आज मनाई जा रही है बैकुंठ चतुर्दशी: हरि-हर के मिलन का पावन पर्व, जानें शुभ मुहूर्त, पूजन विधि और पौराणिक कथा

आज मनाई जा रही है बैकुंठ चतुर्दशी: हरि-हर के मिलन का पावन पर्व, जानें शुभ मुहूर्त, पूजन विधि और पौराणिक कथा

धार्मिक डेस्क / वाराणसी से —
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाने वाली बैकुंठ चतुर्दशी आज पूरे देश में धूमधाम और श्रद्धाभाव के साथ मनाई जा रही है। यह पर्व भगवान विष्णु (हरि) और भगवान शिव (हर) दोनों के एकत्व और दिव्य मिलन का प्रतीक माना जाता है। इस दिन किए गए पूजा-पाठ से भक्त को मोक्ष, पवित्रता और जीवन में दिव्य शांति का आशीर्वाद प्राप्त होता है।


 बैकुंठ चतुर्दशी का महत्व

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यह तिथि भगवान विष्णु और भगवान शिव के अनोखे संगम का प्रतीक है। कहा जाता है कि इसी दिन भगवान विष्णु ने काशी (वाराणसी) में आकर भगवान शिव की आराधना की थी, और बदले में भोलेनाथ ने भी हरि की भक्ति स्वीकार की थी। इस प्रकार यह दिन “हरि-हर एकत्व” का उत्सव माना जाता है, जो यह संदेश देता है कि सृष्टि में कोई भेद नहीं, हर देवता एक ही परम तत्व के स्वरूप हैं।


शुभ मुहूर्त

  • तिथि प्रारंभ: 4 नवम्बर (सोमवार) को प्रातः 10:15 बजे से
    तिथि समाप्त: 5 नवम्बर (मंगलवार) को प्रातः 9:45 बजे तक
    पूजन का सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त: आज रात्रि 11:30 बजे से 12:30 बजे तक का समय विशेष शुभ माना गया है।

 पूजन विधि

  1. प्रातः स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें और व्रत का संकल्प लें।

  2. घर या मंदिर में भगवान विष्णु और शिवलिंग दोनों की मूर्तियों या चित्रों की स्थापना करें।

  3. गंगाजल, पुष्प, तुलसीदल, बेलपत्र, धूप, दीप और नैवेद्य से पूजा करें।

  4. भगवान विष्णु को तुलसी अर्पित करें और भगवान शिव को बेलपत्र चढ़ाएं।

  5. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ और ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्रों का 108 बार जाप करें।

  6. पूजा के बाद प्रसाद का वितरण करें और ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा दें।


 बैकुंठ चतुर्दशी की कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, वाराणसी में एक ब्राह्मण था — धनेश्वर, जो जीवनभर भगवान विष्णु का उपासक था, परंतु उसने कभी भगवान शिव की पूजा नहीं की। एक बार उसे स्वप्न में स्वयं भगवान विष्णु प्रकट हुए और बोले —
“धनेश्वर, मोक्ष पाने के लिए शिव की आराधना भी आवश्यक है, क्योंकि वे ही मोक्ष के द्वार के रक्षक हैं।”

यह सुनकर धनेश्वर काशी पहुंचे और बैकुंठ चतुर्दशी के दिन भगवान शिव की पूजा आरंभ की। तब भगवान शिव प्रसन्न हुए और बोले —
“हे भक्त! जिस भक्ति से तुमने मुझे और विष्णु दोनों को समान भाव से पूजित किया, उसी के प्रभाव से तुम बैकुंठ लोक को प्राप्त करोगे।”

तभी से इस दिन भगवान विष्णु और भगवान शिव की संयुक्त आराधना का विधान प्रारंभ हुआ, जो आज भी अक्षुण्ण रूप से चला आ रहा है।


इस दिन का आध्यात्मिक संदेश

बैकुंठ चतुर्दशी का पर्व हमें यह सिखाता है कि सच्ची भक्ति में भेदभाव नहीं होता — न देवता में, न मनुष्य में। हरि और हर, दोनों एक ही सत्य के दो रूप हैं। जो व्यक्ति इस दिन श्रद्धाभाव से पूजा करता है, उसके जीवन से अंधकार मिटकर बैकुंठ समान शांति और आनंद की प्राप्ति होती है।