गोरखपुर पासपोर्ट सेवा केंद्र में भ्रष्टाचार की खुली किताब: तत्काल सेवा के नाम पर ठगी, दलालों का साम्राज्य!

गोरखपुर पासपोर्ट सेवा केंद्र में भ्रष्टाचार की खुली किताब: तत्काल सेवा के नाम पर ठगी, दलालों का साम्राज्य!

— जनता परेशान, अधिकारी मौन, सिस्टम बेहाल

  • ब्यूरो प्रमुख- एन. अंसारी, मंडल गोरखपुर, उत्तर प्रदेश

गोरखपुर | विशेष रिपोर्ट
जिस व्यवस्था को नागरिकों की सुविधा के लिए बनाया गया था, वह आज भ्रष्टाचार, अनियमितताओं और दलाली का पर्याय बन चुकी है। गोरखपुर स्थित पासपोर्ट सेवा केंद्र में हालात इतने बदतर हो चुके हैं कि यहां तत्काल सेवा के नाम पर खुलेआम आवेदकों से ठगी की जा रही है। पीड़ितों की मानें तो यह अब एक दलाल-प्रेरित आउटसोर्सिंग नेटवर्क में तब्दील हो गया है।


तत्काल सेवा: नाम बड़ा, पर काम फर्जी

3500 रुपये की फीस लेकर पासपोर्ट की जल्दी डिलीवरी का वादा किया जाता है।
 लेकिन तय तारीख पर आवेदकों को बिना कारण लौटाया जा रहा है।
 उनसे जबरन लिखवाया जा रहा कि वे अब सामान्य प्रक्रिया से पासपोर्ट लेना चाहते हैं।
डिजीलॉकर का डाउन होना बहाना बन चुका है — 20 दिनों से लगातार यही कारण बताया जा रहा है, जबकि फीस अब भी वसूली जा रही है।


 C3 और C4 काउंटर: संवेदनहीनता की पराकाष्ठा

देवरिया से आए मुरारी खरवार बताते हैं:

“बिना कारण स्टाफ आवेदकों को लौटा देता है। कोई सुनवाई नहीं, कोई जवाब नहीं। लोग भटकते हैं, रोते हैं... लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ता।”

C3 और C4 काउंटरों पर कर्मचारियों का रवैया न सिर्फ अशिष्ट, बल्कि सरकारी सेवा की गरिमा के खिलाफ है। शिकायतों पर कोई कार्रवाई नहीं, बल्कि उन्हें दबा दिया जाता है।


दलालों का मजबूत नेटवर्क, एक नया ‘भ्रष्टाचार मॉडल’

आवेदक अभिषेक पांडेय का कहना है:

“जब कोई आवेदक परेशान होकर हार मानने लगता है, तब उसे इशारों में बताया जाता है कि बाहर दलाल मिलेंगे जो ‘काम करवा देंगे।’ ये दलाल 5000 से 7000 रुपये लेते हैं और वादा करते हैं कि तत्काल वेरिफिकेशन हो जाएगा।”

इस तरह एक पासपोर्ट बनवाने की कुल लागत 8500 से 10,000 रुपये तक पहुंच रही है।

यानी सरकारी व्यवस्था दलालों के हाथों गिरवी रख दी गई है, और आम आदमी को लूटा जा रहा है—कानून की आंखों के सामने।


प्रशासन की चुप्पी = मौन समर्थन?

जब इस पूरे मामले पर CISM (Customer Information Service Manager) अविनाश चटर्जी से प्रतिक्रिया ली गई, तो उन्होंने कहा:

“डिजीलॉकर की समस्या UIDAI की है, शिकायत भेज दी गई है, अगले सप्ताह तक सब ठीक हो जाएगा।”

पर सवाल ये है —
कितने ‘अगले सप्ताह’ और बीतेंगे?
कब तक जनता को गुमराह किया जाएगा?
क्यों कोई ठोस कार्यवाही नहीं हो रही?


यह सिर्फ भ्रष्टाचार नहीं, यह जनसुविधा पर हमला है

  • पासपोर्ट जैसी मूलभूत सरकारी सेवा को लेकर जनता को ठगना

  • आम नागरिक को दलालों की ओर धकेलना

  • सरकारी अधिकारियों की लापरवाही और संवेदनहीनता

ये सारी बातें गोरखपुर पासपोर्ट सेवा केंद्र को एक भ्रष्ट व्यवस्था का जीता-जागता उदाहरण बना रही हैं।


 जनता का सवाल:

"क्या सरकार सिर्फ योजनाएं बनाने तक सीमित है, या उनके सही क्रियान्वयन की भी कोई जिम्मेदारी है?"


यह मुद्दा सिर्फ गोरखपुर का नहीं है, यह पूरे सिस्टम की चेतावनी है। जब तक जवाबदेही तय नहीं होगी, जनता इसी तरह ठगी जाती रहेगी।