मां-बेटी की ज़िंदगी बची इंसानियत की जागरूकता से: जरलही पुल पर आत्मघाती कदम से पहले राहगीरों ने दिखाई वीरता

मां-बेटी की ज़िंदगी बची इंसानियत की जागरूकता से: जरलही पुल पर आत्मघाती कदम से पहले राहगीरों ने दिखाई वीरता

— खजनी, गोरखपुर से विशेष रिपोर्ट

गोरखपुर के खजनी थाना क्षेत्र में गुरुवार को एक दिल दहला देने वाली घटना उस समय एक करुण कहानी बनते-बनते टल गई, जब एक महिला ने अपनी मासूम बेटी के साथ जीवन समाप्त करने का प्रयास किया। लेकिन, राहगीरों की सूझबूझ और मानवीय जागरूकता ने एक बड़ा हादसा रोक दिया।

घटना खजनी के जरलही पुल की है, जहां पूनम नाम की एक महिला, पारिवारिक कलह और जेठानी से परेशान होकर, अपनी 7 साल की नन्ही बच्ची पलक को साथ लेकर आत्मघात करने निकली थी। लेकिन जैसे ही वह पुल के किनारे पहुंची, मासूम बच्ची की जोर-जोर से रोने की आवाज़ सुनकर राहगीरों की नजर पड़ी और बिना देरी किए उन्होंने साहस दिखाते हुए मां-बेटी दोनों को आत्मघाती कदम से रोक लिया।

मायके-ससुराल के बीच उलझी ज़िंदगी

जानकारी के अनुसार, पूनम का मायका रघुनाथपुर माल्हनपार में है जबकि उसका ससुराल खजनी क्षेत्र के महुआ डाबर चौकी अंतर्गत ग्राम सभा खोरठा हरिजन बस्ती में है। पारिवारिक तनाव, जेठानी के साथ रोज़ के टकराव और घरेलू जीवन में गहराते अंधेरे ने उसे इस कगार तक पहुँचा दिया, जहां ज़िंदगी की डोर छोड़ने का ख्याल उस पर हावी हो गया।

एक साहसी क्षण ने बचाई दो ज़िंदगियाँ

पुल से छलांग लगाने की तैयारी कर रही पूनम और उसके साथ सहमी हुई पलक, दोनों की ज़िंदगी उस वक्त थम गई जब राहगीरों ने समय रहते पहल की। उनकी तत्परता और संवेदनशीलता ने यह साबित कर दिया कि समाज में अभी भी इंसानियत की लौ जल रही है।

पुलिस और समाज का सहयोग

घटना की सूचना पर पहुंची पुलिस ने तत्परता से स्थिति को संभाला और पूनम को सुरक्षित उसके देवर के सुपुर्द कर दिया। स्थानीय लोगों ने भी गहरी चिंता जताते हुए कहा कि ऐसी घटनाएं मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता और भावनात्मक सहयोग की तत्काल ज़रूरत को दर्शाती हैं।


क्यों ज़रूरी है संवाद और सहारा

यह घटना सिर्फ एक महिला की नहीं, बल्कि उन तमाम घरों की है, जहां संवाद की कमी, ताने, अपमान और असमर्थन आत्मा को चीरते रहते हैं। जब कोई चुप रहता है, वह टूटता है। ऐसे समय में परिवार, पड़ोस और समाज को मिलकर वह सहारा बनना होगा जो किसी को इस तरह का कदम उठाने से रोक सके।


जरलही पुल की यह घटना हमें यही सिखाती है कि हम यदि थोड़े से सतर्क, संवेदनशील और जागरूक रहें, तो कई ज़िंदगियाँ बचाई जा सकती हैं। पूनम और पलक आज जिंदा हैं — इसका श्रेय उन अनजान राहगीरों को है जिन्होंने इंसानियत का सबसे बड़ा फर्ज निभाया।

अगर आप या आपका कोई परिचित मानसिक तनाव से जूझ रहा है, तो चुप न रहें। बात करें, मदद लें और जीवन को फिर से एक अवसर दें। क्योंकि हर जीवन कीमती है।