अस्ताचल सूर्य को अर्घ्य देने उमड़े श्रद्धालु, छठ घाटों पर गूंजे भक्ति गीत — महराजगंज से देवनांचल तक श्रद्धा का सैलाब
- राजनारायण मिश्र, महराजगंज (आजमगढ़)
महराजगंज। भगवान सूर्य की उपासना का महापर्व छठ पूजा पूरे जनपद में श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया गया। नगर पंचायत महराजगंज के भैरव बाबा धाम स्थित पोखरे से लेकर देवनांचल तक के घाटों पर भक्तों का अपार जनसैलाब उमड़ पड़ा। शाम ढलते ही जब अस्ताचल सूर्य को अर्घ्य देने का समय आया, तो पूरा वातावरण “छठ मईया की जय!” के जयघोष से गूंज उठा।
पूरे परिवार संग पहुंचे व्रती, लोकगीतों से गूंजे घाट
घाटों की ओर जातीं महिलाओं के समूह सिर पर दउरा और पूजा सामग्री लेकर नाचते-गाते, भक्ति भाव में लीन दिखाई दिए। रास्ते भर गूंजते रहे पारंपरिक गीत —
“पीछे-पीछे बांस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाए...”
“केलवा के पात पर उगेलन सुरुज मल झांके ऊंके...”
लोकगीतों की यह अनुगूंज मानो वातावरण को पवित्र कर रही थी। बच्चे, पुरुष और महिलाएं सभी पारंपरिक वेशभूषा में सजे घाटों की ओर बढ़ रहे थे, उनके चेहरों पर भक्ति की आभा झलक रही थी।
अर्घ्य से जगमगाए घाट, उगते सूर्य के स्वागत की तैयारी
जैसे ही सूर्य की अंतिम किरणें पोखरे के जल में उतरने लगीं, व्रती महिलाओं ने दूध, शहद, तिल और जल से अर्घ्य अर्पित किया। उन्होंने अपने पुत्रों, पतियों और परिवार के दीर्घायु एवं सुख-समृद्धि की कामना करते हुए भगवान सूर्य को नमन किया।
शाम की इस आराधना के बाद भक्त अब मंगलवार की भोर में अरुणोदय के अर्घ्य की तैयारी में जुट गए हैं। तब उगते सूर्य को जल अर्पित कर व्रती अपना कठिन व्रत पारण करेंगी।
सुरक्षा व व्यवस्था के पुख्ता इंतज़ाम
घाटों पर श्रद्धालुओं की बढ़ती भीड़ को देखते हुए प्रशासन और नगर पंचायत द्वारा सुरक्षा, प्रकाश और स्वच्छता की विशेष व्यवस्था की गई थी। पुलिस बल और स्वयंसेवकों ने घाटों पर मौजूद रहकर श्रद्धालुओं की सुविधा सुनिश्चित की।
भक्ति, लोक और संस्कृति का संगम
नगर पंचायत महराजगंज से लेकर देवनांचल के गांवों तक हर जगह छठ पूजा का उत्सव लोक संस्कृति के रंगों से सराबोर नजर आया। दीपों की रौशनी से नहाए पोखरे और तालाबों पर झिलमिलाते प्रतिबिंब मानो भक्ति और सौंदर्य का मिलन कर रहे थे।
छठ व्रतियों के चेहरे पर अटूट विश्वास और शुद्ध भक्ति की आभा देखकर यह सहज ही महसूस होता है कि छठ केवल पूजा नहीं, बल्कि लोकआस्था का पर्व है — जो सूर्य, प्रकृति और मातृशक्ति के प्रति भारतीय जनमानस के गहरे सम्मान का प्रतीक है।
संध्या का अर्घ्य देने के बाद अब सबकी निगाहें हैं भोर के सूर्योदय पर — जब उगते सूर्य की पहली किरण के साथ हजारों व्रतियों की भक्ति फिर से जल में झुकेगी, और आस्था का यह महान पर्व पूर्णता को प्राप्त करेगा।






