18 साल का संघर्ष, एक बाप की टूटती उम्मीदें— पंजाब के पूर्व DGP मोहम्मद मुस्तफा ने बेटे की मौत पर तोड़ी चुप्पी, बयां किया दर्द का पहाड़

चंडीगढ़।
कभी पंजाब पुलिस के सबसे कड़े अफसरों में शुमार रहे पूर्व DGP मोहम्मद मुस्तफा ने अपने बेटे की मौत पर चुप्पी तोड़ दी है। 35 वर्षीय बेटे फैसल मुस्तफा के निधन के बाद पहली बार सार्वजनिक रूप से बोलते हुए उन्होंने 18 साल की एक दर्दनाक जद्दोजहद को बयां किया — जो किसी भी पिता के लिए इंसानी हिम्मत की हदों को छू लेने वाली कहानी है।
“वो मेरे जिगर का टुकड़ा था, पर जिंदगी ने उसे हर दिन तोड़ा”
मोहम्मद मुस्तफा ने कहा, “मैंने बेटे को बचाने के लिए हर दरवाज़ा खटखटाया। डॉक्टरों, दवाओं और दुआओं — सब कुछ आज़मा लिया, लेकिन शायद ऊपरवाले ने उसके लिए कुछ और लिख दिया था।”
फैसल पिछले 18 वर्षों से गंभीर बीमारी से जूझ रहे थे। इलाज के दौरान उन्होंने कई बार कठिन दौर देखे, मगर पिता ने उम्मीद नहीं छोड़ी। मुस्तफा ने बताया कि वह हर रात बेटे के दर्द को महसूस करते हुए खुद भी टूटते चले गए, लेकिन बेटे के चेहरे पर मुस्कान देखकर फिर से संभल जाते।
एक सिपाही से पिता तक की यात्रा — ताकतवर इंसान भी बिखर गया
पंजाब पुलिस के DGP पद तक पहुंचे मुस्तफा अपनी सख्त कार्यशैली और ईमानदारी के लिए जाने जाते रहे हैं। लेकिन बेटे की बीमारी ने इस कड़े अफसर को भी भीतर से तोड़ दिया। उन्होंने कहा, “मैंने अपने करियर में मौत और दर्द बहुत देखा, लेकिन बेटे की बीमारी के सामने सब कुछ छोटा लगने लगा। जब कोई अपने बच्चे को हर दिन दर्द में देखता है, तो उसकी आत्मा भी रोती है।”
मुस्तफा ने स्वीकार किया कि इस संघर्ष ने उन्हें न केवल पिता के रूप में, बल्कि इंसान के रूप में भी बदल दिया। उन्होंने कहा, “अब समझ आता है कि किसी की तकलीफ को महसूस करने के लिए दिल चाहिए, वर्दी नहीं।”
18 साल की जद्दोजहद — उम्मीद, इलाज और टूटते पल
फैसल की बीमारी ने पूरे परिवार को भीतर तक हिला दिया था। कई बार इलाज के लिए विदेश भी ले जाया गया, पर कोई ठोस सुधार नहीं हुआ। मुस्तफा ने बताया कि हर बार उम्मीद की एक किरण उठती और फिर अंधेरे में बदल जाती।
उन्होंने कहा, “डॉक्टर कहते थे — अब शायद कुछ हफ़्ते ही बचे हैं, लेकिन वो 18 साल तक जूझता रहा। वही उसकी सबसे बड़ी बहादुरी थी।”
“अल्लाह की मर्ज़ी के आगे झुक गया” — पिता की आख़िरी जुबान में दर्द और सुकून
अपने बयान के अंत में मुस्तफा ने बेहद भावुक होते हुए कहा, “मैंने उसे अपनी गोद में खोया... पर यही सुकून है कि मैंने उसे आख़िरी पल तक मुस्कराते देखा।”
उन्होंने समाज से अपील की कि ऐसे परिवारों के दर्द को समझें जो लंबे समय से किसी बीमारी या कठिनाई में जूझ रहे हैं। “हर घर में कोई न कोई दर्द होता है, लेकिन अगर समाज थोड़ी संवेदना दिखाए, तो कई ज़िंदगियाँ आसान हो सकती हैं।”
एक पिता की कहानी जिसने हिम्मत से हार तक का सफर तय किया
मोहम्मद मुस्तफा की यह कहानी केवल एक पिता का दर्द नहीं, बल्कि उस हर इंसान की झलक है जो प्यार और खोने के बीच के युद्ध से गुज़रता है। कभी सख्त अफसर रहे मुस्तफा आज एक टूटे पिता हैं, जिनकी आँखों में आँसू हैं, लेकिन लफ्जों में हिम्मत — जो समाज को ये सिखा जाते हैं कि ज़िंदगी से बड़ा कोई इम्तिहान नहीं, और मोहब्बत से बड़ी कोई जीत नहीं।