एनजीसी 3785: ज्वारीय पूंछ के छोर पर नवजात आकाशगंगा की खोज

एनजीसी 3785: ज्वारीय पूंछ के छोर पर नवजात आकाशगंगा की खोज

पृथ्वी से लगभग 430 मिलियन प्रकाश वर्ष दूरसिंह तारामंडल मेंएक नई अति-विसरित आकाशगंगा का निर्माण हो रहा है। यह आकाशगंगा एनजीसी 3785 की ज्वारीय पूंछनुमा आकृतितारों और इंटरस्टेलर गैस की एक लंबीपतली धारा के अंत में बन रही है। आकाशगंगा के निर्माण की यह खोजसंभवतः एनजीसी 3785 और एक पड़ोसी आकाशगंगा के बीच गुरुत्वाकर्षण संपर्क द्वारा प्रेरित है। यह खोज आकाशगंगा के निर्माण को समझने में एक प्रमुख मील का पत्थर है।

एनजीसी 3785 आकाशगंगा में अब तक खोजी गई सबसे लंबी ज्वारीय पूंछनुमा आकृति पाई जाती है। यह पूंछनुमा आकृति आकाशगंगा से फैली हुई है और गुरुत्वाकर्षण बलों ("ज्वारीय बलों") के कारण बनती है। जब दो आकाशगंगाएं आपस में निकटता से संपर्क करती हैंतो ऐसे में अनिवार्य रूप से निकट संपर्क या विलय प्रक्रिया के दौरान सामग्री को एक-दूसरे से दूर खींचती हैं।

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के स्वायत्त संस्थान भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान (आईआईए) के खगोलविदों और उनके सहयोगियों ने जब एनजीसी 3785 आकाशगंगा का ध्यानपूर्वक अध्ययन किया। उन्होंने पाया कि न केवल इसकी अब तक खोजी गई सबसे लम्बी ज्वारीय पूंछनुमा आकृति हैबल्कि इस ज्वारीय पूंछनुमा आकृति की छोर में एक अति-विस्तृत आकाशगंगा का निर्माण भी हो रहा है।

कुछ साल पहले ओमकार बैत को तारों और गैस की धारा से बनी एक औसत से ज़्यादा लंबी ज्वारीय पूंछनुमा आकृति मिली थी। उस समय वे पुणे में नेशनल सेंटर फ़ॉर रेडियो एस्ट्रोफिजिक्स (एनसीआरएमें छात्र थे। उन्होंने पाया कि यह एक अनोखी वस्तु थी। इस खोज को योगेश वाडेकर (एनसीआरएऔर आईआईए के सुधांशु बारवे के साथ साझा किया गया। उन्होंने बाद के अध्ययन पर एक साथ काम किया।

आईआईए के पीएचडी छात्र और प्रकाशित हो चुके पेपर के पहले लेखक चंदन वाट्स ने कहा, "हमने इस असाधारण आकाशगंगा और इसकी विशाल ज्वारीय पूंछनुमा आकृति को बहुत विस्तार से देखने का फैसला किया।" उन्होंने पूंछनुमा आकृति का सावधानीपूर्वक फोटोमेट्रिक विश्लेषण किया और उन्नत छवि प्रक्रिया से जुड़ी तकनीकों का इस्तेमाल करके इसकी सीमा और लंबाई को सटीक रूप से मापा। उन्होंने कहा, "हमने पाया कि यह असाधारण ज्वारीय पूंछनुमा आकृति 1.27 मिलियन प्रकाश वर्ष तक फैली हुई है। इस प्रकार यह अब तक खोजी गई सबसे लंबी ज्वारीय पूंछनुमा आकृति बन गई है।"

यह पूंछनुमा आकृति न केवल अपने आकार में उल्लेखनीय हैबल्कि यह अल्ट्रा-डिफ्यूज आकाशगंगाओं (यूडीजीके निर्माण के लिए सुराग भी प्रदान करती है। इस पूंछनुमा आकृति का अनूठा पहलू यह है कि इसके सिरे पर एक नवजात अल्ट्रा-डिफ्यूज आकाशगंगा का निर्माण हुआ है। संभवतः यह एनजीसी 3785 और एक पड़ोसी आकाशगंगा के बीच गुरुत्वाकर्षण संपर्क द्वारा संचालित है। इस कारण यह एक दुर्लभ और रोमांचक खोज के रूप में स्थापित होता है।

आईआईए के एक संकाय सदस्य और अध्ययन के सह-लेखक सुधांशु बारवे ने कहा, "इस विशेष पूंछ की असाधारण लंबाई और इसके फैलाव के साथ तारा-निर्माण समूहों की उपस्थिति इसे यह समझने के लिए एक अनूठा मामला बनाती है कि कैसे मंद और फैली हुई आकाशगंगाएं अस्तित्व में आती हैं।

चंदन के अनुसार, "यह खोज आकाशगंगाओं के बीच परस्पर क्रिया की आकर्षक प्रक्रिया और यह कैसे नईमंद और फैली हुई संरचनाएं बना सकती हैइस पर प्रकाश डालती है। उन्होंने बताया, "ज्वारीय पूंछनुमा आकृति इस बात की एक झलक प्रदान करती है कि सतह पर बहुत कम चमक वाली अल्ट्रा-डिफ्यूज जैसी आकाशगंगाएं कैसे अस्तित्व में आती हैं।"

नई खोज सतह पर कम चमक से जुड़ी विशेषताओं के बारे में हमारी समझ को आगे बढ़ाने का वादा करती हैजो अक्सर उनकी मंदता के कारण पारंपरिक सर्वेक्षणों द्वारा छूट जाती हैं। हाल ही में लॉन्च किए गए मिशन जैसे यूक्लिड स्पेस टेलीस्कोप और रुबिन वेधशाला के लिगेसी सर्वे ऑफ स्पेस एंड टाइम (एलएसएसटीजैसे आगामी ग्राउंड-आधारित सर्वेक्षण अपनी बढ़ी हुई संवेदनशीलता के कारण ऐसी और अधिक मंद ज्वारीय विशेषताओं को उजागर करने में सहायक होंगे।

यह अनुसंधान यूरोपीय पत्रिकाएस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स लेटर्स के नवंबर अंक में प्रकाशित हुआ है। इसे आईआईए और पांडिचेरी विश्वविद्यालय के चंदन वाट्सआईआईए के डॉ. सुधांशु बारवेएसकेएयूके के डॉ. ओंकार बैट और नेशनल सेंटर फॉर रेडियो एस्ट्रोफिजिक्सपुणे के डॉ. योगेश वडाडेकर ने लिखा है।

एनजीसी 3785 की बढ़ी हुई पूंछनुमा आकृति की विशेषताओं को एक उलटे ग्रे स्केल छवि में दिखाया गया है। विभिन्न विशेषताओं को उजागर करने के लिए उच्च चमक वाले क्षेत्रों को रंग में दिखाया गया है। सबसे लंबी ज्ञात ज्वारीय पूंछ को एनजीसी 3785 से नीचे दाईं ओर विस्तारित होते हुए देखा जा सकता हैजो अल्ट्रा डिफ्यूज गैलेक्सी (यूडीजी) के निर्माण में परिणत होती है।