भोर की चीख से शाम की गोली तक: बहराइच में आदमखोर भेड़िये का अंत, एक मासूम की जान लेकर थमा आतंक
उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले में आदमखोर भेड़ियों का खौफ एक बार फिर इंसानियत को झकझोर गया। कैसरगंज थाना क्षेत्र में शनिवार तड़के एक एक वर्षीय मासूम बच्ची को उसकी मां के पास से उठा ले जाने वाला आदमखोर भेड़िया शाम होते-होते वन विभाग की गोली का शिकार बन गया। यह बहराइच में मारा गया पांचवां आदमखोर भेड़िया है, लेकिन एक परिवार के लिए यह नुकसान जीवनभर का दर्द बन गया।
नींद में टूटी ज़िंदगी, मां की गोद से छिना लाल
शनिवार तड़के करीब साढ़े तीन बजे, जब पूरा गांव गहरी नींद में था, तभी इंसानी बस्ती में घुसा आदमखोर भेड़िया एक घर के पास जा पहुंचा। मां के पास सो रही एक साल की मासूम बच्ची को भेड़िया दबे पांव उठा ले गया। अचानक बच्ची की चीख-पुकार से मां की नींद खुली। वह बदहवास होकर बाहर दौड़ी, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
गन्ने के खेत में खो गई मासूम की सांसें
मां की आंखों के सामने ही भेड़िया बच्ची को अपने मुंह में दबाकर गन्ने के घने खेत की ओर भाग गया। शोर सुनकर आसपास के लोग भी दौड़ पड़े।
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टॉर्च की रोशनी
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खेतों की सघन तलाशी
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हर दिशा में खोज
लेकिन अंधेरे और घनी फसल के बीच भेड़िया और मासूम—दोनों ओझल हो चुके थे। गांव में मातम पसर गया, हवा में सिर्फ डर और सन्नाटा रह गया।
सूचना मिलते ही हरकत में प्रशासन
घटना की खबर मिलते ही
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पुलिस टीम
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वन विभाग के अधिकारी
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और स्थानीय प्रशासन
मौके पर पहुंचा। इलाके में तत्काल कांबिंग ऑपरेशन शुरू कर दिया गया। डीएफओ ने बताया कि घटनास्थल से नदी की रेत की ओर जाते पैरों के निशान मिले, जिन्हें आधार बनाकर खोज अभियान को तेज किया गया।
ड्रोन से मिली लोकेशन, जंगल में चला ऑपरेशन
वन विभाग ने आधुनिक तकनीक का सहारा लेते हुए ड्रोन कैमरों से इलाके की निगरानी शुरू की। कई घंटों की मशक्कत के बाद ड्रोन में वही आदमखोर भेड़िया दिखाई दिया, जो इंसानी बस्ती के आसपास मंडरा रहा था। जैसे ही लोकेशन कन्फर्म हुई, प्रशिक्षित वन कर्मियों ने घेराबंदी कर सटीक गोली चलाकर भेड़िये को ढेर कर दिया।
पांचवां आदमखोर ढेर, लेकिन सवाल अब भी जिंदा
वन विभाग के अनुसार, यह बहराइच में मारा गया पांचवां आदमखोर भेड़िया है। हालांकि एक भेड़िये के मारे जाने से इलाके में कुछ राहत जरूर मिली है, लेकिन ग्रामीणों के मन से डर अब भी खत्म नहीं हुआ है।
एक परिवार का उजड़ा आंगन
सरकारी कार्रवाई अपनी जगह, लेकिन जिस मां की गोद सूनी हुई, उसके लिए कोई ऑपरेशन, कोई गोली, कोई आंकड़ा मायने नहीं रखता। गांव में शोक की लहर है, हर आंख नम है और हर दिल में एक ही सवाल—
“आखिर कब तक मासूम ऐसे ही दरिंदों का शिकार बनते रहेंगे?”
ग्रामीणों की मांग: स्थायी समाधान हो
स्थानीय लोगों ने प्रशासन से मांग की है कि—
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जंगल से सटे गांवों में स्थायी सुरक्षा व्यवस्था की जाए
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रात में गश्त बढ़ाई जाए
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और आदमखोर वन्यजीवों को लेकर ठोस रणनीति बनाई जाए
बहराइच की यह घटना सिर्फ एक खबर नहीं, बल्कि मानव और वन्यजीव संघर्ष की भयावह तस्वीर है। एक आदमखोर भेड़िये का अंत हो गया, लेकिन एक मासूम की जिंदगी लौटकर नहीं आएगी। अब वक्त है कि डर को आंकड़ों में नहीं, इंसानी पीड़ा में समझा जाए, ताकि अगली भोर किसी मां की चीख से न टूटे।
क्योंकि सुरक्षा की एक चूक,
किसी का पूरा संसार उजाड़ सकती है…






