पत्रकारिता की आड़ में वसूली का खेल: लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ पर धब्बा

पत्रकारिता की आड़ में वसूली का खेल: लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ पर धब्बा

भारतीय लोकतंत्र में हर इकाई की अपनी महत्ता है। विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के साथ-साथ मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा गया है, क्योंकि यह न केवल जनता की आवाज़ उठाता है, बल्कि समाज को दिशा देने और प्रशासन को आईना दिखाने का भी काम करता है। लेकिन जब यही मीडिया कुछ तथाकथित पत्रकारों के हाथों व्यापार का साधन बन जाए, तो लोकतंत्र की आत्मा को गहरी चोट पहुँचती है। हाल ही में कप्तानगंज थाना क्षेत्र में घटी एक घटना ने इस कड़वी सच्चाई को उजागर कर दिया है।

प्रतिष्ठान में घुसकर वसूली का आरोप

जानकारी के अनुसार, शुक्रवार को कुछ स्वयंभू पत्रकारों की एक टीम कप्तानगंज क्षेत्र के एक प्रतिष्ठान में जा पहुँची। बिना अनुमति दुकान में प्रवेश कर उन्होंने वहाँ वीडियो बनाना शुरू कर दिया। इसके बाद प्रतिष्ठान में खामियां गिनाते हुए व्यापार बंद कराने की धमकी दी और विज्ञापन के नाम पर 15 हजार रुपये की मांग कर डाली। प्रतिष्ठान संचालक ने रकम देने से इंकार किया तो उन तथाकथित पत्रकारों ने नकारात्मक खबरें चलाने और प्रशासनिक कार्रवाई कराने की धमकी दे डाली।

बताया जाता है कि दबाव बनाकर उन्होंने मौके पर ही ऑनलाइन 9 हजार रुपये वसूले और चलते बने। हालांकि जब प्रतिष्ठान संचालक को ठगी का एहसास हुआ तो उन्होंने स्थानीय मीडिया प्रतिनिधियों से संपर्क किया। मध्यस्थता के बाद वसूले गए रुपये लौटाए तो गए, लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं हुई।

बदनाम करने की नई चाल

पैसा वापस करने के बाद भी उन तथाकथित पत्रकारों ने अपने उद्देश्य को आगे बढ़ाने के लिए एक और रास्ता खोज लिया। उन्होंने अपने पोर्टल पर “जन शिकायत” के नाम पर नकारात्मक लेख लिखकर उसे सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया और स्थानीय प्रशासन को टैग कर प्रतिष्ठान की छवि खराब करने का प्रयास किया।

जब इस पूरे मामले की जानकारी मिलने पर कुछ स्थानीय पत्रकार वहां पहुंचे और हकीकत जाननी चाही, तो क्षेत्रीय लोगों ने साफ कहा कि उक्त प्रतिष्ठान के संचालन से उन्हें कभी कोई समस्या नहीं हुई है। वहाँ न तो कोई अवैध गतिविधि चलती है और न ही समाज को किसी तरह की परेशानी होती है।

लोकतंत्र पर सवाल, साख पर दाग

यह घटना सिर्फ एक प्रतिष्ठान या एक व्यवसायी की नहीं, बल्कि लोकतंत्र की उस रीढ़ की है जिस पर पूरा समाज विश्वास करता है। पत्रकारिता को सदैव समाज की आवाज़, जनता की रक्षा और न्याय दिलाने का सशक्त माध्यम माना गया है। परंतु जब यही पत्रकारिता वसूली और दबाव की दुकान बन जाए, तो न केवल मीडिया की साख गिरती है बल्कि पूरे लोकतंत्र की जड़ों में सड़न पैदा होती है।

क्या करना होगा?

आज आवश्यकता इस बात की है कि प्रतिष्ठित मीडिया संस्थान और जिम्मेदार पत्रकार आगे आएं और इस प्रकार की घटनाओं पर अंकुश लगाएं। पत्रकारिता का उद्देश्य सत्य और समाज के हित में काम करना है, न कि किसी की मेहनत और इज्ज़त को अपने फायदे के लिए दांव पर लगाना।
लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ पर लगे इस कलंक को धोना हम सबकी जिम्मेदारी है। क्योंकि जब पत्रकारिता शुद्ध और निष्पक्ष रहेगी, तभी समाज का विश्वास कायम रहेगा और लोकतंत्र की नींव और मजबूत होगी।


 यह घटना सिर्फ कप्तानगंज की नहीं, बल्कि एक चेतावनी है—अगर आज ऐसे काले धंधों पर रोक नहीं लगी, तो आने वाले कल में लोकतंत्र का सबसे मजबूत स्तम्भ भी खोखला हो जाएगा।