देशभर में बकरीद की धूम — कुर्बानी और इंसानियत का पर्व बना सौहार्द की मिसाल

— विशेष संवाददाता
आज पूरे देश में बकरीद (ईद-उल-अजहा) का पवित्र पर्व धार्मिक श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जा रहा है। मस्जिदों से लेकर ईदगाहों तक, हर ओर नमाज़, दुआओं और आपसी भाईचारे की गूंज सुनाई दी।
बकरीद, जिसे ईद-उल-अजहा, ईद उल जुहा या ईद उल बकरा के नाम से भी जाना जाता है, इस्लाम धर्म में सबसे पवित्र त्योहारों में गिना जाता है। इसे 'Festival of Sacrifice' (कुर्बानी का त्योहार) कहा जाता है और यह त्याग, सेवा, समर्पण और इंसानियत का प्रतीक माना जाता है।
त्योहार का महत्व
इस पर्व की बुनियाद उस ऐतिहासिक घटना पर है, जब हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने अल्लाह के हुक्म पर अपने बेटे की कुर्बानी देने को तैयार हो गए थे। अल्लाह ने उनकी नीयत देखकर उनके बेटे की जगह एक दुम्बा (भेड़) भेजा और तभी से यह पर्व कुर्बानी के रूप में मनाया जाने लगा।
देशभर में उल्लास, नमाज़ और कुर्बानी
सवेरे की नमाज़ के साथ ही देश के कोने-कोने में मुसलमान भाइयों ने ईदगाहों और मस्जिदों में नमाज़ अदा की, एक-दूसरे को गले लगाकर ईद मुबारक कहा और समाज में आपसी प्रेम और सौहार्द का संदेश फैलाया।
इसके बाद संपन्न लोगों ने अल्लाह की राह में कुर्बानी दी, और मांस को तीन भागों में बांटा — गरीबों, रिश्तेदारों और अपने परिवार के लिए, ताकि कोई भूखा न रहे और सबमें बराबरी बनी रहे।
स्वाद और संस्कृति की छटा
इस अवसर पर घरों में शीरखुर्मा, कबाब, बिरयानी, सेवइयां जैसे पारंपरिक पकवानों की खुशबू महक रही है। हिंदू-मुस्लिम भाइयों ने एक-दूसरे को मिठाइयाँ और शुभकामनाएँ देकर देश की गंगा-जमुनी तहज़ीब को और मजबूती दी।
बकरीद का यह पर्व सिर्फ एक धर्म विशेष का त्योहार नहीं, बल्कि यह त्याग, करुणा और इंसानियत के उस उज्ज्वल दर्शन का प्रतीक है, जो हमें एक बेहतर इंसान बनने की प्रेरणा देता है।