शादी की तैयारी में डूबे परिवार को मिला मातम का ज़ख्म — राप्ती नदी से 50 घंटे बाद मिला किशोर का शव

गगहा, गोरखपुर | क्राइम रिपोर्टर विशेष
गगहा थाना क्षेत्र के सेमरवासा गांव में उस वक्त गम और ग़मगीन ख़ामोशी छा गई जब 16 वर्षीय किशोर जितेंद्र निषाद का शव लगभग 50 घंटे बाद राप्ती नदी से बरामद किया गया। जिस परिवार में कुछ ही घंटे बाद बारात निकलनी थी, वहां अब मातम का साया मंडरा रहा था।
नदी ने वापस लौटाया बेटा, लेकिन सांसें नहीं
मंगलवार की सुबह जितेंद्र निषाद ने रकहट चौराहे स्थित राप्ती नदी के पुल से छलांग लगा दी थी। उस समय वह अपने चप्पल और मोबाइल पुल के किनारे रखकर नदी में उतर गया। उसकी तलाश में गगहा पुलिस, स्थानीय गोताखोरों और NDRF टीम के प्रयास लगातार जारी रहे।
आज गुरुवार दोपहर करीब 12 बजे, राप्ती नदी की लहरों ने वह निर्जीव शरीर वापस लौटा दिया। शव को पास के ही मछुआरे गोविंद ने अपनी नाव की मदद से बाहर निकाला। जितेंद्र के परिजन, जो भाई की शादी की तैयारियों में लगे थे, अब शोक में डूब चुके हैं।
जिस घर से उठनी थी बारात, वहीं से उठा जनाज़ा का सन्नाटा
जितेंद्र के बड़े भाई शिवराज निषाद की शादी की तैयारियाँ अंतिम चरण में थीं। बारात निकलने से चंद घंटे पहले इस दर्दनाक खबर ने पूरे माहौल को वेदना और विषाद में बदल दिया।
मृतक के भाई रंजीत निषाद ने बताया कि:
"लड़की वालों के आग्रह पर अब सिर्फ औपचारिक शादी की रस्में निभाई जाएंगी।"
बारात निकली तो सही, लेकिन न ढोल था, न बैंड — बस एक सहमी हुई चुप्पी, और एक भारी मन।
एक घर, एक दिन, दो पल — एक ओर विवाह, दूसरी ओर पोस्टमार्टम
गांव में ऐसा दृश्य देखने को मिला, जहां एक भाई की बारात घर से निकली, तो दूसरे भाई की शवयात्रा की तैयारी चल रही थी।
कुछ परिजन शादी में शामिल होने निकल पड़े, जबकि कुछ लोग पोस्टमार्टम हाउस की ओर रवाना हो गए। यह दृश्य कुदरत की रहस्यमयी लीला जैसा लगा, जहां सुख और दुख ने एक ही घर में साथ-साथ डेरा डाल दिया।
समुदाय में शोक की लहर
इस दुखद घटना से पूरे गांव और आस-पास के इलाकों में शोक की लहर दौड़ गई। कोई भी घटना का स्पष्ट कारण नहीं बता सका। न ही कोई सुसाइड नोट मिला, न कोई पूर्व सूचना। जितेंद्र के अचानक इस कदम ने सभी को हिलाकर रख दिया।
गगहा थाना प्रभारी सुशील कुमार ने बताया कि:
"शव को पोस्टमार्टम हेतु जिला अस्पताल भेजा गया है। रिपोर्ट के आधार पर आगे की कार्रवाई की जाएगी।"
क्या कहती है यह घटना समाज से?
यह हादसा सिर्फ एक परिवार की त्रासदी नहीं, बल्कि समाज के उस मौन पीड़ा की गवाही है जिसे अक्सर अनसुना कर दिया जाता है। मानसिक तनाव, किशोरों की चिंता, संवाद की कमी — यह सब ऐसे कदमों को जन्म देते हैं, जिनका कोई अंत सुखद नहीं होता।
यह केवल एक शव नहीं — एक सवाल है हम सबके लिए
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क्या हम अपने बच्चों की भावनाओं को समझ पा रहे हैं?
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क्या हम समय रहते उनकी मनःस्थिति की परख कर पा रहे हैं?
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और क्या हमारा समाज ऐसे मौकों पर केवल संवेदना व्यक्त कर चुप रह जाना ही सीख गया है?
???? गगहा की यह कहानी सिर्फ खबर नहीं — चेतावनी है।
संवेदनाएं व्यक्त करें, संवाद बढ़ाएं, ताकि कोई और जितेंद्र राप्ती की लहरों में खो न जाए।