स्वच्छता में नंबर-1 सूरत, लेकिन मोरा गाँव में कचरे के ढेरों में भोजन ढूंढते मवेशी!

स्वच्छता में नंबर-1 सूरत, लेकिन मोरा गाँव में कचरे के ढेरों में भोजन ढूंढते मवेशी!

  • रकारी योजनाओं के बावजूद सुवाली मार्ग पर पसरा गंदगी का साम्राज्य, प्लास्टिक के ढेर में जानवरों की जिंदगी खतरे में

आर.वी.9 न्यूज़ | संवाददाता, मनोज कुमार, रजनीश कुमार 

सूरत (गुजरात)।
एक ओर सूरत को स्वच्छता सर्वेक्षण 2023 में इंदौर के साथ संयुक्त रूप से भारत का नंबर-1 स्वच्छ शहर घोषित किया गया था, और 2024 में भी यह देश का दूसरा सबसे स्वच्छ शहर बना मगर इसी सूरत जिले के चोर्यासी तहसील अंतर्गत मोरा ग्राम पंचायत क्षेत्र में तस्वीर इसके ठीक उलट दिखती है।


यहाँ सुवाली मार्ग के किनारे कचरे के विशाल अंबारों में मवेशी भोजन की तलाश करते नज़र आते हैं। जहाँ एक ओर राज्य और केंद्र सरकार "स्वच्छ भारत मिशन" के तहत रोज़ाना नई-नई योजनाएं चला रही हैं, वहीं दूसरी ओर इस इलाके में कचरा प्रबंधन की बदहाली व्यवस्था इन योजनाओं की जमीनी सच्चाई को उजागर कर रही है।


कचरे के अंबारों पर स्वच्छताका पर्दा

मोरा गाँव के बाहर सुवाली मार्ग किनारे दिन-रात सड़े-गले कचरे, प्लास्टिक और पॉलिथीन के ढेर पड़े रहते हैं। इन ढेरों से उठती दुर्गंध और मवेशियों का जमावड़ा, लोगों के स्वास्थ्य और स्वच्छता दोनों के लिए खतरा बन चुका है। राहगीरों का कहना है कि हर दिन हज़ारों लोग इस मार्ग से गुजरते हैं, मगर किसी अधिकारी या पंचायत प्रतिनिधि की नज़र इस ओर नहीं पड़ती।प्लास्टिक पर सरकार की सख्त रोक के बावजूद यहाँ कचरे में सबसे ज्यादा मात्रा प्लास्टिक की थैलियों और बोतलों की ही दिखाई देती है। यही नहीं, इन्हीं के बीच भोजन तलाशते गाय-बैल अक्सर इन खतरनाक पॉलिथिनों को निगल जाते हैं, जिससे उनकी जान तक पर बन आती है।


गौशालाओं के बावजूद सड़कों पर भटकते मवेशी

सरकार की ओर से हर ग्राम पंचायत में गौशाला निर्माण और मवेशियों की सुरक्षा के लिए योजनाएं बनाई जा रही हैं, मगर मोरा गाँव इसका एक दर्दनाक अपवाद है। यहाँ गौशाला के अभाव में मवेशी सड़कों पर भटक रहे हैं, और जो भी कचरा मिलता है, उसी को अपना भोजन बना रहे हैं। गाँव के स्थानीय लोगों ने बताया कि कई बार सफाई कर्मियों और पंचायत को इस बारे में अवगत कराया गया, लेकिन स्थिति जस की तस बनी हुई है। सूरत शहर को देश का स्वच्छता मॉडल कहा जाता है, पर गाँवों की हकीकत इस मॉडल को कटघरे में खड़ा कर देती है,” एक ग्रामीण ने कहा।


स्वच्छ भारत का सपना या सिर्फ़ शहरों तक सीमित योजना?

मोरा की यह तस्वीर एक बड़ा सवाल खड़ा करती है
क्या स्वच्छता अभियान केवल शहरी सीमाओं तक सीमित है?
क्या गाँवों और ग्रामीण इलाकों की गंदगी किसी की प्राथमिकता नहीं रही?

सूरत जैसे शहर जब राष्ट्रीय स्तर पर स्वच्छता के पुरस्कार जीतते हैं, तो अपेक्षा रहती है कि उसके ग्रामीण क्षेत्र भी उसी अनुशासन और जागरूकता के प्रतीक बनें। लेकिन मोरा गाँव का यह दृश्य बताता है कि स्वच्छ भारत का सपना तभी साकार होगा जब गाँव से लेकर शहर तक हर स्तर पर एक समान ज़िम्मेदारी और सख्ती दिखाई दे।


स्वच्छता सिर्फ़ पुरस्कार नहीं, ज़िम्मेदारी है

मोरा का कचरा-प्रसंग हमें याद दिलाता है कि स्वच्छता केवल शहर की सीमा तक सीमित नहीं होनी चाहिए, यह हर गाँव, हर सड़क और हर नागरिक की सामूहिक जिम्मेदारी है। अगर सूरत जैसी जागरूक नगरी के गाँवों की यह हालत है, तो यह समय है आत्ममंथन का ताकि स्वच्छ भारतकेवल नारा नहीं, जीवनशैली बन सके।