भगवत कथा सुनने से होता है जीवन का कृतार्थ — आचार्य महेंद्र नाथ पाण्डेय

भगवत कथा सुनने से होता है जीवन का कृतार्थ — आचार्य महेंद्र नाथ पाण्डेय

घेवरपार गाँव में चल रही सप्त दिवसीय कथा में उमड़ा श्रद्धा का सागर

रिपोर्टर: नरसिंह यादव, गोरखपुर (उत्तर प्रदेश)


जब भक्ति ने जगाई आत्मा की चेतना

गगहा विकास खंड के घेवरपार गांव का वातावरण इन दिनों भक्ति रस में डूबा हुआ है। गांव में चल रही सप्त दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा में श्रद्धालुओं की ऐसी भीड़ उमड़ रही है, मानो पूरा क्षेत्र प्रभु प्रेम में पवित्र हो उठा हो। अयोध्या धाम से पधारे आचार्य महेंद्र नाथ पाण्डेय जब कथा पटल पर विराजे, तो उनकी मधुर वाणी ने श्रोताओं के हृदय में भक्ति का दिव्य प्रवाह प्रवाहित कर दिया।


???? विस्तार: “भगवत कथा सुनने वाला कभी अधर्म में नहीं पड़ता”

कथा के दौरान आचार्य महेंद्र नाथ पाण्डेय ने कहा कि —

“जो व्यक्ति अपने जीवन में सत्कर्म न कर पाया हो, जिसने धर्म के मार्ग पर चलने का अवसर खो दिया हो — यदि वह केवल भगवत कथा का एक श्लोक या आधा श्लोक भी श्रद्धा से सुन ले, तो उसके समस्त पापों का नाश हो जाता है। कथा श्रवण ही मानव जीवन को कृतार्थ बना देता है।”

उन्होंने कहा कि सनातन धर्म में कथा केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि का माध्यम है। जो लोग अपने ही धर्म, शास्त्र और देवी-देवताओं पर विश्वास नहीं करते, वे सबसे बड़ा नुकसान अपने जीवन का करते हैं।


“माता सती की कथा से मिला दिव्य संदेश”

आचार्य जी ने कथा के दौरान माता सती और भगवान शिव की पवित्र लीला का उल्लेख करते हुए कहा — जब सती जी भगवान शिव के साथ कैलाश से जा रही थीं, उसी समय मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम दंडक वन में लीला कर रहे थे। भगवान शिव ने बार-बार सती जी से कहा —

“सती, इन श्रीराम को प्रणाम कीजिए, यही ब्रह्म हैं।”

परंतु सती जी को भ्रम हुआ कि यह सामान्य मानव ब्रह्म कैसे हो सकते हैं? सत्य की परीक्षा लेने के लिए उन्होंने मां जानकी का रूप धारण कर श्रीराम के समक्ष प्रकट हुईं। तभी उन्हें राम दरबार का दर्शन प्राप्त हुआ, और अपनी भूल का अहसास हुआ। उसी अपराध बोध में, सती जी ने अपने पिता दक्ष के यज्ञ में जाकर अपने शरीर की आहुति दे दी। आचार्य जी ने कहा कि यह कथा मानव जीवन को यह सीख देती है कि अहंकार और भ्रम, भक्ति के मार्ग के सबसे बड़े शत्रु हैं।


???? भक्ति का महासागर: गाँव में गूंजे ‘जय श्रीराम’ के स्वर

कथा के दौरान श्रद्धालु भाव-विभोर होकर ‘हरे कृष्ण’, ‘जय श्रीराम’, ‘हर हर महादेव’ के जयघोष करते रहे। महिलाएँ आरती की थालियाँ सजाकर भक्ति में लीन रहीं।
गांव के युवा सेवा कार्यों में जुटे रहे और हर शाम कथा पंडाल में दीपों की ज्योति से पूरा वातावरण स्वर्गिक बन जाता है। कथा के मुख्य यजमान श्री भागवत शाही रहे, जिन्होंने पूरे आयोजन में तन-मन-धन से योगदान दिया।


जब कथा बन जाए जीवन का संदेश

सप्त दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि जीवन को दिशा देने वाला उत्सव है। आचार्य महेंद्र नाथ पाण्डेय के मधुर वचनों ने न केवल श्रद्धालुओं के हृदय को स्पर्श किया, बल्कि यह संदेश भी दिया कि — “जिसके जीवन में भगवत कथा का रस उतर गया, उसके लिए संसार का हर दुःख तुच्छ हो जाता है।” गांव घेवरपार इन दिनों सचमुच भक्ति और अध्यात्म की गंध से महक रहा है — और यही सनातन भारत की सबसे बड़ी पहचान है।


“जहाँ भक्ति का दीप जलता है, वहाँ अंधकार अपने आप मिट जाता है।”