भरत मिलाप में उमड़ा जनसैलाब: प्रभु राम-भरत के भावुक मिलन ने बांधा समां

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आर.वी.9 न्यूज़ | संवाददाता, शुभम शर्मा
बड़हलगंज।
अधर्म पर धर्म की विजय और भक्ति की अग्नि में भावनाओं की आहुति देने वाला अनोखा दृश्य शनिवार रात बड़हलगंज उपनगर में देखने को मिला। गोला मोहल्ला स्थित संगम चित्र मंदिर परिसर से शुरू हुआ भरत मिलाप समारोह नगर की सड़कों से होते हुए हनुमानगढ़ी मोहल्ले तक पहुंचा, जहां प्रभु श्रीराम और भाई भरत का भावुक मिलन मंचित किया गया। इस अद्भुत क्षण का साक्षी बनने के लिए देर रात से ही श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ पड़ा।
अश्रुपूरित भावनाओं ने किया वातावरण गंगाजल समान पावन
रामायण की अमर गाथा के इस अध्याय में जब चौदह वर्ष का वनवास पूर्ण कर प्रभु श्रीराम माता सीता और भाई लक्ष्मण के साथ लौटे, तो भरत की आंखें अश्रुधारा बन गईं। बड़े भाई के आगमन की सूचना पाते ही भरत नंगे पांव दौड़ पड़े। मंचन के दौरान भरत के आंसुओं से ही प्रभु राम के चरण धुलते देख श्रद्धालु भी भावविभोर हो उठे। भाईयों के इस मिलन ने सम्पूर्ण वातावरण को पावन कर दिया और “जय श्रीराम” के जयकारों से नगर गूंज उठा।
रातभर गूंजता रहा रामायण का रस
भरत मिलाप कमेटी द्वारा आयोजित इस आयोजन में नाट्य मंचन पूरी रात चलता रहा। विभिन्न कलाकारों ने आकर्षक झांकियों और मनमोहक प्रस्तुतियों से श्रद्धालुओं को बांधे रखा। मंच पर रावण वध से लेकर अयोध्या वापसी और भावनाओं से ओतप्रोत भरत मिलन तक की झलकियों ने दर्शकों को मानो त्रेतायुग की यात्रा करा दी।
अतिथियों ने बढ़ाया उत्साह, कलाकार हुए सम्मानित
इस अवसर पर मुख्य अतिथि डॉ. मनोज यादव और विशिष्ट अतिथि डॉ. मंजय सोनी ने मंच पर उपस्थित कलाकारों को पुरस्कृत कर उनका उत्साहवर्धन किया। आयोजन में नगर के विभिन्न गणमान्य नागरिक भी मौजूद रहे। संयोजक अशोक जायसवाल और मुख्य आयोजक व पूर्व नगर पंचायत अध्यक्ष प्रतिनिधि श्रवण जायसवाल ने सभी आगंतुकों और श्रद्धालुओं का आभार व्यक्त किया।
चप्पे-चप्पे पर रही सुरक्षा व्यवस्था
हजारों की भीड़ को देखते हुए पुलिस प्रशासन पूरी तरह सतर्क दिखा। जगह-जगह जवानों की तैनाती की गई और कार्यक्रम शांति व अनुशासन के साथ संपन्न हुआ।
बड़हलगंज की पावन भूमि पर हुआ भरत मिलाप न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक रहा, बल्कि भाईचारे, भक्ति और संस्कृति की उस अमर परंपरा का जीवंत उदाहरण भी बना जिसने हर दर्शक के हृदय में अमिट छाप छोड़ी। रातभर चले इस आयोजन ने साबित कर दिया कि आज भी प्रभु श्रीराम और भरत का मिलन केवल नाटक नहीं, बल्कि भारतीय समाज के संस्कारों और मूल्यों की गहरी जड़ें है, जो हर पीढ़ी को भावनाओं से जोड़ती रहेंगी।