धुएँ में घिरी राजधानी: दिवाली की चमक के साथ दिल्ली का दम घुटा, PM2.5 स्तर पहुँचा पाँच सालों के उच्चतम 488 µg/m³ पर

धुएँ में घिरी राजधानी: दिवाली की चमक के साथ दिल्ली का दम घुटा, PM2.5 स्तर पहुँचा पाँच सालों के उच्चतम 488 µg/m³ पर

नई दिल्ली।
रोशनी के पर्व ने राजधानी की रात को तो जगमगा दिया, लेकिन इसी जगमगाहट के बीच हवा इतनी ज़हरीली हो गई कि सांस लेना भी मुश्किल हो गया। दिवाली की सुबह दिल्लीवासियों ने जब खिड़कियाँ खोलीं, तो सामने था घना धुआं और हल्की चुभन वाली हवा। सफ़र, स्कूल और सुबह की सैर सब कुछ धुएँ की चादर में लिपट गया। आंकड़े बताते हैं कि दिवाली की रात 2025 में दिल्ली का PM2.5 स्तर 488 µg/m³ तक पहुंच गया, जो पिछले पाँच वर्षों में सबसे ऊँचा स्तर है।


दिल्ली बनी गैस चैंबर, सांस लेना हुआ दूभर

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के अनुसार, 14 अक्टूबर की रात से 15 अक्टूबर की सुबह तक वायु गुणवत्ता ‘गंभीर श्रेणी’ में दर्ज की गई। न केवल लाजपत नगर और आनंद विहार जैसे घनी आबादी वाले इलाके, बल्कि साउथ दिल्ली और द्वारका तक धुंध की चादर में लिपटे दिखे। विशेषज्ञों के अनुसार, PM2.5 का यह स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मानक से लगभग 30 गुना अधिक खतरनाक है। दिल्ली की हवा में मौजूद बारीक ज़हरीले कण फेफड़ों के गहराई तक पहुँच कर कई बीमारियों की जड़ बन सकते हैं।


पटाखों, पराली और ठंडी हवाओं का संगम बना 'घातक मिश्रण'

पर्यावरण वैज्ञानिकों का कहना है कि दिवाली की रात लोगों ने बड़ी मात्रा में पटाखे जलाए, जिससे उत्सर्जन अचानक बढ़ गया। वहीं, उत्तर भारत के कई इलाकों में पराली जलाने की घटनाएँ भी तेज़ रहीं। इसके ऊपर से हवा की गति भी बेहद कम रही, जिससे प्रदूषक तत्व ऊपर उठने के बजाय नीचे ही जमा हो गए। दिल्ली के पर्यावरण विभाग के एक अधिकारी ने बताया, “यह सिर्फ पटाखों की वजह से नहीं, बल्कि एक त्रिकोणीय प्रभाव है — पटाखे, पराली और ठंडी हवा — तीनों ने मिलकर राजधानी को एक विशाल गैस चैंबर में बदल दिया।”


अस्पतालों में बढ़े सांस के मरीज, डॉक्टरों ने दी चेतावनी

अस्पतालों में दिवाली के बाद सांस लेने में तकलीफ, खांसी और आंखों में जलन की शिकायतों के मरीजों की संख्या में भारी इज़ाफ़ा हुआ है। डॉक्टरों का कहना है कि लगातार कुछ घंटे ऐसे वातावरण में रहना भी फेफड़ों की कार्यक्षमता को प्रभावित कर सकता है। एम्स के पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. राकेश यादव ने कहा, “यह स्तर बेहद खतरनाक है। अगर यही स्थिति कुछ दिनों तक बनी रही, तो दिल्ली में अस्थमा, ब्रोंकाइटिस और हृदय रोग के मरीजों की संख्या में तेज़ वृद्धि देखने को मिलेगी।”


जन-जागरूकता की ज़रूरत: ‘प्रकाश पर्व’ को प्रदूषण पर्व न बनने दें

पर्यावरणविदों और सामाजिक संगठनों ने इस अवसर पर लोगों से अपील की है कि दिवाली की खुशी रोशनी से मनाएँ, धुएँ से नहीं। इलेक्ट्रॉनिक लाइट्स, दीयों और हरित पटाखों का प्रयोग कर प्रदूषण को कम किया जा सकता है। दिल्ली सरकार ने अगले दिन से ‘रेड अलर्ट’ जारी करते हुए निर्माण कार्यों पर रोक लगा दी है और स्कूलों को अस्थायी रूप से बंद रखने का निर्देश दिया है।


रोशनी तो लौटी, पर हवा ने फिर खो दी अपनी साँस

दिवाली बीत गई, लेकिन उसके बाद भी हवा में घुला ज़हर कई दिनों तक रहेगा। सवाल सिर्फ एक है — क्या हम आने वाली पीढ़ियों को ऐसी “ज़हरीली दिवाली” सौंपना चाहते हैं? समय आ गया है कि प्रकाश पर्व को पर्यावरण पर्व बनाया जाए — जहाँ दीप जलें, लेकिन आसमान न जले; जहाँ खुशियाँ बिखरें, लेकिन धुआं नहीं। तभी सच्चे अर्थों में दिवाली का उजाला सबके जीवन में रोशनी लाएगा।