एनएचआरसी ने पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन और मानवाधिकारों पर मुख्य सलाहकार बैठक आयोजित की
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी), भारत ने नई दिल्ली में अपने परिसर में 'जलवायु परिवर्तन और मानवाधिकार' विषय पर पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन और मानवाधिकारों पर एक कोर सलाहकार समूह बैठक आयोजित की। इसका उद्घाटन करते हुए, एनएचआरसी, भारत की कार्यवाहक अध्यक्ष, श्रीमती विजया भारती सयानी ने इस बात पर जोर दिया कि जलवायु परिवर्तन कमजोर समुदायों, विशेष रूप से आदिवासी लोगों को प्रभावित कर रहा है, जिनकी पारंपरिक आजीविका सीधे पर्यावरण से जुड़ी हुई है। उन्होंने भारतीय ग्रंथों में निहित प्राचीन ज्ञान पर प्रकाश डाला, जो मानवता और प्रकृति के बीच गहरे संबंध को रेखांकित करता है, ताकि जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न चुनौतियों से निपटने के लिए समाधान खोजा जा सके।
उन्होंने आपदा की तैयारियों को मजबूत करने और लचीली प्रणालियों के निर्माण में तत्काल कार्रवाई का आह्वान किया। व्यवसायों से पर्यावरण और मानवाधिकारों का सम्मान करते हुए सतत प्रथाओं को अपनाने का आग्रह करते हुए, उन्होंने जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने में कॉर्पोरेट जवाबदेही की आवश्यकता पर बल दिया।
इससे पहले, एनएचआरसी, भारत के महासचिव श्री भरत लाल ने अपने उद्घाटन भाषण में जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण संबंधी चिंताओं को मानवाधिकारों के नजरिए से संबोधित करने के महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि स्वच्छ, स्वस्थ और कार्यात्मक वातावरण जिसमें स्वच्छ हवा और पानी का अधिकार शामिल है, जीवन, स्वास्थ्य, भोजन और सभ्य जीवन स्तर जैसे बुनियादी मानवाधिकारों के आनंद के लिए आवश्यक है।
श्री लाल ने जलवायु परिवर्तन संबंधी चिंताओं से निपटने के लिए निगरानी प्रणालियों को मजबूत करने और सभी हितधारकों द्वारा समन्वित कार्रवाई को बढ़ावा देने की तत्काल आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने प्रतिभागियों से ठोस सलाह और कार्रवाई योग्य सुझाव साझा करने का आग्रह किया, ताकि एनएचआरसी सरकार को आवश्यक सिफारिशें करने में सक्षम हो सके।
एनएचआरसी के संयुक्त सचिव श्री देवेन्द्र कुमार निम ने चर्चा के लिए तीन एजेंडों में विभाजित बैठक का अवलोकन दिया। ये थे- स्वदेशी आबादी पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव, अत्यधिक मौसम घटनाएँ और जीवन तथा आजीविका पर उनका प्रभाव, और जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में कॉर्पोरेट जवाबदेही। उन्होंने पर्यावरण क्षरण से संबंधित मानवाधिकार उल्लंघनों को संबोधित करने के लिए एनएचआरसी के चल रहे प्रयासों पर प्रकाश डाला, जिसमें 8,900 से अधिक मामलों का समाधान शामिल है। उन्होंने पर्यावरण प्रदूषण के प्रभावों को कम करने के लिए राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को जारी आयोग की सलाह पर भी जोर दिया, जिसके कारण कर्नाटक में विशेष पर्यावरण न्यायालयों की अधिसूचना जैसी महत्वपूर्ण कार्रवाई हुई है।
चर्चा से प्राप्त कुछ सुझाव इस प्रकार थे:
1. जलवायु परिवर्तन के आयामों को समझने के लिए जिला स्तर पर डेटा एकत्र करना, तथा इसके प्रभाव को कम करने के लिए स्थायी समाधानों के साथ विशेषज्ञता विकसित करने के लिए स्थानीय समुदायों के साथ सहयोग करना आवश्यक है;
2. भारत में ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों की ओर प्रवास पर जलवायु परिवर्तन के कारणों और प्रभावों पर अनुसंधान को बढ़ावा देना;
3. जलवायु परिवर्तन से प्रभावित क्षेत्रों की पहचान कर जलवायु जोखिम एटलस तैयार करना और संभावित प्रभावों को कम करना;
4. “पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम, 1996” (पेसा अधिनियम) और वन अधिकार अधिनियम (2006) के प्रावधानों का प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित करना;
5. कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व विषयों को पर्यावरणीय मुद्दों के साथ पुनः संरेखित करना ताकि शहरी क्षेत्रों से ग्रामीण क्षेत्रों पर पुनः ध्यान केन्द्रित किया जा सके;
6. फसलों के अलावा कृषि वानिकी के लिए 1 लीटर पानी की तकनीक का उपयोग करके बंजर क्षेत्रों में वृक्षारोपण को प्रोत्साहित करना
आयोग जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न विभिन्न चुनौतियों से निपटने के लिए सरकार को अपनी संस्तुति अंतिम रूप देने के लिए विभिन्न सुझावों पर आगे विचार-विमर्श करेगा।
वक्ताओं में अन्य लोगों के अलावा पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के संयुक्त सचिव श्री नीलेश कुमार साह; केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव श्री भरत कुमार शर्मा; पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन और मानवाधिकार पर एनएचआरसी के विशेष मॉनिटर श्री अमिताभ अग्निहोत्री; पर्यावरणविद् श्री सुंदरम वर्मा; सामाजिक कार्यकर्ता और शिलांग टाइम्स की संपादक श्रीमती पेट्रीसिया मुखिम; भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) के वैज्ञानिक-जी डॉ. बीएस अधिकारी; राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान की मुख्य वैज्ञानिक डॉ. पद्मा राव; वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग के निदेशक श्री राम कुमार अग्रवाल; राष्ट्रीय वर्षा सिंचित क्षेत्र प्राधिकरण के निदेशक कर्नल रवींद्र यादव; भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद के उप निदेशक श्री विनय कुमार (आईएफएस); तथा आईआईएससी बैंगलोर के सेवानिवृत्त प्रोफेसर प्रो. एनएच रवींद्रनाथ शामिल थे।