प्राचीन ज्वालाओं का रहस्योद्घाटन: गोदावरी की चट्टानों में दबी पर्मियन काल की भीषण अग्नि कथा

— पृथ्वी के अग्नि इतिहास की परतों को खोलता भारत का वैज्ञानिक कारनामा
भारत की धरती ने फिर रचा इतिहास — इस बार विज्ञान के संसार में। गोदावरी बेसिन की गहराइयों में छिपे रहस्यों ने जब वैज्ञानिकों के स्पर्श से अपनी चुप्पी तोड़ी, तो एक ऐसी कहानी सामने आई, जिसने न केवल भूगर्भशास्त्र की दुनिया में हलचल मचा दी, बल्कि हमारे पर्यावरणीय अतीत को भी एक नया आयाम दे दिया।
बीरबल साहनी पुराविज्ञान संस्थान (BSIP), लखनऊ के वैज्ञानिकों की टीम ने पर्मियन काल (लगभग 250 मिलियन वर्ष पूर्व) की प्रचंड जंगल की आगों — पुराअग्नियों — के रहस्यमय निशानों को खोज निकाला है। यह खोज सिर्फ राख या जलने के चिन्हों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हमें उस समय के पारिस्थितिकी तंत्र, जलवायु परिवर्तन और पृथ्वी पर कार्बन चक्र के गहन रहस्यों तक ले जाती है।
तकनीक का जादू और चट्टानों की गवाही
शेल नमूनों का सूक्ष्म विश्लेषण, रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी, रॉक-इवल पायरोलिसिस और एफटीआईआर जैसी अत्याधुनिक तकनीकों के सहारे किया गया। इनमें मौजूद सूक्ष्म चारकोल कणों, ऑक्सीकृत अवशेषों और पौधों के अंशों ने आग की कहानी को सजीव बना दिया। अध्ययन से पता चला कि कुछ आगें स्थल पर ही भड़कीं, जबकि कुछ जलते हुए अवशेष दूर-दूर तक हवा-पानी के जरिए फैलते गए।
समुद्र के उतार-चढ़ाव और अग्नि की छाया
चौंकाने वाली बात यह रही कि समुद्र के स्तर में बदलाव ने भी इन प्राचीन आगों के अवशेषों पर असर डाला। जब समुद्र पीछे हटा, तो आग के अवशेष बेहतर ढंग से संरक्षित मिले; वहीं जलस्तर बढ़ने पर वे अधिक मिश्रित और ऑक्सीकृत हो गए। यह बात बताती है कि कैसे धरती का हर परिवर्तन, चाहे वह समुद्र हो या वन, आग और जीवन दोनों को प्रभावित करता है।
कार्बन कैप्चर की चाबी हो सकता है अतीत का यह अध्ययन
यह शोध आज की सबसे बड़ी चुनौती — जलवायु परिवर्तन — से लड़ने के लिए भी एक नई राह खोलता है। जब हम समझते हैं कि करोड़ों वर्ष पहले आग से उत्पन्न कार्बनिक पदार्थ कैसे चट्टानों में समाहित होकर पृथ्वी के कार्बन भंडार का हिस्सा बना, तो यह जानकारी भविष्य में कार्बन कैप्चर और भंडारण की रणनीति को सशक्त बना सकती है।
इतिहास से सीख, भविष्य की दिशा
इस खोज ने पुराजलवायु (Paleoclimate) अध्ययन और भूगर्भीय डेटिंग की तकनीकों को भी और अधिक परिष्कृत बनाने की दिशा में कदम बढ़ाया है। यह न केवल वैज्ञानिकों के लिए, बल्कि सामान्य पाठकों के लिए भी एक प्रेरणा है कि धरती की परतों में आज भी अनगिनत कहानियाँ दबी हैं — बस ज़रूरत है उन्हें खोजने और समझने की।
एक सवाल जो रह गया — क्या हम भी भविष्य में ऐसी ही किसी कहानी का हिस्सा बनेंगे? या इससे पहले ही जागरूक होकर अपनी पृथ्वी को बचा लेंगे?