सच्चा मित्र ईश्वर का दिया हुआ उपहार है : आचार्य आनन्द जी महाराज

सच्चा मित्र ईश्वर का दिया हुआ उपहार है : आचार्य आनन्द जी महाराज

संवाददाता__नरसिंह यादव, गोरखपुर, उत्तर प्रदेश

 जीवन मे हमे एक ऐसे व्यक्ति की आवश्कता होती हैं। जिससे हम अपने मन की बात को बता सके। जीवन मे आए हुए समस्यायों से उबरने के लिए बेझिझक राय ले सके। जिससे मन की बातों को बता कर मन हल्का कर सकें। वह व्यक्ति कोई और नहीं, वह हमारा मित्र होता हैं। अगर गहराई से विचार किया जाए, तो सच्चा मित्र ईश्वर का दिया हुआ उपहार होता हैं।

उक्त बातें गगहा विकास खंड के ढ़रसी ग्राम में चल रहे नौ दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा के सातवें दिन वृन्दावन धाम से पधारे परम पूज्य आचार्य आनन्द जी महाराज ने उपस्थित श्रोताओं को श्रीकृष्ण सुदामा के चरित्र को श्रवण कराते हुए कहा आज कल सच्चा मित्र मिलना प्रायः दुर्लभ हो गया है। आज कल मित्र जैसे निर्मल संबंध में भी लोग स्वार्थ ढूंढते हैं। मित्रता एक ऐसा संबंध होता है,जो बिना किसी रक्त के संबंध बिना सर्वोत्तम संबंध होता हैं। संसार के सारे संबंध मित्रता रूपी संबंध की बराबरी नही कर सकते। मित्रता समर्पण मांगती है ना की छल! श्री कृष्ण और सुदामा जैसे मित्र का उदाहरण कही नही दिखता। द्वारिकाधीश होते हुए भी भगवान श्रीकृष्ण सुदामा जी से द्वारिका में ऐसे मिलते है।जैसे गुरुकुल में सुदामा जी से मिला करते थे। जब सुदामा जी देखते है श्रीकृष्ण के उस स्वभाव को,तो उनकी आंखे सजल हो जाती हैं। मन ही मन सोचते हैं कि दुनिया बदल गई पर मेरा कृष्ण वैसे का वैसा हैं। कहा ये राजा का बेटा कहा मैं निर्धन ब्राह्मण...। जरा सा धन पद पा लेने पर लोग अपने से बड़ों के अभिवादन से कतराते हैं। वही ये मेरा कृष्ण जो अत्यंत प्रेम के साथ हृदय से लगा कर, मेरा स्वागत कर रहा हैं।पूज्य महराज श्री ने लोगो से निवेदन करते हुए कहा कि मित्रता मे कभी कपट नही होनी चाहिए। जो मित्र के छोटे से दुःख को बड़ा समझ कर दूर करने का प्रयास करता। जो अपने मित्र के उन्नति के बारे में ही सोचता वही सच्चा मित्र है। जो विपत्ति में पड़े हुए मित्र का संग छोड़ देता है ऐसे व्यक्ति के मुख देखने से पाप लगता है। जब श्री कृष्ण सुदामा जी की दीन दशा को देखते है, तो उनका हृदय भर आया मन मे सोचते हैं कि, मैं कितना बड़ा पापी हूं जो मेरा मित्र विपन्नता का जीवन जी रहा हैं और मैं ऐश्वर का भोग कर रहा हूं। सुदामा जी के जाते ही देवशिल्पी विश्वकर्मा जी को आदेश देते हैं कि मेरे भवन के सामान सुदामा जी के लिए एक दिव्य महल का निर्माण करे। जिससे मेरा मित्र भी सुख पूर्वक निवास करे। श्रीकृष्ण जैसा मित्र मिलना बड़े ही सौभाग्य की बात है। हमे भी श्रीकृष्ण भगवान के पद चिन्हों पर चल कर मित्र धर्म का निर्वाह करना चाहिए। आगे महाराज परीक्षित के मोक्ष की कथा के साथ का का विश्राम होता है। ऐसे पवित्र अवसर पर आचार्य अतुल दूबे जी, आचार्य शशिकांत मिश्र जी, मुख्य यजमान श्री घनश्याम तिवारी जी, व श्रीमती गिरिजा देवी जी, अभिषेक शुक्ल, योगेश तिवारी, वैभव तिवारी, अमित ओझा, राम नगीना तिवारी, रमेश तिवारी, रत्नाकर तिवारी, कमला तिवारी,राधेश्याम तिवारी, सुधाकर तिवारी, नीरज शुक्ला, संतोष शुक्ल, शिवशंकर ओझा सहित अनेक लोग उपस्थित रहे।