शीतल देवी और राकेश कुमार: सफलता पर साधा निशाना, पैरा तीरंदाजी में ऐतिहासिक जीत

शीतल देवी और राकेश कुमार: सफलता पर साधा निशाना,  पैरा तीरंदाजी में ऐतिहासिक जीत

भारत के पैरा-एथलीट वैश्विक मंच पर देश को लगातार गौरवान्वित कर रहे हैं। पेरिस में बेहतरीन प्रदर्शन करने वाले पैरा-एथलीटों में शीतल देवी और राकेश कुमार का प्रदर्शन भी शामिल थाजिन्होंने मिश्रित टीम कंपाउंड ओपन तीरंदाजी स्पर्धा में कांस्य पदक जीता। उनकी जीत पैरा खेलों में भारत की बढ़ती विरासत में एक और अध्याय जोड़ती है!

शीतल देवी का सफर

शीतल देवी का जन्म 10 जनवरी2007 को जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ में हुआ था। उन्होंने अपने अतुलनीय सफर से दुनिया को मंत्रमुग्ध कर दिया है। बिना हाथों के जन्म लेने के बावजूद उन्होंने दिखा दिया है कि महानता हासिल करने की राह में शारीरिक सीमाएं कोई बाधा नहीं हैं। उनका प्रारंभिक जीवन चुनौतियों से भरा थालेकिन 2019 में उस समय एक महत्वपूर्ण क्षण आया जब भारतीय सेना ने एक सैन्य शिविर में उनकी प्रतिभा की पहचान की। उनकी क्षमता को देखते हुए उन्होंने उन्हें शैक्षिक सहायता और चिकित्सा देखभाल की सुविधा प्रदान की।

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जानेमाने कोच कुलदीप वेदवान की देखरेख में शीतल ने कठोर प्रशिक्षण की शुरुआत की और इसने उन्हें दुनिया की एक अग्रणी पैरा-तीरंदाज बना दिया। उनकी उपलब्धियां खुद बयां करती हैं: 2023 के एशियाई पैरा खेलों में व्यक्तिगत एवं मिश्रित टीम स्पर्धाओं में स्वर्ण पदक2023 के विश्व तीरंदाजी पैरा चैम्पियनशिप में रजत पदक और एशियाई पैरा चैम्पियनशिप में कई पुरस्कार। शीतल की कहानी साहसदृढ़ता और अपनी क्षमताओं में अटूट विश्वास की कहानी है।


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राकेश कुमार: प्रतिकूलता से उत्कृष्टता तक

राकेश कुमार का जन्म 13 जनवरी1985 को जम्मू-कश्मीर के कटरा में हुआ था। वह लचीलेपन की ताकत का एक अन्य उदाहरण हैं। साल 2010 में एक दु:खद दुर्घटना में राकेश कमर से नीचे के हिस्से में लकवाग्रस्त हो गएजिससे उन्हें व्हीलचेयर पर रहना पड़ा। उसके बाद के कुछ साल उनके लिए निराशा से भरे रहे। मगर  2017 में उस दौरान उनके जीवन में एक नया मोड़ आयाजब उन्हें श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स में तीरंदाजी से परिचित कराया गया।

कोच कुलदीप कुमार के मार्गदर्शन में राकेश को तीरंदाजी के प्रति नया जुनून मिला। आर्थिक तंगी के बावजूद उन्होंने खुद को इस खेल के लिए समर्पित कर दिया और जल्द ही रैंक में ऊपर उठते हुए भारत के शीर्ष पैरा तीरंदाजों में शामिल हो गए। उनकी उपलब्धियों में 2023 विश्व तीरंदाजी पैरा चैम्पियनशिप में मिश्रित टीम स्पर्धा में स्वर्ण पदक और 2023 एशियाई पैरा खेलों में शानदार प्रदर्शन शामिल है। राकेश का सफर महानता हासिल करने के लिए दुर्गम बाधाओं को पार करने की कहानी है।

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पेरिस 2024 पैरालिंपिक

पेरिस 2024 पैरालिंपिक शीतल देवी और राकेश कुमार दोनों के करियर में एक महत्वपूर्ण पड़ाव साबित हुआ। मिश्रित टीम कंपाउंड ओपन तीरंदाजी स्पर्धा में भाग लेते हुए इन दोनों को दुनिया के कुछ सर्वश्रेष्ठ पैरा तीरंदाजों से कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ा। पोडियम तक का उनका सफर धैर्यदृढ़ संकल्प और लगातार उत्कृष्टता से ओतप्रोत था।

शीतल और राकेश ने इटली के एलेनोरा सार्टी और माटेओ बोनासिना के खिलाफ कांटे की टक्कर में कांस्य पदक हासिल किया। भारतीय तीरंदाजों ने दबाव के बावजूद काफी संयम दिखायाअंतिम सेट में चार परफेक्ट 10 लगाए और पीछे से आकर पदक झटक लिया। उनके प्रदर्शन ने न केवल पोडियम पर जगह पक्की कीबल्कि 156 अंकों के पैरालिंपिक रिकॉर्ड की बराबरी भी की। यह उनके कौशल और एकाग्रता का प्रमाण है।

सरकारी सहायता: सफलता का एक महत्वपूर्ण स्तंभ

पेरिस 2024 पैरालिंपिक में शीतल देवी और राकेश कुमार की सफलता भारत सरकार द्वारा प्रदान किए गए व्यापक समर्थन के बिना संभव नहीं होती। दोनों एथलीटों को टारगेट ओलंपिक पोडियम स्कीम (टीओपीएस) के तहत वित्तीय सहायता मिली। इसमें प्रशिक्षण पर होने वाला खर्चउपकरणों की खरीद और अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धाओं के लिए यात्रा शामिल थी। शीतल को थाईलैंडयूएईचेक गणराज्यचीन और फ्रांस में प्रशिक्षण के लिए विदेश जाने के छह अवसर मिलेजबकि राकेश को विशेष उपकरण एवं व्हीलचेयर जैसी सुविधाओं के साथ मदद मिली। एसएआई सोनीपत में राष्ट्रीय कोचिंग शिविर में इन दोनों एथलीटों ने प्रशिक्षण लिया और उसने उनके कौशल को निखारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

प्रेरणा की विरासत

शीतल देवी और राकेश कुमार द्वारा पेरिस 2024 पैरालिंपिक में कांस्य पदक जीतना न केवल भारत के लिए एक जीत हैबल्कि यह उम्मीद एवं दृढ़ता का एक ताकतवर संदेश भी है। महज 17 वर्ष की उम्र में शीतल भारत की सबसे कम उम्र की पैरालिंपिक पदक विजेता बन गईंजबकि 39 वर्षीय राकेश ने अपनी उपलब्धियों की प्रभावशाली सूची में पैरालिंपिक पदक भी जोड़ लिया। उनकी कहानियां खेल की दुनिया से परे हैंजो विपरीत परिस्थितियों का सामना करने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए प्रेरणा के रूप में काम करती हैं। उनकी विरासत एथलीटों की पीढ़ियों को बड़े सपने देखने और हरसंभव उसकी सीमाओं को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करती रहेगी।