ट्रंप का दावा — शी जिनपिंग ने दिया व्यक्तिगत आश्वासन, मेरे कार्यकाल में ताइवान पर कोई कार्रवाई नहीं करेगा चीन
वॉशिंगटन।
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बड़ा बयान देते हुए दावा किया है कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने उन्हें व्यक्तिगत रूप से आश्वासन दिया था कि चीन उनके कार्यकाल के दौरान ताइवान पर कोई कदम नहीं उठाएगा। ट्रंप ने कहा कि शी जिनपिंग “जानते हैं कि अगर उन्होंने ऐसा कुछ किया तो उसके गंभीर परिणाम होंगे।” यह बयान ऐसे समय में आया है जब एशिया-प्रशांत क्षेत्र में ताइवान को लेकर अमेरिका और चीन के बीच तनाव पहले से ही चरम पर है।
ट्रंप बोले — “शी जिनपिंग मेरे सामने स्पष्ट थे”
अमेरिकी मीडिया को दिए एक इंटरव्यू में ट्रंप ने कहा —
“शी जिनपिंग ने मुझसे व्यक्तिगत रूप से कहा था कि जब तक मैं राष्ट्रपति रहूंगा, वे ताइवान पर कोई कदम नहीं उठाएंगे। वह जानते हैं कि अगर ऐसा हुआ तो उसके बहुत गंभीर परिणाम होंगे।”
ट्रंप का यह बयान संकेत देता है कि उनके कार्यकाल के दौरान चीन-अमेरिका संबंधों में भले ही व्यापारिक विवाद रहे हों, लेकिन सामरिक मोर्चे पर संतुलन बनाए रखा गया था।
ताइवान को लेकर बढ़ता वैश्विक तनाव
ताइवान को चीन अपना हिस्सा मानता है, जबकि अमेरिका उसकी लोकतांत्रिक सरकार का समर्थन करता है और हथियारों की आपूर्ति भी करता है। पिछले कुछ महीनों में चीन ने ताइवान के चारों ओर सैन्य अभ्यास और हवाई घेराबंदी बढ़ा दी है, जिससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चिंता गहरी हो गई है। अमेरिका बार-बार कह चुका है कि अगर चीन ने ताइवान पर हमला किया तो वह “निर्णायक प्रतिक्रिया” देगा।
ट्रंप की टिप्पणी का राजनीतिक असर
अमेरिका में चुनावी माहौल के बीच ट्रंप का यह बयान न केवल विदेश नीति पर चर्चा को गर्म करेगा, बल्कि राष्ट्रपति बाइडन की नीति की तुलना में उनके “सख्त नेतृत्व” की छवि को भी मजबूत करेगा। ट्रंप ने इंटरव्यू के दौरान यह भी कहा कि —
“मेरे समय में चीन ताइवान के बारे में सोच भी नहीं सकता था। आज वे हर हफ्ते धमकी देते हैं, यह फर्क है नेतृत्व का।”
विश्लेषकों के अनुसार, ट्रंप का यह बयान एक राजनीतिक संदेश है, जो अमेरिकी मतदाताओं के बीच उनकी वैश्विक प्रभावशाली छवि को दोबारा स्थापित करने का प्रयास माना जा रहा है।
पृष्ठभूमि — ताइवान, चीन और अमेरिका की तिकोनी कूटनीति
ताइवान की स्थिति 1949 से ही अंतरराष्ट्रीय विवाद का विषय रही है, जब चीन के गृहयुद्ध के बाद यह द्वीप अलग प्रशासनिक इकाई बन गया था। चीन लगातार “वन चाइना पॉलिसी” के तहत ताइवान को अपना हिस्सा बताता है, जबकि अमेरिका इसे लोकतांत्रिक सहयोगी के रूप में देखता है। इसी मुद्दे पर बीते वर्षों में एशिया-प्रशांत क्षेत्र में तनाव और हथियारों की दौड़ तेज़ हुई है।
दुनिया की नज़रें फिर से बीजिंग और वॉशिंगटन पर
ट्रंप के इस बयान ने एक बार फिर अमेरिका-चीन रिश्तों के भू-राजनीतिक समीकरणों को केंद्र में ला दिया है। विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले दिनों में अगर ट्रंप दोबारा सत्ता में लौटते हैं, तो ताइवान पर उनकी नीति और भी कठोर हो सकती है। दुनिया की निगाहें अब एक बार फिर बीजिंग और वॉशिंगटन के बीच उस नाज़ुक रेखा पर टिकी हैं — जहाँ हर शब्द, हर संकेत, और हर आश्वासन वैश्विक स्थिरता को प्रभावित कर सकता है।







