत्वाकांक्षी ‘गोबर-धन योजना’ ने उनके जीवन की दशा और दिशा दोनों बदल दी है।
एक गरीब परिवार की बड़ी उम्मीद
यशोदाबेन बताती हैं—
"सरकार की यह योजना हमारे जैसे गरीब परिवारों के लिए किसी वरदान से कम नहीं। आज हमारे बच्चों का भविष्य सुरक्षित दिख रहा है। पहले खाना बनाने के लिए लकड़ी ढूंढना पड़ता था, धुआं और मेहनत से सांस लेना मुश्किल हो जाता था। अब घर में बायोगैस का चूल्हा जलता है, जिससे समय और पैसा दोनों बचता है।"
वह आगे कहती हैं कि इस योजना ने न केवल घर की रसोई को धुएं से मुक्त किया है, बल्कि गोबर से बनी गैस ने उन्हें ऊर्जा का नया साधन भी दिया है। इससे अब आसपास का वातावरण भी स्वच्छ और हरा-भरा हो गया है।
गांव की महिलाओं के लिए नई राह
बिलवान गांव ही नहीं, बल्कि आसपास के कई गांवों में भी यह योजना महिलाओं के जीवन में बड़ा बदलाव ला रही है।
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पहले लकड़ी बीनने और रसोई में धुएं से जूझने वाली महिलाएं अब स्वास्थ्य लाभ पा रही हैं।
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बायोगैस से बचा हुआ स्लरी खेतों के लिए बेहतरीन खाद साबित हो रही है, जिससे किसानों की उपज बढ़ी है।
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आर्थिक बोझ कम होने के साथ-साथ, परिवार की महिलाएं अब छोटे-छोटे रोजगारों में भी समय दे पा रही हैं।
गांव की एक बुजुर्ग महिला कहती हैं— “गोबर पहले बेकार समझा जाता था, अब वही हमारा सबसे बड़ा सहारा बन गया है।”
पर्यावरण और अर्थव्यवस्था दोनों को सहारा
‘गोबर-धन योजना’ से ग्रामीण परिवारों को केवल खाना बनाने के लिए ईंधन ही नहीं मिला, बल्कि पर्यावरण को भी राहत मिली है।
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पेड़ों की कटाई कम हुई है।
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घरों से निकलने वाला धुआं घटा है।
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गोबर के प्रबंधन से गांव साफ-सुथरे दिखने लगे हैं।
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किसानों की जमीन में प्राकृतिक खाद पहुंच रही है, जिससे रासायनिक खाद पर खर्च कम हुआ है।
यह योजना एक तरफ ग्रामीण अर्थव्यवस्था को गति दे रही है, तो दूसरी तरफ जलवायु परिवर्तन जैसे गंभीर संकट से लड़ने में भी मददगार साबित हो रही है।
उम्मीद से उजाले तक की यात्रा
यशोदाबेन जैसी हजारों ग्रामीण महिलाओं के चेहरे पर लौट आई मुस्कान इस बात का सबूत है कि जब योजनाएं सही दिशा में लागू होती हैं, तो उनका असर समाज की जड़ों तक पहुंचता है।
‘गोबर-धन योजना’ ने गरीब परिवारों को सिर्फ बायोगैस ही नहीं दी, बल्कि आत्मनिर्भरता, स्वास्थ्य और सम्मान का उपहार भी दिया है। यह योजना ग्रामीण भारत के लिए एक नई ऊर्जा, एक नया उजियारा और भविष्य की नई उम्मीद लेकर आई है।
“गोबर बना सोना — सूरत के गांव में ‘गोबर-धन योजना’ से उज्जवल हुआ गरीब परिवारों का भविष्य”