पश्चिम बंगाल के मिदनापुर में तिल के फूलों को प्रभावित करने वाले बैक्टीरिया की पहचान की गई

पश्चिम बंगाल के मिदनापुर में तिल के फूलों को प्रभावित करने वाले बैक्टीरिया की पहचान की गई

शोधकर्ताओं ने एक नए बैक्टीरिया की पहचान की है जो पश्चिम बंगाल के मिदनापुर में तिल की फसल को प्रभावित करने के लिए जिम्मेदार है।

तिल को तेल की रानी फसल भी कहा जाता है। यह ​​एक आदिम तिलहन फसल है क्योंकि तिल के बीज के अवशेष हड़प्पा और मोहनजोदड़ो में पाये गए थे। तिल का तेल औषधीय दृष्टि से उत्कृष्ट है और इसमें एंटीऑक्सीडेंट होते हैं, जिसकी वजह से यह हृदय रोगियों के लिए उपयुक्त है, लेकिन हम इसे अक्सर मुख्य खाद्य तेल के रूप में उपयोग नहीं करते हैं। भारतीय तिल की किस्मों में सुधार की आवश्यकता है ताकि उनके औषधीय गुणों का फायदा उठाया जा सके।

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के स्वायत्त संस्थान ‘बोस इंस्टीट्यूट’ के जैविक विज्ञान विभाग के प्रोफेसर गौरव गंगोपाध्याय ने अपनी टीम के साथ पिछले चौदह वर्षों से तिल की फसल के इस पहलू पर काम किया है। उन्होंने आणविक मार्कर-सहायता प्राप्त प्रजनन के माध्यम से कुछ उन्नत किस्मों को सफलतापूर्वक विकसित किया है।

हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में, प्रो. गंगोपाध्याय और उनकी टीम ने पश्चिम बंगाल के पूर्वी और पश्चिमी मिदनापुर जिलों के दौरे के दौरान तिल के खेतों में एक रहस्यमय बीमारी पाई है। उन्होंने पाया कि इस बीमारी के कारण फूल आने के बाद तिल के पौधे अपनी पूर्व वानस्पतिक अवस्था में लौट रहे हैं और गुलाबी रंगत के साथ सफेद फूल हरे हो जाते हैं।

प्रोफेसर गंगोपाध्याय ने इस बीमारी पर शोध करते हुए पेड़-पौधों को खाने वाले लीफहॉपर और प्लांट-हॉपर जैसे कीटों की आंत में रहने वाले एक नए बैक्टीरिया की पहचान की, जो पौधे के नरम ऊतक फ्लोएम को चूसने वाला है और इस गंभीर बीमारी का कारक है।

फ्लोएम पेड़-पौधों में नलिका युक्त कोशिकाएं होती हैं, जो पत्तियों से शर्करा और भोजन को नीचे की ओर लाने में मदद करती हैं। इस बैक्टीरिया में कोशिका भित्ति (सेलवाल) नहीं पाई जाती है और इसे मॉलिक्यूट्स यानी कैंडिडेटस फाइटोप्लाज्मा कहा जाता है। ये बैक्टीरिया पौधों की पोषक तत्वों से भरपूर फ्लोएम और सीव कोशिकाओं में पनपते हैं। इन बैक्टीरिया का प्रसार मुख्य रूप से फ्लोएम ऊतक खाने वाले कीटों (लीफहॉपर, प्लांट-हॉपर, साइलिड्स और डोडर्स) के माध्यम से होता है, जो कैथेरन्थस , तंबाकू, मक्का और अंगूर जैसी कई व्यावसायिक रूप से मूल्यवान फसलों को संक्रमित करने के लिए जाने जाते हैं। रोग के लक्षण पुष्प भागों की विकृति और असामान्य रूप से हरे रंग की अधिकता के रूप में सामने आते हैं, जिससे वह हिस्सा एक पत्ती जैसी उपस्थिति देता है।

फाइटोप्लाज्मा संक्रमण के बारे में जानकारी की कमी को ध्यान में रखते हुए, इस शोध में तिल की फसल पर इस बैक्टीरिया के प्रभाव का पता लगाया गया। यह शोधपत्र हाल ही में 2024 में ‘प्लांट मॉलिक्यूलर बायोलॉजी रिपोर्टर’ में प्रकाशित हुआ था। यह शोधकार्य जैविक प्रणालियों का अध्ययन करने के लिए मूल्यवान होगा और फाइटोप्लाज्मा संक्रमण के लिए तिल के पौधे की आणविक प्रतिक्रियाओं को समझने में मदद कर सकता है।