127 साल बाद भारत लौटीं भगवान बुद्ध की पवित्र पिपरहवा निशानियां: प्रधानमंत्री मोदी ने बताया ‘गौरव का क्षण’

30 जुलाई 2025 | स्रोत: पीआईबी दिल्ली
रिपोर्ट: मनोज सिंह
नई दिल्ली — भारत की सांस्कृतिक विरासत के इतिहास में आज एक ऐतिहासिक पन्ना जुड़ गया, जब भगवान बुद्ध की पवित्र पिपरहवा निशानियां 127 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद भारत लौट आईं। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने इस अविस्मरणीय क्षण का स्वागत करते हुए कहा कि यह हर भारतीय के लिए गर्व और खुशी का दिन है।
क्या हैं पिपरहवा निशानियां?
पिपरहवा, उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर ज़िले में स्थित है और इसे भगवान बुद्ध के काल से जुड़ा प्राचीनतम बौद्ध स्थल माना जाता है।
यहाँ से वर्ष 1898 में ब्रिटिश पुरातत्वविद डब्ल्यूसी पेपे द्वारा खुदाई में कुछ पवित्र अवशेष और वस्तुएं मिलीं, जिन्हें बाद में भारत से बाहर ले जाया गया था।
इतिहास की घर वापसी:
प्रधानमंत्री ने जानकारी दी कि —
“यह स्मरणीय है कि पिपरहवा निशानियां 1898 में खोजी गई थीं, किंतु औपनिवेशिक काल के दौरान इन्हें भारत से बाहर ले जाया गया था।
जब इस वर्ष की शुरुआत में ये एक अंतरराष्ट्रीय नीलामी में दिखाई दीं, तो हमने यह सुनिश्चित करने के लिए कूटनीतिक और कानूनी प्रयास किए कि ये स्वदेश वापस लौटें।”
प्रधानमंत्री ने इस पुनीत कार्य में योगदान देने वाले सभी लोगों और संस्थाओं का आभार जताया।
‘विकास भी, विरासत भी’: एक नई दिशा
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने एक्स (पूर्व ट्विटर) पोस्ट में लिखा:
???? “हमारी सांस्कृतिक विरासत के लिए एक खुशी का दिन!
भगवान बुद्ध की पवित्र पिपरहवा निशानियां 127 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद स्वदेश वापस आ गई हैं, यह जानकर हर भारतीय को गर्व होगा।
ये पवित्र निशानियां भगवान बुद्ध और उनकी महान शिक्षाओं के साथ भारत के घनिष्ठ संबंध को दर्शाती हैं।
यह हमारी गौरवशाली संस्कृति के विभिन्न पहलुओं के संरक्षण और सुरक्षा के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को भी दर्शाती है।
#विकास_भी_विरासत_भी”
भारत और भगवान बुद्ध: एक आध्यात्मिक सेतु
भगवान बुद्ध की शिक्षाएं न केवल भारत की आत्मा में रची-बसी हैं, बल्कि विश्व में भारत की पहचान और सांस्कृतिक शक्ति का भी आधार हैं। पिपरहवा निशानियों की वापसी, भारत के खोए हुए गौरव को फिर से स्थापित करने की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम है।
सरकार की प्रतिबद्धता
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खोई हुई धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहरों को वापस लाने का निरंतर प्रयास
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‘विकास भी, विरासत भी’ की नीति को मूर्त रूप देना
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युवाओं को अपने इतिहास और संस्कृति से जोड़ना
127 वर्षों बाद भगवान बुद्ध की स्मृति से जुड़ी धरोहरों की घर वापसी, न केवल एक सांस्कृतिक विजय है, बल्कि यह राष्ट्रीय गौरव, अस्मिता और आत्मनिर्भरता का प्रतीक भी है। यह घटना भारत को उसकी आध्यात्मिक जड़ों से फिर से जोड़ने की दिशा में एक ऐतिहासिक अध्याय है।