जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस-एनसी का रिश्ता: न सरकार में हिस्सा, न राज्यसभा की सीट — क्या है इनकी यारी?

जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस-एनसी का रिश्ता: न सरकार में हिस्सा, न राज्यसभा की सीट — क्या है इनकी यारी?

जम्मू-कश्मीर की राजनीतिक गलियारों में अब कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) के रिश्ते को लेकर उठ रहे सवाल और तेज़ हो गए हैं। लंबे समय से दोनों पार्टियों की ‘मिठास भरी’ दोस्ती को जनता और विश्लेषक अब चुनौती दे रहे हैं।

कांग्रेस का खाली हाथ:
उमर अब्दुल्ला की अगुवाई वाली सरकार में कांग्रेस को कोई अहम मंत्रालय या राजनीतिक हिस्सा नहीं मिला। फिर हाल ही में राज्यसभा चुनाव में भी पार्टी की उम्मीदों पर पानी फिर गया। कई नेताओं ने मानना शुरू कर दिया है कि एनसी-कांग्रेस का गठजोड़ सिर्फ नाम का है, हकीकत में कांग्रेस को कोई सशक्त राजनीतिक लाभ नहीं मिल रहा।

एनसी की स्थिति:
एनसी की नजरें खुद पर हैं। राज्य की सत्ता में प्रमुख रहने के कारण वे अपने राजनीतिक एजेंडे को आगे बढ़ाने में जुटी हैं। कांग्रेस को कहीं ‘मूक दर्शक’ की भूमिका में डाल दिया गया, जिससे यह सवाल उठ रहा है कि यह यारी कितनी वास्तविक और टिकाऊ है।

विश्लेषकों की राय:
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि यह गठजोड़ रणनीतिक मजबूरी के कारण है, न कि सच्ची दोस्ती या साझा विकास की दिशा में एक समझौता। अगर कांग्रेस को बार-बार पीछे रखा गया, तो आने वाले समय में यह यारी राजनीतिक तनातनी में बदल सकती है।

जनता की नजर:
जम्मू-कश्मीर के लोग भी अब पूछ रहे हैं—क्या गठजोड़ सिर्फ राजनीतिक दिखावा है, या सच में राज्य की जनता के हित में काम कर रहा है? कांग्रेस की गैर-भागीदारी ने लोगों में सवाल खड़े कर दिए हैं कि क्या वास्तव में गठजोड़ का कोई मोल है।

जम्मू-कश्मीर की राजनीति में कांग्रेस-एनसी की यारी अब चुनौतीपूर्ण मोड़ पर है। सरकार में हिस्सा न मिलना और राज्यसभा सीटों से वंचित रहना यह संकेत दे रहा है कि राजनीतिक गठजोड़ केवल कागजों तक सीमित रह गया है। अब देखना होगा कि कांग्रेस किस तरह अपनी भूमिका और ताकत को इस यारी में बनाए रखती है, या फिर यह रिश्ता समय के साथ फीका पड़ जाता है।